भूख है तो सब्र कर...
किरण राय
झारखण्ड में एक 11 साल की बच्ची की मौत दरअसल, हमारी सरकारों की अकर्मण्यता और सिस्टम की नाकामी का उदाहरण है। कैसे हम डिजिटल इंडिया और बढ़ता भारत की बात कर सकते हैं जब हमारे देश का भविष्य खिलने से पहले दम तोड़ देता है। उस बच्ची का कसूर बस इतना था कि वो उस गरीब अनपढ़ मां बाप की औलाद थी जो कागजी जाल में फंस कर रह गए। उनके पास राशन कार्ड नहीं था। तो क्या एक जान की कीमत एक कार्ड बन कर रह गया है? क्या वाकई भूख के लिए सब्र करना पड़ेगा? लेकिन कब तक?
हाल ही में ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट आई है। जिसका इस्तेमाल महज राजनीतिक छिंटाकशी के लिए किया जा रहा है। गंभीर चिंतन कोई करने को तैयार नहीं दिख रहा। शायद इसलिए क्योंकि दाग सबकी कमीज पर है। खैर, ये रिपोर्ट बताती है कि देश का हर पांचवा बच्चा कुपोषित है। इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टिट्यूट (IFPRI) ने अपनी रिपोर्ट में भारत को बेहद गंभीर श्रेणी में रखा है। रिपोर्ट में एक सलाह भी है। वो ये कि सामाजिक क्षेत्र को इस ओर मजबूत प्रतिबद्धता दिखाने की जरूरत है। रिपोर्ट हमारी पूर्व और वर्तमान सरकार के गाल पर तमाचा भी जड़ती है कहती है कि विगत 25 सालों में हमारे देश ने इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए कुछ कारगर कदम नहीं उठाये।
केन्द्र सरकार ने देश की सुरक्षा के मद्देनजर आधार कार्ड को मैनडेटरी यानी आवश्यक बना दिया है। और विडम्बना तो देखिए किसी नागरिक की पहचान से जुड़ा आधार ही झारखण्ड की संतोषी की मौत का कारण बन गया। इस परिवार का राशन कार्ड आधार ना होने की वजह से निरस्त कर दिया गया था। पिछले छह महीनों से इस परिवार को सरकारी राशन का एक दाना तक नसीब नहीं हुआ था। अच्छा हो कि सरकारें (राज्यों और केन्द्र) इस मामले की गंभीरता को समझे और सिस्टम का हवाला दे जाग कर देश के भविष्य को बचाने का गंभीर प्रयास करें।