अटल बिहारी वाजपेयी: एक समर्पित राजनेता
किरण राय
अटल बिहारी वाजपेयी किसी एक शख्सियत का नाम नहीं बल्कि एक युग का नाम है। जिसमें लोगों को उतार-चढ़ाव, हृदय भेदी शब्दों के पुरोधा और एक समर्पित संघ सदस्य को जानने का मौका मिलता है। अटल ने राजनीति के उस पुराने दौर को अपने जीवन में ताउम्र अपनाए रखा। विरोधियों पर तंज तो कसे लेकिन शालीनता के दायरे में रहकर और नाटकीयता से कोसों दूर रहकर। वो उस टीम के सदस्य रहे जिसने भारतीय जनता पार्टी की नींव रखी। जब तक बागडोर हाथ में रही तब तक कोशिश की कि राजधर्म का पालन उनकी ही तरह करें।
शरीर नश्वर है विचार नहीं। यह भी कम हैरत की बात नहीं कि जनसंघ में रहते हुए समर्पित राष्ट्रीय स्वयंसेवक होते हुए भी उन्होंने कभी भी अपने दिल की कहने और करने से गुरेज नहीं किया। जानते थे कि पार्टी की सोच इतर है, लेकिन इंदिरा की प्रशंसा बांग्लादेश की आजादी के दौरान मुक्त कंठ से की। अपने इस रवैए के लिए उनकी आलोचना भी हुई लेकिन कवि हृदय ने अपनी कही पर अटल रहने का संकल्प कभी नहीं छोड़ा। यही वजह रही कि उन्होंने अपने दौर में भारत के सर्वधर्म सम्भाव की आत्मा से समझौता नहीं किया। लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ समझौता नहीं किया।
अपने शोक संदेश में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह कश्मीर मुद्दे को लेकर गंभीर होने की बात कही। अगर कुछ आगे कहते तो शायद याद करते कि उन्होंने कश्मीर मसले को इंसानियत के आधार पर डील करने की बात कही थी। जानते थे कि पाकिस्तान के साथ अच्छे रिश्तों की हिमायती उनकी खुद की पार्टी नहीं है, अखंड भारत के दर्शन को अटल ने नकारते हुए लाहौर बस सेवा शुरु कराई। संसद में कभी भी पिछली सरकारों की आलोचना में मर्यादा का पूरा ख्याल रखा। अपने एक भाषण में उन्होंने कहा था कि पिछली 50 साल में जो नहीं हुआ उसको वो नहीं कहेंगे क्योंकि ऐसा करना देश के पुरषार्थ के साथ अन्याय होगा, किसान के साथ अन्याय होगा और देश के नागरिकों के साथ अन्याय होगा...वाजपेयी के ये शब्द आज भी प्रासंगिक है बर्शर्ते उनकी पार्टी इसे माने तो।