गांधी हम शर्मिन्दा हैं
किरण राय
26 जनवरी एक राष्ट्रीय पर्व। इस जश्न की कल्पना कम से कम अभी तक हमने बापू के बिना नहीं की थी, लेकिन भला हो सरकार का उसने हमें इसकी आदत डलवानी शुरू कर दी है। 68वें गणतंत्र दिवस के शोर के बीच गांधी के कहे को कौन याद करता है। जिस खादी को देश की अस्मिता, स्वावलंबन और सम्मान से जोड़ा उस खादी को अब ब्राण्ड वैल्यू की दरकार है। बापू तो वैसे भी ब्राण्ड नहीं, वो तो एक फकीर हैं, सो फकीर को फैशनपरस्तों और दिखावे की दुनिया से क्या वास्ता, बापू! तभी शायद तुम्हें खादी से अलग कर दिया गया। तुम अब अतीत हो, ये हमारे माननीय कई तरीकों से जता रहें हैं।
ये अनजाने में हुआ हो ऐसा तो कतई नहीं लगता लेकिन फिर सवाल वही कि जानबूझ कर सरकार ऐसा क्यों कर रही है? तो क्या वाकई अनिल विज जो कह रहे थे वो सही है? उन्होंने केवीआईसी के डायरी विवाद पर कहा था कि अब नोटों से भी गायब होंगे गांधी, तो क्या राजपथ की खादी इंडिया की झांकी से उन्हें गायब करना सोची समझी रणनीति का हिस्सा है? अगर नहीं तो बार-बार बापू के साथ ऐसा क्यों हो रहा है?
सब जानते हैं कि हिन्दू संगठन का जयघोष करने वालों ने कभी गांधी को नहीं माना। कभी भी अखण्ड राष्ट्र निर्माण की गांधीवादी सोच को नहीं अपनाया, तो क्या उन्हीं को खुश करने की ये कवायद है? क्योंकि नहीं भूलना चाहिए कि मोदी उसी संघ की पैदाइश हैं जिसने गांधी को हमेशा नकारा है। जो भी राजनीति के लिए चाहें ये हों या वो सभी गांधी का प्रयोग करते हैं। सभी उनके असल विरासत को आगे ले जाने की बात करते हैं लेकिन फिर उन्हें मौका लगते ही बेदखल भी कर देते हैं। गांधी तुम्हारी इस बेअदबी पर वाकई हम शर्मिन्दा हैं।