S.M.A.R.T. पुलिस : एक और नमो मंत्र
किरण राय
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मानना है कि भारतीय पुलिस में अब बदलाव का वक्त आ गया है और पुलिस बल को अब 'स्मार्ट' हो जाना चाहिए। बकौल पीएम S.M.A.R.T. पुलिस यानी S से Strict और Sensitive, M से Moral और Mobile, A से Alert और Accountable, R से Reliable और Responsible, T से Tech savvy और Trained हो।' निश्चित रूप से असम की राजधानी गुवाहाटी में केंद्रीय गृह मंत्री की मौजूदगी में तमाम राज्यों की पुलिस प्रमुखों, खुफिया पुलिस के आला अधिकारियों के कांफ्रेंस में प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह से पुलिस तंत्र को बदलने की बातें कही, काबिलेतारीफ है क्योंकि लोकतान्त्रिक व्यवस्था में कानून और राज्य व्यवस्था के सफल संचालन में पुलिस प्रशासन की अहम और सफल भूमिका होती है, मगर यह तभी संभव है जब पुलिस महकमें का हर शख्स अपने कर्तव्यों तथा अधिकारों को भली-भांति समझकर उनका उचित ढंग से निर्हवन करे।
दरअसल भारतीय पुलिस अभी तक भारतीय पुलिस अधिनियम 1861 के तहत ही कार्य कर रही है जो कि पुलिस को अपनी मनमानी करने के अत्यधिक अवसर देती है। पुलिस में राजनीतिक दखल इतना अधिक बढ़ गया है कि पुलिस संवैधानिक कम राजनीतिक अधिक दिखाई देती है। यह सच है कि पुलिस बलों को कानून के दायरे में रहकर ही कार्य करना पड़ता है, लेकिन इन नियम कानूनों का पता न तो आम लोगों को होता है और ना ही प्रत्येक पुलिस बल को। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से एक स्मार्ट (S.M.A.R.T.) पुलिस के लिए जिन शब्दों (सख्त, संवेदनशील, नैतिक, गतिशील, सक्रिय, उत्तरदायी, भरोसेमंद, जिम्मेदार, तकनीकी ज्ञान और प्रशिक्षित) को गढ़ा है यह सुशासन स्थापित करने वाली पुलिस का मानक हो सकता है लेकिन इस मानक को बनाने से पहले पुलिस के लिए सरकार को क्या-क्या करने चाहिए उसको लेकर पीएम चुप्पी साध गए।
पूरे देश में पुलिस की संदिग्ध भूमिका को लेकर आक्रोश है। देश भर में सामाजिक अपराधों की सूचनाएं आ रही है। पुलिस या तो रिश्वत लेकर उसे दबा देती है या पीड़ित को धमकाकर थानों से भगा देती है। क्योंकि अपराधियों को राजनेताओं का संरक्षण मिला रहता है। पुलिस अपराधियों को सरंक्षण देती है और निर्दोष लोगों को झूठे मुकदमों में फंसाकर उन्हें प्रताड़ित करती है। कुल मिलाकर आप पाएंगे कि भारतीय पुलिस के तीन ही प्रमुख कार्य रह गए हैं- राजनेताओं की सुरक्षा करना, अपराधियों को संरक्षण देना और जन आंदोलनों को कुचलना। यही कारण है कि राजनेता पुलिस के चेहरे को बदलने के लिए कतई गम्भीर नहीं है।
आज की राजनीति में भारतीय पुलिस राजनेताओं के लिए सुरक्षा कवच है। राजनीति में अपराधी तत्वों की भरमार है। अपराधियों और राजनेताओं के अपवित्र गठबंधन को पुलिस सशक्त बनाती है। यही कारण है कि पुलिस को जनता से भय नहीं है और अपराधियों को संरक्षण देने से हिचक नहीं है। थानों में खुलेआम रिश्वत ली जाती है। जितना बड़ा अपराध उतनी बड़ी रिश्वत। रिश्वत नहीं देने पर छोटा अपराध करने वाला अपराधी सजा पा जाता है, बड़ा अपराधी रिश्वत के दम पर छूट जाता है। पुलिस सरंक्षण से ही अपराधों का ग्राफ बढ़ रहा है। गम्भीर अपराध की भी पुलिस ऐसी रिपोर्ट बनाती है, ताकि वे आसानी से कोर्ट से बरी हो जाएं।
ब्रिटिश सरकार ने जानबूझ कर पुलिस को कुछ विशेष अधिकार दिये थे। इन अधिकारों का उपयोग वह विद्रोहियों को कुचलने के लिए करती थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अंग्रेज पुलिस को भारतीय पुलिस बनाया जा सकता था। पुलिस के अधिकारों की समीक्षा की जा सकती थी। ब्रिटिश कानूनों और धाराओं को बदला जा सकता था, ताकि पुलिस को नागरिकों की सुरक्षा के प्रति गम्भीर बनाया जा सके। लेकिन राजनेताओं ने पुलिस के स्वरुप में बदलाव नहीं किया। और परिणाम यह हुआ कि राजनेताओं के संरक्षण से पुलिस बदतमीज, भ्रष्ट व बर्बर बन गयी।
इसलिए निश्चित रूप से भारतीय पुलिस का चेहरा बदला जाना चाहिए। उसे अंग्रेज पुलिस से भारतीय पुलिस बनाया जाना चाहिए, जो नागरिकों की रक्षा कर सके और अपराधों पर अंकुश लगा सके। संसद में पुलिस सुधार संशोधन बिल लाया जाना चाहिए। यह बहुत जरूरी है, लेकिन ऐसा लगता नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसको लेकर गंभीर हैं। छह महीने की मोदी सरकार ने पुलिस सुधार को लेकर कोई पहल नहीं की। गुवाहाटी में पुलिस प्रमुखों का कांफ्रेंस एक अवसर था जहां से वह इसकी शुरुआत कर सकती थी, लेकिन यहां भी प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने सिर्फ हवा-हवाई बातें की। कोई ठोस पहल करते हुए यह नहीं बताया कि हम यह करने जा रहे हैं। उनका कहना था कि पुलिस महकमा इस कांसेप्ट पर काम करे तो उसकी छवि सुधर सकती है। उल्टे पुलिस की छवि को खराब करने को दोष फिल्मों पर मढ़ दिया।
यहां बड़ा सवाल यह है कि पुलिस पीएम मोदी की परिभाषा के मुताबिक सख्त, संवेदनशील, नैतिक, गतिशील, सक्रिय, उत्तरदायी, भरोसेमंद, जिम्मेदार, तकनीकी ज्ञान और प्रशिक्षित कैसे बने? इसका जवाब कौन देगा? और बिना इस जवाब या उसपर कोई नीति के पुलिस का चेहरा नहीं बदला जा सकता है। पीएम मोदी जब कांफ्रेंस को संबोधित कर रहे थे, देश का संपूर्ण पुलिस महकमा उन्हें उम्मीद भरी नजरों से सुन रहा था कि प्रधानमंत्री पुलिस के हित की बात करेंगे। लेकिन पीएम के भाषण से उन्हें निराशा हाथ लगी। न तो उसके काम करने के घंटों पर बात हुई, न काम करने की परिस्थितियों पर बात हुई, न उसके सामाजिक व पारिवारिक परिस्थितियों पर पीएम ने बात की, पुलिस क्यों भ्रष्ट है इसपर भी कोई बात होती तो शायद पुलिस सुधार की बात बन जाती। पुलिस फोर्स की जिंदगी बहुत तनाव भरी होती है और ऐसे में जरूरी है कि उनके परिवार सुख-शांति से रहें, नहीं तो इससे वे भी परेशान रहेंगे। सिर्फ इतना कह देने भर से बात नहीं बनती। इसके लिए तो आपको नीति भी पारदर्शी तरीके रखनी होगी कि हम देश की पुलिस के लिए ये करने जा रहे हैं और आर्थिक पैकेज की घोषणा भी करनी चाहिए। बहरहाल, देश की तरह भारतीय पुलिस भी भगवान भरोसे चल रही है। भारतीय पुलिस का चेहरा बदलने की यह कवायद कहीं एक और 'मोदी मंत्र' बनकर न रह जाए।