मौके की यारी
किरण राय
नीतीश कुमार ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि वह न तो जेडीयू के नेता हैं, न महागठबंधन के नेता है और न ही एनडीए के नेता हैं। वह नेता हैं तो सिर्फ 'मौके की यारी' के। बुधवार को जब नीतीश कुमार ने बिहार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया तो खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें ट्वीट कर बधाई दी। इसके जवाब में नीतीश कुमार ने पीएम मोदी को तहे दिल से शुक्रिया भी कहा। भारतीय राजनीति के इतिहास में शायद ऐसा पहली बार हुआ होगा जब किसी मुख्यमंत्री के इस्तीफे पर देश के प्रधानमंत्री ने बधाई दी हो। कुछ ही घंटों में इन दोनों नेताओं के बीच नजदीकियां इतनी बढ़ जाए, इसे मौके की यारी न कहें तो और क्या कहें?
नीतीश कुमार और दक्षिणपंथ की सियासत के जानकार अक्सर इस बात का दावा करते रहे हैं कि नीतीश कुमार भाजपा कार्यकर्ताओं के स्वभाविक नेता हैं। यह ठीक बात है कि नीतीश कुमार ने अपनी राजनीतिक कालखंड में जो सर्वाधिक बेहतर समय गुजारे हैं उसमें अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री और फिर बिहार में भाजपा के साथ गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री बने। इतना वक्त भाजपा संग गुजारने के बाद भी अगर नीतीश भाजपा के पीएम उम्मीदवार बनाए जाने पर नरेंद्र मोदी का खुला विद्रोह कर बिहार में एनडीए की सरकार गिरा दें तो इसे क्या कहेंगे? अगर भाजपा कार्यकर्ताओं के इतने ही स्वभाविक नेता नीतीश कुमार हैं तो भाजपा के खिलाफ 2015 के बिहार चुनाव में चारा घोटाले के जनक लालू यादव के साथ मिलकर महागठबंधन क्यों बनाया?
मुख्यमंत्री बने रहने के लिए नरेंद्र मोदी का खुला विरोध, मुख्यमंत्री बने रहने के लिए लालू यादव के साथ महागठबंधन बनाकर चुनाव जीत पीएम मोदी को अपनी ताकत का अहसास कराना और फिर कुर्सी की सलामती के लिए मोदी-शाह की जोड़ी के साथ हाथ मिलाकर लालू को उनकी औकात बताना राजनीति में मौके की यारी ही तो कही जाएगी। दरअसल, नीतीश कुमार की कोई राजनीतिक प्रतिबद्धता नहीं है। और जिस नेता की कोई राजनीतिक प्रतिबद्धता नहीं होती उससे अगर आप ये उम्मीद करें कि वह जनहित में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़े तो यह बेमानी होगी। 'मौके की यारी' वाली राजनीति में यह कदापि संभव नहीं है।