RSS ने सरकार को किया आगाह; जमीनी हकीकत को नजरअंदाज कर न बनायी जाए आर्थिक नीतियां
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नागपुर : मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों पर यशवंत सिन्हा की तल्ख टिप्पणी के बाद अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने भी सरकार को आगाह करते हुए कहा है कि आर्थिक सुधार और नीतियां बनाते समय जमीनी हकीकत को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। इसके साथ ही भागवत ने यह भी याद दिलाया कि हम अपने इतिहास और संस्कृति को भूल गए हैं, हमने अपने महापुरुषों के गौरव को भुला दिया है, जबकि बाहर से आए लोगों ने हमें हमारे इतिहास के बारे में बताया। हमें अपने देश के वास्तविक इतिहास और परंपरा को याद करना होगा। राष्ट्र को कोई बना या बिगाड़ नहीं सकता, राष्ट्र तो पैदा होते हैं।
संघ मुख्यालय में विजयादशमी के मौके पर आयोजित वार्षिक उत्सव समारोह के संबोधित करते हुए सरसंघचालक मोहन भागवत ने आर्थिक विशेषज्ञों, सलाहकारों और नीति निर्धारकों से अनुरोध करते हुए कहा कि वह अर्थशास्त्र की पुरानी परिपाटियों को पीछे छोडक़र व्यावहारिक सोच अपनाएं और देश की जमीनी हकीकत को ध्यान में रखते हुए आर्थिक नीतियां तय करें। उन्होंने कहा कि आज हमें ऐसी आर्थिक नीति की दरकार है जो सिर्फ बड़े उद्योगपतियों के फायदे की न हों बल्कि जिसमें मझोले और छोटे कारोबारियों तथा किसानों के हितों का भी पूरा ख्याल रखा जाए। ऐसा इसलिए जरूरी है क्योंकि ये छोटे उद्योग ही थे जो वैश्विक मंदी के दौर में भी अपना अस्तित्व बचाए रखने में कामयाब रहे थे। उस खतरनाक दौर में देश की अर्थव्यवस्था को इन्होंने ही मजबूत आधार दिया था।
संघ प्रमुख ने कहा कि आर्थिक नीतियां तय करते समय उनमें रोजगार सृजन और उचित पारिश्रमिक को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। सरकार को चाहिए कि वह लोगों में उद्यमिता को बढ़ावा दे। इसके लिए उनके कौशल विकास में मदद करे। संघ प्रमुख का यह बयान ऐसे समय में आया है जबकि देश की आर्थिक नीतियों को लेकर पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा और मौजूदा वित्त मंत्री अरुण जेटली के बीच घमासान चल रहा है। सिन्हा ने नोटबंदी के कारण अर्थव्यवस्था को गहरी चोट पहुंचने का हवाला देते हुए सरकार की आर्थिक नीतियों पर बड़े सवाल खड़े किए हैं।
92 साल का हुआ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
विजयादशमी के मौके पर ही 27 सितंबर, 1925 को आरएसएस की स्थापना की गई थी। स्थापना मोहिते के बाड़े नामक स्थान पर केशवराव बलिराम हेडगेवार के हाथों हुई थी। आरएसएस की पहली शाखा में सिर्फ 5 लोग शामिल हुए थे लेकिन आज देशभर में आरएसएस की 60,000 से ज्यादा शाखाएं चल रही हैं। आज के समय में आरएसएस दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन बन गया है। आरएसएस में महिलाओं को शामिल होने की इजाजत नही है। राष्ट्र सेविका समिति जरूर बनाई गई है लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से यह अलग संगठन हैं, लेकिन दोनों की विचारधारा मिलती-जुलती है। कई लोगो को ये गलतफहमी हो जाती है कि सेविका समिति भी आरएसएस का ही हिस्सा है लेकिन ऐसा है नहीं। संघ में संगठनात्मक रूप से सबसे ऊपर सरसंघ चालक का स्थान होता है जो पूरे संघ का दिशा-निर्देशन करते हैं। सरसंघचालक की नियुक्ति मनोनयन द्वारा होती है। प्रत्येक सरसंघचालक अपने उत्तराधिकारी की घोषणा करता है। संघ के वर्तमान सरसंघचालक डॉ॰ मोहनराव मधुकरराव भागवत हैं। संघ के ज्यादातर कार्यों का निष्पादन शाखा के माध्यम से ही होता है, जिसमें सार्वजनिक स्थानों पर सुबह या शाम के समय एक घंटे के लिये स्वयंसेवकों का परस्पर मिलन होता है। संघ दुनिया के लगभग 80 से अधिक देशो में कार्यरत है। संघ के लगभग 50 से ज्यादा संगठन राष्ट्रीय ओर अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हैं ओर लगभग 200 से अधिक संगठन क्षेत्रीय प्रभाव रखते हैं। इसमें कुछ प्रमुख संगठन हैं जो संघ की विचारधारा को आधार मानकर राष्ट्र और समाज के बीच सक्रिय हैं।
राष्ट्रीय सुरक्षा का जिक्र करते हुए मोहन भागवत ने कहा ने केंद्र सरकार से कहा है कि वे देश में आश्रय की मांग कर रहे रोहिंग्या शरणार्थियों पर निर्णय लेने से पहले राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखें। भागवत ने कहा, हम पहले से ही अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों की समस्या का सामना कर रहे हैं और अब रोहिंग्या हमारे देश में घुसपैठ कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि रोहिंग्या को आश्रय देने से न केवल हमारी नौकरी पर दबाव बनेगा, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा होगा।
कश्मीर मुद्दे पर भागवत ने कहा कि 1990 के दशक में कश्मीर घाटी से विस्थापित लोगों की समस्याओं को अभी भी सुलझाया जाना बाकी है। इसके लिए आवश्यक संवैधानिक संशोधन किए जाने जरुरी हैं। भागवत ने कहा, जाहिर तौर पर उन्हें अनुच्छेद 370 का दर्जा दिया जाना चाहिए। भागवत ने कहा कि जम्मू कश्मीर के शरणार्थियों की समस्या का अब तक समाधान नहीं हो पाया है। उनके पास मूलभूत सुविधाएं नहीं है और उन्हें अब भी संघर्ष करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि संविधान में आवश्यक सुधार होने चाहिए और जम्मू कश्मीर से जुड़े पुराने प्रतिबंधों को बदला जाना चाहिए।
गौरक्षा के मुद्दे पर भागवत ने कहा कि इसे हिंसा से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। मुस्लिम भी गौ रक्षक हैं और उन पर भी हमले हुए हैं। गौ रक्षा के नाम पर हिंसा नहीं होनी चाहिए। रक्षा और सतर्कता शब्द का कुछ लोगों ने दुरुपयोग किया है। उन्होंने कहा कि हालात ऐसे हैं कि बहुत सारे लोग गौ तस्करों द्वारा मारे जा रहे हैं। हमें धर्म से परे हटकर गौ रक्षा के मुद्दे को देखना चाहिए। गाय की रक्षा बजरंग दल के लोगों की तरह होनी चाहिए। छोटे किसानों की खुशहाली के लिए गाय बहुत जरूरी है। संविधान में भी गाय की रक्षा और गाय आधारित कृषि का उल्लेख है।
संघ प्रमुख ने कहा कि भ्रष्टाचार रोकने के लिए केंद्र सरकार ने कई सारी योजनाएं बनाई हैं फिर भी हमें इस पर एकीकृत नीतियों की जरूरत है। राज्यों की सृजन शक्ति दिखनी चाहिए। हमें और ज्यादा संगठित, मुखर और सक्रिय होने की आवश्यकता है। दुनिया भर में भारत के प्रति सम्मान बढ़ा है और अब हम खुद को अपनी संस्कृति के साथ पेश करने में ज्यादा सम्मान और विश्वास महसूस करते हैं। युवाओं से अपील करते हुए उन्होंने कहा कि अगर आप करियर बनाना चाहते हैं तो आर्मी, नौसेना और पैरा मिलिट्री फोर्स में बनाएं। हमें अपने परिवार से जवानों को सेना में भेजना होगा ताकि दुश्मनों से देश की रक्षा हो सके।
अपने संबोधन की शुरुआत भागवत ने मुंबई भगदड़ में मारे गए लोगों और घायलों के प्रति संवेदना व्यक्त कर की। उन्होंने कहा कि शुक्रवार को जो हुआ उससे बहुत दुख है। पीड़ित परिवारों के साथ मेरी संवेदना है। ऐसी घटनाओं को भूलकर हमें आगे बढ़ना होता है। इस कार्यक्रम में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस समेत भाजपा और आरएसएस के कई प्रमुख नेता मौजूद रहे।
अपने संबोधन में मोहन भागवत ने मोदी सरकार की तारीफ भी की। उन्होंने कहा कि हम 70 साल से स्वतंत्र हैं, लेकिन पहली बार दुनिया को महसूस हो रहा है कि भारत उठ रहा है। सीमा पर और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हमने दुश्मनों को जवाब दिया है। डोकलाम जैसे मुद्दे पर हमने धैर्य के साथ काम लिया। आर्थिक विकास की गति थोड़ी मंद हो गई है, लेकिन फिर भी हम इस क्षेत्र में जिस तरह से आगे बढ़े हैं, इससे सारी दुनिया में हमारी प्रतिष्ठा बढ़ी है।
दो-तीन महीने पहले कश्मीर के हालात ठीक नहीं थे, लेकिन जिस तरह से सेना और पुलिस को कार्रवाई करने की पूरी अनुमति दी गई, राष्ट्रविरोधी ताकतों की आर्थिक धारा को बंद कर दिया गया, पाकिस्तान से साथ संबंध रखने वालों को उजागर किया गया इन सब प्रयासों का अच्छा परिणाम देखने को मिल रहा है। हमारी सुरक्षा के लिए सीमा पर जवान जान की बाजी लगाकर कर्तव्य का निर्वहन कर रहे हैं। उनको वहां कैसी सुविधाएं मिल रही हैं, उनको साधन संपन्न बनाने के लिए हमें अपनी गति बढ़ानी पड़ेगी। शासन के अच्छे संकल्प तो हैं लेकिन इसको लागू कराना और पारदर्शिता का ध्यान रखना जरूरी है।