सात दिन की मोदी सरकार
किरण राय
जनादेश की उम्मीदों के पंख पर सवार होकर प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे नरेंद्र मोदी की सरकार के आज सात दिन हो चुके हैं। शुरुआती कामकाज पर गौर फरमाएं तो आम जनता की उम्मीदों- महंगाई को कम करना, रोजगार के नए अवसर पैदा करना, जनकल्याण से जुड़ी योजनाओं को सुलभ बनाना और आंतरिक सुरक्षा की बेहतरी को लेकर सरकार की तरफ से कोई बड़ा ऐलान या फैसला सामने नहीं आया है। यहां तक कि बदायूं में दो महिलाओं से बलात्कार और फिर उसकी जघन्य हत्या की घटना पर भी प्रधानमंत्री ने कोई बयान नहीं दिया। भारी जनादेश से चुनी गई सरकार के मुखिया होने के नाते और जिसकी प्राथमिकता में महिलाओं की सुरक्षा काफी मायने रखती है, इस मामले में देश आपसे सख्त कार्रवाई की उम्मीद करती है।
नई सरकार ने सरकारी कामकाज के स्टाइल में बदलाव किया है। पीएम का पद संभालने वाले दिन ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से आपने (नरेंद्र मोदी) मुलाकात की। सार्क देशों के प्रतिनिधियों से मुलाकात की। पड़ोसियों से मिलकर आगे बढ़ने की नीति निश्चित रूप से काबिलेतारीफ है। सरकार बनते ही सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पालन करते हुए ब्लैकमनी पर एसआईटी के गठन को मंजूरी दी। सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए डेडलाइन तय कर दी थी। हर नीतिगत मसले और विवादों को जीओएम (मंत्री समूह) व ईजीओएम (उच्चाधिकार प्राप्त मंत्री समूह) के हवाले करने की यूपीए सरकार की परिपाटी को खत्म करने का नई सरकार ने फैसला किया। मंत्रियों को 10 सूत्रीय एजेंडा दिया और 100 दिन का प्लान भी मांगा। अपने मंत्रियों को कहा कि वे अपने रिश्तेदारों को पीए के तौर पर तैनात न करें।
हर नई सरकारें जब सत्ता में बैठती हैं तो उसे अपने तरीके से चलाने के लिए सरकारी तंत्र में आमूल चूल परिवर्तन करती है। मोदी सरकार ने भी सात दिन में वही किया। हां, इतना जरूर है कि विगत सरकारों की तुलना में नरेंद्र मोदी के सरकार चलाने की स्टाइल अलग है। इसलिए बदलाव को लेकर मोदी सरकार के फैसले की चर्चा होना स्वभाविक भी है, लेकिन आम जनता को इससे कुछ लेना-देना नहीं है। वह तो अपनी उम्मीदों के पंख लगाकर खुले आसमान में उड़ना चाहती है। उसे तो महंगाई से निजात चाहिए, बिजली चाहिए, रोजगार चाहिए, सुरक्षा चाहिए।
प्रधानमंत्री जी! जनादेश ऐसा सोचता है कि सरकार के मंत्री जम्मू-कश्मीर में लागू अनुच्छेद 370 की खूबियों और खामियों पर खुली बहस कराने की बजाय जनता की बुनियादी जरूरतों मसलन महंगाई कम करने के लिए जमाखोरों से कैसे निपटा जाए, इसपर बहस छेड़ते तो ज्यादा अच्छा होता। बदायूं में जिस तरह की वीभत्स घटना सामने आई है उसके बाद महिला सुरक्षा और पुलिस रिफार्म पर सरकार के मंत्री कोई सकारात्मक बहस शुरू कराते तो शायद ज्यादा अच्छा होता। सरकार से बहुत छोटी-छोटी उम्मीदें जनता की होती हैं। इन छोटी-छोटी उम्मीदों को ही पूरा करने का भरोसा जताकर आपने यह भारी जनादेश पाया है। अगर कोई सरकार इन छोटी-छोटी उम्मीदों को पूरा करने के लिए यह कहे कि इसके लिए नीतियां बनाई जा रही हैं तो जनता का दिल टूटेगा। नीतियां तो बनी हुई हैं, जरूरत है सिर्फ ईमानदारी से उसे क्रियान्वित करने की।