बीएचयू में जो हुआ वो शर्मनाक
किरण राय
बीएचयू में लड़कियों के साथ छेड़खानी हुई, उन्होंने विरोध किया तो उन पर लाट्ठियां बरसाईं गईं- आखिर हम कौन से लोकतांत्रिक व्यवस्था में रह रहें हैं? जहां सरेआम छात्राओं को अपमानित किया जाता है सुरक्षा के लिए तैनात गार्ड मूक दर्शक बना रहता है और पुलिस आती है तो डंडा उसी के खिलाफ उठाती है जो भुक्तभोगी हैं। भला वीसी के बेतुके बयान से शर्मनाक क्या हो सकता है। उनका ये कहना कि ऐसे तो हम हरेक छात्रा कि सुनने लगे तो चल चुका विश्वविद्यालय- दरअसल, उनकी नहीं उस व्यवस्था की मानसिकता दर्शाता है जहां भेद-भाव अपने चरम पर है। पितृसत्तात्मक व्यवस्था को चुनौती जिन्हें मंजूर नहीं। किसी शिक्षण संस्थान में ऐसा तभी होता है जब आप जानते हैं कि इनका नेतृत्व करने वाला, इनकी आवाज बुलंद करने वाला और इनकी कही को सुनाने वाला कोई नहीं है। आखिर इस समस्या का मूल क्या है?
असल में 1997 से ही बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव नहीं हुए हैं। छात्र कैसे और किस तरह से अपनी कहें इसको लेकर शासन, प्रशासन कोई चिंतित नहीं है। छात्रसंघ की अनुपस्थिति से किसी के पास ना कोई अधिकार है, ना आजादी का भाव है और ना ही कोई लोकतंत्र है। किसे, क्या और कैसे समझाया जाए इसे लेकर कोई गंभीर नहीं है- परिणति ये कि बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ का मंत्र देने वाले प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में लड़कियों की मूल समस्या को ही नहीं समझा जा रहा है। उन्हें ना सिर्फ पढ़ने से बल्कि डर के साये से दूर रह कर सम्मान से जीने के अधिकार से वंचित रखने की भी तमाम कोशिशें हो रहीं हैं। हैरानी इस बात पर भी कि मुद्दे से ध्यान भटकाने के लिए इसे राष्ट्रवाद की चाशनी में भिगोने की कोशिश भी हो रही है। किसी बाहर वाले की कारस्तानी बता कर ठीकरा किसी और पर भी फोड़ा जा रहा है।
हो सकता है कि आज अगर छात्रसंघ होता तो स्थिति इतनी ना बिगड़ती कुलपति के सामने कोई खड़े रहकर अपनी बात करता और वो ये ना कहते कि मीडिया की अनुपस्थिति में होस्टल में कुछ प्रदर्शनकारी छात्राओं से बात करेंगे। प्रशासन इतना निरंकुश ना होता कि धरने पर बैठी छात्राओं को नैतिकता का पाठ पढ़ाने के लिए कुछ छात्रों को भेजता और बात ना बनती तो होस्टल में दौड़ा दौड़ा कर पुलिस से पिटवाता। अफसोस और शर्मनाक बात है कि मुद्दे पर हमारे प्रधानमंत्री और सरकार तब बोली जब बेटियां पिट गईं। तभी मुंह खोला जब वीडियो वायरल हुआ और बोलना जरूरी हो गया। निःसंदेह ये बीएचयू के उस गौरवशाली इतिहास के लिए अपमानजनक है जिसमें आचार्य नरेन्द्र देव और सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसी शख्सियतों का योगदान रहा हो।