बैकफुट पर 'सरकार'
किरण राय
शायद ये चुनावी मौसम ना होता तो रामकिशन ग्रेवाल की खुदकुशी पर कोई चूं तक ना करता। लेकिन हंगामा बरपा और ऐसा कि फिलहाल केन्द्र बैकफुट पर और विरोधी खेमा फ्रंट फुट पर खेलता दिख रहा है। हालांकि मानना पड़ेगा कि जिस अंदाज में विपक्ष ने मुद्दे को लपका और शोर मचाया उतनी ही ढिलाई का परिचय केन्द्र की ओर से दिखा। आम आदमी पार्टी से लेकर कांग्रेस नफे-नुकसान की राजनीति में लग गए हैं।
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए सरकार के मंत्री भी कोशिश तो कर रहें हैं लेकिन अब तक की सभी कोशिशें नाकाफी लग रहीं हैं। उस पर जब एक पूर्व सेनाध्यक्ष जो फिलहाल एक जिम्मेदार पद पर बैठें हैं इतना हलका बयान दे तो चीख पुकार तो होगी ही। रिटायर्ड जनरल वीके सिंह को विपक्ष की काट नहीं मिली तो उन्होंने मृतक की मानसिक स्थिति को ही जांचने की बात कह डाली। वैसे वीके साहब पहले भी अनर्गल बयान देकर पार्टी का नुकसान कराते रहें हैं। इस बार भी लग रहा है नुकसान पहुंचा कर ही मानेंगे।
हैरानी होती है और शक भी की, आखिर पूर्व सैनिक की मौत के बाद विरोधियों के खिलाफ हिरासत की कार्रवाई को क्यों अंजाम दिया गया? छोड़ें नेताओं की बात पुलिस ने तो परिवार वालों को भी नहीं बख्शा। ये जानते हुए भी कि इसका नतीजा उनके हक में नहीं होगा, आम लोग- खासकर सैन्य परिवार भड़केगा, उसने आखिर किया तो किया क्यों? सवाल उठता है कि क्या हमारा गृह मंत्रालय इतना मासूम है कि उसको पता नहीं था कि इस एक्शन का रिएक्शन क्या होगा? राजनीति को थोड़ा भी समझने वाला शख्स बता सकता है कि रामकिशन की खुदकुशी के बाद का सारा घटनाक्रम एक प्लानिंग के तहत रचा गया। कुछ भी तात्कालिक नहीं था। कहीं ये भाजपा के भीतर घात का मामला तो नहीं!