स्ट्रीट फाइटर की वापसी
किरण राय
ममता बनर्जी अपने उसी तेवर के साथ वापस आईं हैं जो उन्होने लेफ्ट की सरकार को बेदखल करने के लिए अपनाया था। 34 साल की सत्ता को उखाड़ने में ममता दीदी ने स्ट्रीट फाइटर का रूख अख्तियार किया था। वैसे पश्चिम बंगाल की सीएम की पहचान ही उनका ये जुझारू व्यक्तित्व है। 2008 में दीदी की यही फाइटिंग स्पिरिट टाटा मोटर्स को बंगाल से चलता कर गई थी। दीदी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर बैठीं और सफल भी रहीं। अब जिस तरह से तृणमूल सुप्रीमो विपक्ष को एक झंडे तले लाने की जोर आजमाइश कर रहीं हैं और कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार बनाम सीबीआई वाले मामले को डील कर रहीं हैं उससे निस्संदेह मोदी-शाह की भाजपा को सचेत होने की जरूरत है। विपक्ष इस मसले पर इकट्ठा होता दिख रहा है और साफ कर रहा है कि जहां भी भाजपा नीत सरकार नहीं है या फिर विपक्ष मजबूत दिख रहा है वहां बदले की कार्रवाई के तहत सीबीआई को लगाया जाए। निश्चित हो गया है कि रोजगार, किसान, विकास के मुद्दों के साथ एक और मुद्दे पर आगामी लोकसभा चुनाव में जोर आजमाइश होगी। वैसे ये पहली बार नहीं है जब सीबीआई मुद्दा बनी हो, लेकिन पिछले लगभग एक साल से जिस तरह का बावेला मचा है उसने इस अहम संस्थान की विश्वसनीयता को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
सीबीआई के बारे में अक्सर यह कहा और देखा जाता रहा है कि केन्द्र में जिसकी सत्ता होती है उसी के हाथ में यह अहम संस्थान काम करती है। तभी तो सुप्रीम कोर्ट ने इसे पिंजरे का तोता करार दिया था। उम्मीद की जा रही थी कि 2014 में जब सत्ता बदलेगी तो तोता आजाद होगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। चाहे वो सीबीआई चीफ को बेदखल करने का मामला हो या नए चीफ की बहाली, पिंजरे की चाभी सत्ताधारी दल के हाथ में ही है। यहां ये भी जानना जरूरी है कि आन्ध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल दो ऐसे राज्य हैं जिन्होंने सीबीआई जांच बिना अनुमति कार्रवाई करने की इजाजत नहीं दी है। ऐसे में सीबीआई का कोलकाता पुलिस कमिश्नर के घर पर अकस्मात धावा बोलने को क्या कहा जाए?
साल 2011 में जब ममता सत्ता में आईं थीं तो राजनीतिक विश्लेषकों और जानकारों ने माना कि सड़क पर धरना देनी वाली नेता शायद उतना अच्छा नहीं शासन कर पाएगी। लेकिन फिर दोबारा सत्ता में आकर उन्होंने उस सोच को झुठला दिया। सड़कों पर लड़ने वाली यह नेत्री अच्छी शासक भी साबित हुई। हालांकि राजनीतिक रंजिशों और धार्मिक हिंसा को लेकर सवाल उठते रहे हैं और बंगाल में होता रक्तपात भी इसकी तस्दीक करता रहा है। लेकिन फिलहाल ममता भाजपा से बीस साबित होती दिख रही हैं और उनका ये रूप जो कुछ अर्से पहले तक नेपथ्य में चला गया था अब केन्द्र को चुनौती देता दिख रहा है।