इसे कुप्रबंधन ना कहें तो क्या कहें
किरण राय
डिजिटल होते इंडिया की ये अजब सी परेशानी है। सरकार विमुद्रीकरण के बाद लगातार अपनी पीठ थपथपा रही है। अब तक काले धन पर नकेल का राग अलापा जा रहा है। और इन सबके बीच बेचारी आम जनता फिर ऑटोमैटिक टेलर मशीन के सामने खाली हाथ लिए खड़ी है। अपना ही पैसा नहीं निकाल पा रही है। मध्यप्रदेश, कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश, तेलंगाना ऐसे कई राज्यों में पिछले दो हफ्तों ने लोगों की सांसें फुला दी हैं। संकट पर सरकार भी आंख कान मूंदे बैठी रही वो तो जब लगातार कैश क्रंच को लेकर मीडिया ने सवाल उठाने शुरु किए तो सारा अमला हरकत में आया। हैरानी हो रही है कि तर्क ऐसे दिए जा रहें हैं जो डिजिटल इंडिया के खाके पर फिट नहीं बैठते। वित्त मंत्री कह रहें हैं कि कहीं कैश की मांग ज्यादा बढ़ गई है, तो कोई जिम्मेदार शख्स कह रहा है कि चूंकि जनता FRDI और बेल इन बिल को लेकर पशोपेश में है सो कैश बैंकों में जमा नहीं हो रहे और स्थिति ऐसी हो रही है। खबर ये भी आ रही है कि RBI ने 2000 और 500 के नोट छापने कम कर दिए हैं। सरकार का एक और तर्क है कि दरअसल, कहीं कैश ज्यादा चला गया है तो कहीं कम...बस दिक्कत इसी वजह से है। सरकार कितने भी तर्क गढ़े लेकिन ये साफ हो गया है कि वर्तमान सरकार जितना चुनावों के प्रबंधन में माहिर है उतनी ही अपनी नीतियों को लागू कराने में नाकाम साबित हो रही है। इसे कुप्रबंधन ना कहा जाए तो और क्या कहा जाए?
जैसा आमतौर पर होता है इस तरह की खबर आती है तो सभी सरकारी अमले मुस्तैद हो जाते हैं। समीक्षा बैठकों का दौर शुरू हो जाता है। समितियों के गठन का फरमान जारी हो जाता है... अब भी हो यही रहा है। केन्द्रीय वित्त मंत्री आरबीआई के अधिकारियों से मिलकर इस क्षणिक संकट से उबरने का खाका तैयार कर रहें हैं। कहा जा रहा है कि अगले तीन दिनों में मसले को हल कर लिया जाएगा। रिजर्व बैंक ने अंतरराज्यीय समिति का गठन किया है जो अगले तीन दिन में अन्य राज्यों से कैश संकट वाले राज्यों में कैश पहुंचाने का काम करेगी।
अधिकारियों के एक संगठन रिजर्व बैंक ऑफिसर कन्फेडरेशन ने दावा किया है कि देश में 30 से 40 फीसदी कैश की किल्लत है और इसकी वजह रिजर्व बैंक का वो दबाव है जो डिजिटल इकोनॉमी को बढ़ाने की बात कर रहा है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया डिजिटल इकोनॉमी बनाने के लिए कैश की राशनिंग कर रहा है जिससे कई राज्यों में कैश का संकट देखने को मिल रहा है। FRDI को लेकर अनिश्चितता भी लोगों के दिमाग में घर कर गई है। अब लोग बैंक से ज्यादा कैश अपने घर में रखने में यकीन रख रहें हैं। लोगों का बैंकों के प्रति मोहभंग होने का एक और कारण लगातार सामने आ रहे बैंकिंग घोटाले भी हैं।
भले सरकार फौरी तौर पर इसे निपटा ले लेकिन आने वाले वक्त में हो सकता है इन किल्लतों से लोगों का सामना होता रहे। सो जरूरत इस बात की है कि सरकार और आरबीआई आपस में तालमेल के साथ आगे बढ़े और आम लोगों को मुसीबतों से निजात दिलाए। सही प्रबंधन और सकारात्मक सोच के साथ नीतिगत फैसलों पर गंभीरता से विचार कर उसे सार्वजनिक किया जाए, तभी जनता का बैंकों पर से डिगा विश्वास कायम हो पाएगा।