कैसे हो बैंकों पर भरोसा!
किरण राय
पहले विजय माल्या और अब नीरव मोदी। दो ऐसे उद्योगपति जिन्होंने देश के बैंकिंग सेक्टर को हिला कर रख दिया। इन दोनों ने गाढ़ी कमाई को जमा कराने वालों के विश्वास को डिगा दिया है। जहां एक आम हिन्दुस्तानी को अपना लोन पास कराने में एड़ी चोटी का दम लगाना पड़ता है, कर्ज पर पैसे लेने के लिए बैंकों के चक्कर लगाने पड़ते हैं, कागज दुरुस्त कराने पड़ते हैं वहीं एक रसूखदार कितनी आसानी से अपनी मंजिल पा लेता है माल्या और मोदी उसी की मिसाल है। ये घोटाला हमारे प्रशासनिक ढांचे में व्याप्त भ्रष्टाचार की एक और मिसाल है। ऐसी मिसाल जिसकी भरपाई आखिरकार एक आम हिन्दुस्तानी को ही करनी होगी। हमारी जमा की रकम भी धोखे की भेंट चढ़ी तो बैंक में फर्जीवाड़े के खबर के बाद बैंक के शेयर मूल्य में आई गिरावट से भी निवेशकों को एक दिन में लगभग 3,000 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा। आखिर विश्वास बना रहे तो कैसे?
महाघोटाले का आफ्टर इफेक्ट दिखने लगा है। 123 साल पुराने और देश के दूसरे सबसे बड़े राष्ट्रीयकृत बैंक में हुए फ्रॉड को लेकर सियासी घमासान, कटाक्ष, फब्तियों का दौर चल पड़ा है। सब एक दूसरे की ओर उंगलियां दिखा रहें हैं। मामला माल्या बनाम मोदी बनाया जा रहा है। लेकिन सवाल उठता है भला लकीर पीटने से अब होगा क्या? इस कीचड़ के छींटे तो सबके दामन पर है। घोटाला 2011-14 के बीच हुआ। मतलब यूपीए 2 के शासनकाल से शुरु हुआ और एनडीए सरकार के पहले साल तक चला। इसके बाद प्रक्रिया लंबी चलती रही। जांच हुई और इस साल जनवरी 2018 में डिफॉल्टर और उसके परिवार को भारत से जाने का मौका दे दिया गया। एक बार फिर वही गलती जो माल्या के दौर में हुई। हैरानी इस पर भी कि सात साल से मामला चल रहा था और बड़े अधिकारियों की नींद देर से टूटी।
कितनी अजीब सी बात है कि डिफॉल्टर देश छोड़ कर जाता है फिर जमा कराने के लिए 6400 करोड़ रुपए की भुगतान की हामी भरता है। इसके लिए छह महीने की मोहलत भी मांगता है... और देश बेबसी के साथ इंतजार में जुट जाता है। इस महाघोटाले से एक और बात जाहिर होती है कि सिस्टम अगर करप्ट होगा तो भ्रष्टाचार की बेल फले फूलेगी। यहां ऑनलाइन ट्रांजैक्शन को बड़े शातिराना अंदाज में चकमा दिया गया और देश के करोड़ों जमाकर्ताओं के साथ धोखा किया गया। सिस्टम का दोहन करने का हर गुर चालाकी से सीखकर पूरा किया गया। फंड हासिल करने और रकम को पीएनबी से बाहर भेजने के लिए कुछ दागदार कर्मचारियों ने 'स्विफ्ट' का इस्तेमाल किया और रोजाना के बैंकिंग ट्रांजैक्शंस को प्रॉसेस करने वाले कोर बैंकिंग सिस्टम (CBS) को चकमा दे दिया। 'स्विफ्ट' ग्लोबल फाइनैंशल मेसेजिंग सर्विस है, जिसका इस्तेमाल प्रत्येक घंटे लाखों डॉलर भेजने के लिए किया जाता है। साफ है कि केवल आधुनिक ऑनलाइन तकनीक के जरिए सोचा जाएगा कि करप्शन पर लगाम लगेगी तो ऐसा मुमकिन नहीं होगा। जिस तरह से धोखाधड़ी हुई है उससे तो यही लग रहा है कि नियम कायदे की झड़ी सिर्फ आम आदमी को भुलावे में रखने के लिए ही लगाई गई है, जिसका खामियाजा भी उसे ही भोगना होगा।