येचुरी बनाम करात
वामपंथी पार्टियां एकमत, एक राय के लिए पहचानी और जानी जाती है। आमतौर पर पार्टी हित को सर्वोपरि रखा जाता है और उच्च पदस्थ अधिकारी से लेकर निचले तबके का कर्मचारी तक एक ही सुर में बात करता है। लेकिन समय और परिस्थिति के साथ रिवायत बदल रही है। पार्टी में शख्सियतों की टकराहट स्पष्ट तौर पर दिख रही है। माकपा केंद्रीय समिति की बैठक में भी ऐसा ही कुछ दिखा। पार्टी येचुरी बनाम करात धड़ों में तक्सीम है ये जाहिर हो गया।
इंसाफ देने वाला जब मांगे इंसाफ
आजाद भारत के 70 साल के इतिहास में ये पहली बार हुआ है कि सर्वोच्च न्यायालय के चार बड़े जज CJI के खिलाफ खुलकर सामने आए हैं। उन्होंने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं। जस्टिस चेलमेश्वर, जस्टिस मदन लोकुर, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि उन्होंने अपनी बात चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के सामने रखने की कोशिश की, लेकिन उनकी नहीं सुनी गई। यही 125 करोड़ आबादी वाले देश में संशय की स्थिति पैदा करता है।
फिनिक्स तो नहीं हैं लालू!
लालू प्रसाद यादव को सीबीआई की विशेष अदालत ने चारा घोटाले के एक मामले में दोषी पाया और उन्हें साढ़े तीन साल कैद की सजा भी सुनाई गई। सजा के ऐलान के बाद लालू ने अपने सियासी कद और लोकप्रिय छवि को प्रतिबिम्बित करती चिट्ठी जारी की। इस खत में लालू ने खुद को किसी योद्धा से कम नहीं माना है और दावा किया है कि लड़ाई लम्बी चलेगी क्योंकि वो साम्प्रदायिक शक्तियों के समक्ष झुकेंगे नहीं।
जीत कर भी मात मिली
गुजरात और हिमाचल प्रदेश में भगवा झण्डा लहरा गया है। भाजपा ने गुजरात में 99 और हिमाचल में 44 का आंकड़ा छू लिया है। इन दोनों ही जगह में मोदी मैजिक के बदस्तूर कायम रखने की बात कही जा रही है। गुजरात में लगातार छठीं दफा सत्ता हाथ में होगी तो हिमाचल प्रदेश में रिवायतन पांच साल बाद दूसरी पार्टी काबिज होगी। लेकिन ऐसा इन चुनावों में बहुत कुछ हुआ है जो कई सबक और संदेश लिए है। जनता ने बता दिया है कि लोकतंत्र की ताकत क्या होती है। गुजरात ने सैकड़ा नहीं जड़ने दिया तो हिमाचल में भाजपा के चेहरे प्रेम कुमार धूमल को ही खारिज कर दिया। जीत कर भी पार्टी को मात मिली है।
दिल से राहुल
राहुल गांधी कांग्रेस के नए अध्यक्ष बन गए हैं। अपने अध्यक्षीय संबोधन में उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि उनकी कांग्रेस कैसी होगी। उसकी आत्मा से कोई छेड़छाड़ नहीं होगी लेकिन स्वरूप में कुछ बदलाव तो होगा ही। रणनीति को अंजाम फ्रंट फुट पर आकर दिया जाएगा। वार पीछे से नहीं होगा। शालीनता होगी लेकिन आक्रामकता को तिलांजलि नहीं दी जाएगी। वो आग लगाते हैं, हम बुझाते हैं- कि तर्ज पर ही काम होगा। कोशिश मध्ययुगीन भारत को नए युग में वापसी दिलाने की होगी।
साख और राजनीतिक पुनरोत्थान की जंग
ओपिनियन पोल सामने हैं। भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर सरकार बनाने की कगार पर बताई जा रही है और कांग्रेस अपने अंक तो बढ़ाती दिख रही है लेकिन सरकार बनाने का आंकड़ा उससे दूर है। जो ट्रेंड सामने आए हैं वो इंगित करते हैं कि पाटीदार और दलित आंदोलनों के बावजूद गुजरात के बेटे 'मोदी' की लोकप्रियता असर दिखाएगी। भाजपा पिछले 22 सालों से गुजरात से बेदखल नहीं हुई है और इस बार फिर जी जान से जुटी है उसके लिेए ये जीत साख का सवाल है तो कांग्रेस के लिए राजनीतिक पुनरोत्थान का।
भारतीय राजनीति में राहुल 'अवतार'!
कांग्रेस में राहुल गांधी की बतौर अध्यक्ष ताजपोशी लगभग तय है। जल्द ही वो उस ग्रैंड ओल्ड पार्टी के सर्वोच्च पद पर आसीन हो जाएंगे जिसकी सुगुबुगाहट विगत 13 साल से महसूस की जा रही थी। कई बार टालते-टालते कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में आखिरकार प्रस्ताव पारित हो ही गया। लेकिन प्रस्ताव पारित होने में इतनी देरी की वजह क्या थी? क्या खुद पार्टी राहुल को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं थी- जिसमें वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष और राहुल की मां सोनिया गांधी शामिल हैं या फिर राहुल खुद तैयार नहीं थे?
ये जीत! देशहित में है
कांग्रेस 2014 में लगभग हर जगह परास्त हुई। राजनीतिक पंडितों के लिए भी मोदी लहर में कांग्रेस की ऐसी हार, अप्रत्याशित थी। उसके बाद कई राज्यों में चुनाव हुए जहां कांग्रेस अपनी पुरानी छवि के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाई। लेकिन अब जिस तरह देश के अलग अलग राज्यों में विधानसभा उप चुनावों में रूलिंग पार्टी के अलावा अन्य पार्टियां जीत दर्ज करा रही हैं ये जितना इन दलों के लिए अच्छा है उतना ही हमारे लोकतंत्र के लिए भी।
विकास नहीं अब छेड़ा जाएगा राष्ट्रवाद और आतंकवाद का राग
गुजरात विधानसभा चुनावों से पहले मुद्दे जुटाने और उन्हें क्रियेट करने की होड़ सी लग गई है। मुकाबला जाहिर है दो राष्ट्रीय पार्टियों में है। तो जुबानी हमले की जद में भी बड़े राष्ट्रीय लीडर आ रहें हैं। अहमद पटेल इसका ताजा उदाहरण हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार के तौर पर पहचाने जाते हैं।
भूख है तो सब्र कर...
झारखण्ड में एक 11 साल की बच्ची की मौत दरअसल, हमारी सरकारों की अकर्मण्यता और सिस्टम की नाकामी का उदाहरण है। कैसे हम डिजिटल इंडिया और बढ़ता भारत की बात कर सकते हैं जब हमारे देश का भविष्य खिलने से पहले दम तोड़ देता है। तो क्या एक जान की कीमत एक कार्ड बन कर रह गया है? क्या वाकई भूख के लिए सब्र करना पड़ेगा? लेकिन कब तक?