सरकार समझे मीडिया में 'डर' कोई चीज नहीं होती
किरण राय
'हम एक साथ काम करेंगे। आपने हमे अलग करने की कोशिश की है और कई परिवारों में लड़ाई करवाने की कोशिश की है। पर वो दिन अब खत्म हो रहे हैं। हमें अब समझ आ गया है कि आपकी कवरेज के लिए हमें एक जुट होना पड़ेगा...हमें वापस जनता का भरोसा जीतना है और निडर रिपोर्टिंग करनी है।' अमेरिकी प्रेस ने इसी अंदाज में सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर बैठे प्रेसिडेंट ट्रम्प को ललकारा था। निडर पत्रकारिता क्या होती है इसकी मिसाल दुनिया के सामने रखने की अच्छी कोशिश की। आज ऐसा ही कुछ हमारे यहां हो रहा है। NDTV केन्द्र में है।
NDTV के मालिकानों के ऊपर सीबीआई रेड गलत या सही हो सकती है। सरकार अगर कह रही है कि कानून से बड़ा कोई नहीं तो सही कह रही है। वाकई कानून सबके लिए एक समान है। सवाल उठने लगे हैं कि अब आगे क्या? ये प्रश्न मीडिया संस्थानों, मीडिया संचालकों और मीडियाकर्मियों के लिए बहुत अहम और बड़ा हो चला है। दो धड़ों में बंटी मीडिया को दो राहें दिख रही है। या तो वो डर के रास्ते पर चलकर नतमस्तक हो जाए या फिर डर के आगे जीत है के जज्बे के साथ कदम ताल कर ले। ये सवाल NDTV के लिए ज्यादा मायने रखता है जिसे अब तय करना होगा कि उसे आगे की लड़ाई वो डर के आगे ना झुकते हुए सिर उठाकर सत्ताधारियों के खिलाफ लड़ेगा। किसी तरह की मध्यस्थता के लिए तैयार नहीं होगा या यूं कहें कि compromise नहीं करेगा। मीडिया की धारणा आम आदमी से बनती है सरकार से नहीं। आम आदमी जब तक सरकार के साथ है तब तक उसका हौसला बुलंद रहेगा लेकिन जिस दिन ये धारणा बदली सरकारें अपना आप बचा नहीं पायेंगी।
शुक्र है कि इस सबके बीच भी एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने सीबीआई रेड का खुलकर विरोध किया है। फंड डायवर्जन तथा एक निजी बैंक आईसीआईसीआई को कथित नुकसान पहुंचाने के मामले में घिरे हैं प्रणय रॉय और उनकी पत्नी राधिका रॉय। इन पर धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार का मामला दर्ज कराया गया है। मामला पुराना है- करीब सात साल पुराना। कई बार छिपे ढंके अंदाज में सामने आता रहा है, लेकिन सम्बित पात्रा को NDTV की एंकर नीधि राजदान द्वारा झिड़कने के बाद अचानक पड़े छापे काफी कुछ कहते हैं। खास बात ये कि खुद भुक्तभोगी ICICI ने इस धोखाधड़ी को लेकर कोई मामला दर्ज नहीं कराया है।
अगर कोई ये कह रहा है कि प्रेस की स्वतंत्रता पर हथौड़ा चलाया जा रहा है तो विश्वास करने का मन करता है। पिछले साल ही NDTV को एक दिन तक ऑफ एयर करने का फैसला लिया गया था( हालांकि बाद में दबाव के बीच वापस भी ले लिया गया), शिकायतकर्ता की शिकायत पर अब तक किसी अदालत ने कोई आदेश या फैसला नहीं दिया है लेकिन हैरत है कि सीबीआई हरकत में तुरंत आ गई...सो जब एक ही चैनल पर बार-बार वार हो तो सवाल तो उठेंगे ही। समय आ चुका है कि सरकार समझ ले- बूझ ले कि मीडिया को डराकर या फिर धमका कर काम नहीं हो सकता बल्कि विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति ही राह आसान बना सकती है। उन्हें समझना होगा लोकतंत्र की मूल आत्मा को कुचल कर सत्ता पर ज्यादा समय तक काबिज नहीं रहा जा सकता। अगर ऐसा ही चलता रहा तो सवाल उठते रहेंगे कि क्या सरकार की नीतियों पर सवाल करना गुनाह हो गया है और क्या इसकी कीमत मीडिया को धमका कर ली जायेगी?