केजरीवाल- स्टेटस्मैन या स्टंटमैन!
किरण राय
आम आदमी को किस तरह अपनी ओर खींचना है, उसे कैसे अपने शाब्दिक मोह जाल में फंसाना है या फिर उसकी भावनाओं को कैसे कुरेद कर सहानुभूति जुटानी है इसके माहिर खिलाड़ी हैं केजरीवाल। एक सफल स्टंटमैन की तर्ज पर उनके पास अपने स्टंट से रोमांचित करने का पूरा दम खम है। अब ताजा उदारहण तो उनका वो वीडियो है जिस में वो खुद को बेचारा और बेबस बताने में जुटे हैं। जैसा कि हमारी राजनीति में होता आया है, कि जैसे ही किसी तरह की असुरक्षा का आभास हो तुरंत अपने प्रतिद्वंदी पर निशाना साध दें। अपनी हत्या हो जाने का शक जाहिर कर दें और फिर तमाशबीन बन जाएं।
केजरीवाल वैसे तो खुद को साफ सुथरी पार्टी का संयोजक मानते हैं लेकिन विगत दिनों जिस तरह से उनके विधायकों और इर्दगिर्द के लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो रही है उससे दाल में कुछ काला तो नजर आ ही रहा है-हालांकि इसमें कुछ हद तक सियासी नफे-नुकसान का गणित भी दिख रहा है। बावजूद इसके आम आदमी पार्टी की छवि को एक हद तक धक्का तो पहुंचा ही है और इसकी भरपाई दिल्ली के सीएम के इस ताजे वीडियो के जरिए करने की कोशिश की गई है।
अरविंद केजरीवाल आम लोगों की जुबान बोलते हैं और उनकी बात में साफगोई भी है लेकिन उन्हें ये भी मान लेना चाहिए कि उनके हमाम में सब एक जैसे नहीं हैं। उनका पीएम के लिए ये कहना कि उनको मरवाने के लिए वो किसी भी हद तक जा सकते हैं-हास्यास्पद लगता है। एक पल के लिए ये 'स्टंट' लोगों को रोमांचित कर सकता है लेकिन फिर सीएम की बौखलाहट को भी साबित कर देता है। सवाल खुदबुदाता है कि -खुद को क्रुसेडर की तरह पेश करके आखिर अरविंद दिखाना क्या चाहते हैं?
ये सच है कि राजनीतिक हत्यायें होती रहीं हैं। लेकिन क्या आज के परिवेश में ऐसा मुमकिन लगता है? अच्छा होता कि अरविंद एक 'स्टंटमैन' की बजाए खुद को 'स्टेटस्मैन' के तौर पर पेश करते और नई पीढ़ी को सकारात्मक राजनीति की दशा और दिशा दिखाते, जिसकी उम्मीद सबको थी।