मोबोक्रेसी पर SC का चाबुक
किरण राय
21 वीं सदी के भारत में मॉब लिंचिग या भीड़तंत्र के लिए जैसे सख्त रूख की जरूरत थी सुप्रीम कोर्ट ने ठीक वैसा ही किया। मोबोक्रेसी की डिमोक्रेसी में कोई जगह नहीं है और इसकी जिम्मेदारी सरकारों की है। कानून-व्यवस्था का दारोमदार जहां राज्य सरकारों पर है वहीं नए कानून को गढ़ने की मशक्कत केन्द्र को करनी होगी। कानून सख्त हो, लोगों को सबक सिखाए इसका पूरा ख्याल सर्वोच्च अदालत ने रखा है। इसलिए दिशा निर्देश का ऐसा चाबुक चलाया है जो भीड़तंत्र को काबू करने में सक्षम हो और इसके खिलाफ जाने वालों को, चाहें वो बड़ा अधिकारी हो या फिर जिम्मेदार प्रतिनिधि उसकी नकेल कस सके। ये दिशा निर्देश इसलिए भी अहम है क्योंकि सीधे मुख्य न्यायाधीश की पीठ से आए हैं। एक बार फिर कोर्ट ने एक बेहद अहम और संवेदनशील मुद्दे पर चुप्पी तोड़ी है। चुप्पी जो इन दिनों अहम मुद्दों पर इख्तियार करना हमारे पोलिटिकल क्लास का शगल बन गया है।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डी.वाई. चन्द्रचूड़ की पीठ ने भीड़ और गो रक्षा के नाम पर होने वाली हिंसा से निपटने के हर स्तर को बारीकी से परखा और उसके बाद निरोधक, उपचारात्मक और दंडात्मक प्रावधानों के संबंध में दिशानिर्देश दिये हैं। कोर्ट ने इस संबंध में 23 दिशा निर्देश जारी किए हैं। जिसमें हर जिले में कम से कम SP रैंक के अधिकारी को नोडल अफसर के तौर नियुक्त करने, हर जिले में स्पेशल टास्क फोर्स का गठन करने की जो इस तरह के मामलो पर रोक लगाए और उन लोगो पर नजर रखे जो भीड़ को हिंसा के लिए उकसाते है। इसके साथ ही राज्य सरकारों को भी निर्देश है जिसमें ऐसे इलाको की पहचान करना भी शामिल है, जहां भीड़ के जरिये हिंसा की घटनाएं सामने आई है।
सुप्रीम कोर्ट का एक एक लफ्ज नसीहत से भरा है। अब गेंद केन्द्र, राज्य सरकारों और विधायिका के पाले में है। इस निर्देश को जिम्मेदारी भरी शुरुआत के तौर पर देखा जाना बेहद जरूरी है। क्योंकि ये तय है कि बिना राजनीतिक इच्छाशक्ति के यह मुमकिन नहीं होगा। कई सवालों के जवाब तलाशना होगा। सबसे पहले तो मोबोक्रेसी को परिभाषित करना होगा। पहचानना होगा कि क्या ये किसी साम्प्रदायिक सोच का नतीजा है या फिर अतिसतर्कता की वजह से हैं और या फिर किसी निजी खुन्नस का परिणाम हैं। निस्संदेह कोर्ट ने अपना काम कर दिया है और अब सरकार को अपनी जिम्मेदारी निभानी है साथ ही उन मूक दर्शकों को भी जो भीड़ को मनमानी करते देखते रहते हैं।