मोदी सरकार का एक और दुस्साहस
किरण राय
मोदी सरकार का भारतीय संविधान में जम्मू कश्मीर से संबंधित धारा 370 को खत्म करने का ऐलान मोदी सरकार का एक और दुस्साहस भरा फैसला है। इससे पहले 2014 में पहली बार सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने नोटबंदी का फैसला लिया था। जिस तरह से नोटबंदी के दर्द से आज भी देश कराह रहा है, आने वाले वक्त में धारा 370 के दर्द का अहसास भी देशवासियों को होगा। जिस तरह से नोटबंदी का मकसद अपरोक्ष रूप से देश की तमाम राजनीतिक पार्टियों की ताकत को कमजोर कर आरएसएस नीत भाजपा की सत्ता की ताकत को बढ़ाना था ठीक उसी तरह से धारा 370 को हटाकर मोदी सरकार ने राष्ट्रवाद की ज्वाला को धधकाकर अपनी पकड़ को और मजबूत करना है। हालांकि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भाजपा अपने संकल्प पत्र या घोषणा पत्र में लगातार इस बात का उल्लेख करती रही है कि हमारी सरकार जम्मू कश्मीर से धारा 370 को खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है। और जैसे ही देश की जनता ने भाजपा को भारी जनादेश दिया, अमित शाह जैसे ताकतवर गृह मंत्री ने पार्टी की प्रतिबद्धता को अंजाम तक पहुंचाने में देरी नहीं की। मोदी और शाह अपनी जगह सही हैं इससे इंकार नहीं किया जा सकता। लेकिन धारा 370 को हटाने के साथ ही जम्मू कश्मीर का विभाजन कर जिस तरह से उससे पूर्ण राज्य का दर्जा भी खत्म कर दिया गया है यह पूरी की पूरी सियासत है और इससे आरएसएस, भाजपा, मोदी और शाह की नीति और नीयत पर सवाल खड़े होते हैं। निश्चित रूप से धारा 370 में कई ऐसी चीजें थी जो देशहित में नहीं थी और इसमें संशोधन कर दुरूस्त किया जा सकता था, लेकिन जिस तरह से धारा 370 का अस्तित्व को ही खत्म कर दिया गया है उससे आने वाले वक्त में कई तरह की नई मुश्किलें देश के समक्ष पैदा हो सकती हैं जिससे निपटना आसान नहीं होगा। वैसे ही जैसे नोटबंदी से पैदा हुई भीषण बेरोजगारी का दंश देश आज भी झेल रहा है।