मोदी सरकार के 4 साल : उम्मीदों से छल
किरण राय
नरेंद्र मोदी सरकार के चार साल पूरे हो चुके हैं। वर्ष 2014 में जब इस सरकार ने सत्ता संभाली थी तब जनता की उम्मीदें सातवें आसमान पर थीं। 30 साल बाद केंद्र में किसी पार्टी को अकेले बहुमत जो हासिल हुआ था। जाहिर सी बात है इस मजबूत सरकार से कुछ बड़े बदलावों की उम्मीदें जनता ने संजोई थी और खुद मोदी व उनके सहयोगियों ने इसका वादा भी किया था। लेकिन आज क्या हुआ चार साल के बाद? मोदी सरकार ने उम्मीदों से सिर्फ छल ही तो किया है। अमीर और अमीर हो गया। गरीब और गरीब।
वादों की कसौटियों पर सरकार को कसें तो एक बात साफ है कि टीम मोदी ने अपेक्षा के अनुरूप कई साहसिक फैसले तो किए जिनमें नोटबंदी और जीएसटी का मुकाम सबसे ऊंचा है। लेकिन यही साहसिक फैसले ने अच्छे दिनों के सपनों को चकनाचूर कर दिया, उम्मीदों के पंख को कतर दिया। सरकार ने हर साल 2 करोड़ रोजगार देने का जो वादा किया था, नोटबंदी के बाद रोजगार मिलना तो दूर, जो लोग रोजगार में या नौकरी में थे उन्हें रोजगार या नौकरी से हाथ धोना पड़ा। बेरोजगारी बढ़ती चली गई। जीएसटी के फैसले ने भी उद्योग-धंधों को चौपट करने में अहम भूमिका निभाई। दरअसल सरकार की सोच है कि सिर्फ नौकरी को ही रोजगार न माना जाए, लेकिन ऐसा तब होता जब काफी लोगों को स्वरोजगार के साधन उपलब्ध हो पाते। स्टार्ट-अप योजना के जरिए इस दिशा में एक कोशिश जरूर हुई पर वह लहर दो साल भी नहीं चली। सबसे ज्यादा रोजगार देने वाले रीयल एस्टेट सेक्टर का नोटबंदी के बाद हाल बुरा है। इस सदी में सबसे ज्यादा मध्यवर्गीय नौकरियां टेलिकॉम सेक्टर में थीं जो अचानक समस्याग्रस्त लगने लगा है। अमेरिका के संरक्षणवादी रवैये के कारण बीपीओ सेक्टर पहले ही ठहर चुका है। ई-कॉमर्स के देसी खिलाड़ी गायब हैं, लड़ाई दो अमेरिकी कंपनियों तक सिमट गई है। ये तो रही रोजगार की बात।
अब याद करें तो चार साल पहले सत्ता में आने के लिए कालेधन, फसलों के दाम, नारी सुरक्षा, औद्योगिक विकास इत्यादि को लेकर कैसे-कैसे लुभावने वादे नरेंद्र मोदी ने किए थे। आज चार साल बाद मोदी सरकार भव्य जश्न के आडंबर से नाकामियों पर पर्दा डाल रही है। देश की 125 करोड़ जनता को यह जानना जरूरी है कि बीते चार सालों में देश को खर्चीली रैलियों, गढ़े हुए भाषणों, रेडियो पर मन की बातों और जुमलों के अलावा हासिल क्या हुआ है? मोदी जी ने घोषणापत्र में वादा किया था कि कृषि उपज का समर्थन मूल्य लागत के 50 प्रतिशत से अधिक दिया जाएगा, मगर सरकार किसानों को लागत मूल्य भी नहीं दे रही है। किसानों के नाम पर चलाई जा रही फसल बीमा योजना में भी निजी कंपनियां पैसा कमा रही हैं। मोदी जी ने कहा था, मां गंगा ने बुलाया है। उन्होंने गंगा की सफाई की 20 हजार करोड़ की एक योजना सामने रखी, लेकिन उसका केवल 13 प्रतिशत ही खर्च किया जा सका है। कैग का कहना है कि गंगा एक बूंद भी साफ नहीं की जा सकी है। सुप्रीम कोर्ट ने भी नाराजगी जताते हुए कहा कि जिस गति से काम चल रहा है उससे तो गंगा सौ वर्षों में भी साफ नहीं हो पाएगी।
नारी सुरक्षा का दावा करने वाली सरकार की हालत यह है कि आज बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के नाम पर बेटियों के साथ भद्दा मजाक किया जा रहा है। देश में 15 वर्ष तक आयु की 6.5 करोड़ बेटियां हैं। बजट में केवल पांच पैसे प्रति बेटी का प्रावधान किया गया है। दलित भी प्रताड़ित और अपमानित किए जा रहे हैं। यही हाल स्मार्ट सिटी योजना का भी है। सौ शहरों के विकास के 642 परियोजनाओं में से मात्र तीन प्रतिशत अर्थात 23 परियोजनाएं पूरी हुई हैं। मोदी जी ने कहा था कि हर भारतीय के खाते में 15-15 लाख रुपये आएंगे। कालाधन आना तो दूर रहा, सरकार की सरपरस्ती में हजारों करोड़ रुपये का सफेद धन नीरव मोदी और मेहुल चौकसी जैसे काले चोर लूटकर भाग गए। आज बैंकों का नॉन परफॉर्मिंग असेट यानी एनपीए 2.5 लाख करोड़ से बढ़कर 8.5 लाख करोड़ पहुंच गया है। संप्रग शासन के समय 2013-14 में निर्यात 19.5 लाख करोड़ रुपये था, जो 2017- 18 में 10.37 लाख करोड़ रुपये हो गया। केंद्र सरकार के सात लाख करोड़ रुपये के करीब 150 प्रोजेक्ट रुके पड़े हैं। मेक इन इंडिया हो या स्टार्टअप इंडिया अथवा स्किल इंडिया, दम तोड़ती ये योजनाएं भी मोदी सरकार की नाकामी की पहचान बन गई हैं।
भारत-पाक सीमा पर लगातार हमले कर पाकिस्तान हमारे सैनिकों और नागरिकों को निशाना बना रहा है और चीन भारतीय सीमा में सैनिक साजो-सामान जुटा रहा, लेकिन सरकार मौन है। मंत्रियों का भ्रष्ट आचरण हो या फिर राफेल लड़ाकू विमान सौदे का सवाल, प्रधानमंत्री की चुप्पी सरकार की नाकामी को साबित करती है। हर उद्योगपति इस बात को अच्छी तरह से जानता है कि व्यापार करने की सहूलियतों के जो सूचकांक उन्हें थमाए गए हैं वे आंकड़ों की बाजीगरी के अलावा कुछ नहीं। ऐसी स्थिति में नए कारखाने लगाने में किसी की दिलचस्पी नहीं है। विदेशी निवेश कोई आ नहीं रहा और उल्टे देशी निवेशक विदेश की ओर रूख कर रहे हैं।