येचुरी बनाम करात
किरण राय
वामपंथी पार्टियां एकमत, एक राय के लिए पहचानी और जानी जाती है। आमतौर पर पार्टी हित को सर्वोपरि रखा जाता है और उच्च पदस्थ अधिकारी से लेकर निचले तबके का कर्मचारी तक एक ही सुर में बात करता है। लेकिन समय और परिस्थिति के साथ रिवायत बदल रही है। पार्टी में शख्सियतों की टकराहट स्पष्ट तौर पर दिख रही है। माकपा केंद्रीय समिति की बैठक में भी ऐसा ही कुछ दिखा। पार्टी येचुरी बनाम करात धड़ों में तक्सीम है ये जाहिर हो गया। यहां बात भावी चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस से गठबंधन को लेकर हो रही थी।
केन्द्रीय समिति की कोलकाता बैठक में बहस का लंबा दौर चला, जिसका हल नहीं निकल पाया। आखिरकार मतदान का सहारा लेना पड़ा। राजनीतिक प्रस्ताव के दो मसौदे पेश किए गए। एक पार्टी महासचिव सीताराम येचुरी का था। दूसरा पार्टी के पूर्व महासचिव प्रकाश करात समर्थित था। अंत में करात धड़े को ही पार्टी की केंद्रीय समिति के बहुमत का समर्थन मिला। करात के मसौदे को पचपन तो येचुरी को इकतीस वोट मिले। कोई चार दशक बाद ऐसा हुआ कि पार्टी महासचिव के राजनीतिक प्रस्ताव को केंद्रीय समिति में हार का मुंह देखना पड़ा। इससे पहले, उन्नीस सौ पचहत्तर में तब के महासचिव पी सुंदरैया अपना राजनीतिक प्रस्ताव पारित नहीं करा पाए थे।
येचुरी का प्रस्ताव गिर जाने को पार्टी के आंतरिक संकट का प्रतिबिंब माना जा रहा है। माकपा में प्रकाश करात और सीताराम येचुरी के रूप में दो धड़े होने की बात बरसों से कही जाती रही है। तब भी कही जाती थी जब करात महासचिव थे। येचुरी चाहते थे कि कांग्रेस के साथ मिलकर साम्प्रदायिक ताकतों (भाजपा) के खिलाफ लड़ाई लड़ी जाए। जबकि करात समर्थिके बंगाल विधानसभा चुनावों में कांग्रेस-माकपा गठबंधन को हार का सामना करना पड़ा था। दोनों धड़े भाजपा को मात देने की वकालत कर रहें हैं लेकिन पूर्व का अनुभव कांग्रेस को लेकर पशोपेश में भी डालने वाला रहा।
करात और येचुरी के बीच की रस्साकशी को पार्टी में बंगाल इकाई और केरल इकाई के बीच की खींचतान के तौर पर भी देखा जा रहा है। करात धड़े के प्रस्ताव को केंद्रीय समिति में शामिल केरल के सभी सदस्यों ने समर्थन दिया, सिर्फ वीएस अच्युतानंदन अपवाद थे। जबकि केंद्रीय समिति में शामिल बंगाल के अधिकतर सदस्यों ने येचुरी के प्रस्ताव का साथ दिया। आंतरिक द्वंद का अगला पड़ाव अब अप्रैल में होगा, जब पार्टी की अगली कांग्रेस होगी, जो कि हर तीन साल में होती है। अगली कांग्रेस में 2019 की रणनीति को लेकर फिर जोरदार बहस होगी, और लिहाजा राजनीतिक प्रस्ताव पर भी। भले ही पार्टी नेता फिलहाल जताने की कोशिश कर रहें हों कि सबकुछ ठीक है और करात बनाम येचुरी जैसी कोई बात नहीं है लेकिन येचुरी द्वारा इस्तीफे की पेशकश और पोलित ब्यूरो द्वारा उनके मान मनौवल ने माकपा की आम राय वाली थ्योरी को चोट तो पहुंचा ही दी है।