'भारत माता की जय' पर बखेड़ा कब तक?
किरण राय
देश की राजनीति भटक सी गई है। कभी आरक्षण का मुद्दा, कभी अभिव्यक्ति की आजादी का मुद्दा तो कभी राष्ट्रीय नारा और राष्ट्रगान को लेकर बहसबाजी। ये सभी मुद्दे सत्ता में बने रहने की जद्दोजहद के लिए की जाने वाली राजनीति तो हो सकती है, लेकिन इससे राजनीति के असल मायने 'लोकतंत्र के विकास' की अवधारणा टूटती दिख रही है। देश में बड़ा बखेड़ा खड़ा होता दिख रहा है।
साल 2014 में जिस 'विकास' की बुनियाद पर केंद्र की सत्ता में बड़ा परिवर्तन हुआ था और तीन दशक के बाद एक पूर्ण बहुमत की सरकार केंद्र में आई थी, उसकी बुनियाद इतनी जल्दी डगमगा जाएगी, किसी ने कल्पना नहीं की थी। आजकल देश में 'भारत माता की जय' को लेकर दक्षिणपंथी संगठन मरने-मारने और देश से निकाल बाहर करने तक की बात करने लगे हैं। जो नारा आजादी के आंदोलन में अंग्रेजों के खिलाफ माहौल तैयार करने में रामबाण साबित हुई थी वही नारा आज देश के अंदर लोगों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करने में लक्ष्मण बूटी साबित हो रहा है। यह स्थिति विकास के रास्ते पर तेज गति से चलने वाले भारत की सेहत के लिए कतई अच्छा नहीं है।
सरसंघचालक मोहन भागवत का कहना है कि देश के हर नागरिक को भारत माता की जय बोलना चाहिए तो जवाब में हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी कहते सुने जाते हैं कि मेरे गर्दन पर छुरी भी रख दोगे तब भी 'भारत माता की जय' नहीं बोलूंगा। यह मेरा मन कहता है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का बयान आता है कि भारत में रहना है तो भारत माता की जय बोलना ही पड़ेगा। तो इसके विरोध में एक मुस्लिम संगठन ने यह कहते हुए फतवे जारी कर दिए कि 'भारत माता की वंदना करना गैर इस्लामी है। महाराष्ट्र के एक स्कूल ने तो यहां तक ऐलान कर दिया कि दाखिला लेना है तो 'भारत माता की जय' लिखना पड़ेगा।
दरअसल राष्ट्रवाद के मुद्दे को मुख्यधारा में लाकर राजनीति करना और इसे विचारधारा की मुख्यधारा में लाना सिर्फ भारत ही नहीं, पूरे विश्व की राजनीति का शगल रहा है। यह अति दक्षिणपंथ या अति वामपंथ नजरिए वाली राजनीति के उभरने का वक्त है। 'राष्ट्रवाद' के नाम पर राजनीति करने का 'दक्षिणपंथी संगठनों' का नजरिया रखने वाले या 'गरीबों-दलितों-वंचितों' के नाम पर राजनीति करने वाले अति वामपंथी नजरिये वाले आगे बढ़ रहे हैं। इन मुद्दों पर लोग एकजुट भी हो रहे हैं। लेकिन बड़ा सवाल जिसका जवाब कोई नहीं दे रहा कि 'भारत माता की जय' बोलने या ना बोलने से 125 करोड़ देशवासियों के जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में हासिल क्या हो रहा है?
क्या इससे गरीबी मिट जाएगी? क्या इससे लातूर जैसे इलाके में पानी का संकट दूर हो जाएगा? क्या इससे स्वास्थ्य और शिक्षा के स्तर पर देश ऊंचाईयों की बुलंदी छू लेगा? और सबसे बड़ी बात ये कि भारत माता की जय का नारा लगा-लगा कर मोदी सरकार 'सबका साथ सबका विकास' के लक्ष्य को हासिल कर अच्छे दिन का जो सपना देश दिखाया है, पूरा कर पाएगी? हम ये नहीं कह रहे हैं कि 'भारत माता की जय' बोलना गलत है। काल और परिस्थिति के मुताबिक जरूर बोलना चाहिए और लोग बोलते भी हैं। गौर कीजिए, हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब भाषण का समापन करते हैं तो जोरदार आवाज में 'भारत माता की जय' के नारा लगाते हैं और आज तक किसी के मुंह से यह कहते नहीं सुना कि हम 'भारत माता की जय' नहीं बोलेंगे। सरकार को चाहिए कि 'भारत माता की जय' को लेकर तमाम संगठनों और मीडिया संस्थानों में चलाए जा रहे बेतुके बहस पर रोक लगाने के लिए एक एडवाइजरी जारी करे।