तीन तलाक विधेयक लोकसभा में बहुमत से पारित, कांग्रेस और एआईएडीएमके ने किया वॉकआउट
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : तीन तलाक विधेयक (2018) को लोकसभा ने पारित कर दिया है। अब इसे राज्यसभा में मंजूरी के लिए पेश किया जाएगा। इसके बाद ही यह कानून की रूप ले सकेगा। निचले सदन में मौजूद 256 सांसदों में से 245 सदस्यों ने इसके पक्ष में मतदान किया, जबकि 11 सदस्यों ने इसके खिलाफ अपना वोट दिया। इसके साथ ही सदन में असदुद्दीन ओवैसी के तीन संशोधन प्रस्ताव भी गिर गए। कई अन्य संशोधन प्रस्तावों को भी सदन में मंजूरी नहीं मिली।
मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस और एआईएडीएमके ने इस बिल के विरोध में वॉकआउट किया। विधेयक को लेकर वोटिंग के दौरान दोनों दल सदन में मौजूद नहीं थे। समाजवादी पार्टी के सदस्यों ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया। इस बिल के खिलाफ लाए गए सभी संशोधन प्रस्ताव सदन में गिर गए। इससे पहले दिसंबर 2017 में भी लोकसभा से तीन तलाक बिल को मंजूरी मिल गई थी, लेकिन राज्यसभा में गिर गया था। इसके बाद सरकार को तीन तलाक पर अध्यादेश लाना पड़ा था।
लोकसभा में विधेयक के पारित होने पर इन्होंने कहा...
मल्लिकार्जुन खड़गे : इस विधेयक का पास होना संविधान के खिलाफ है, यह मौलिक अधिकारों को खिलाफ है। हमने मुस्लिम महिलाओं के साथ न्याय के लिए बिल को जॉइंट सिलेक्ट कमिटी भेजने का प्रस्ताव दिया था। उन्होंने इसे पास करवाने की कोशिश की, क्योंकि लोकसभा चुनाव आ रहे हैं।
राजनाथ सिंह : लोकसभा में तीन तलाक विधेयक के पारित होने पर गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, 'यह जरूरी था और पास हो गया। कांग्रेस ने पिछली बार इसका समर्थन किया था, लेकिन पता नहीं वे इस बार क्यों वॉक आउट कर गए। मुझे पूरा भरोसा है कि यह राज्यसभा में भी पास हो जाएगा।
असदुद्दीन ओवैसी : यह कानून सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम महिलाओं को सड़क पर लाने का है, उनको बर्बाद और कमजोर करने का है। जो मुस्लिम मर्द हैं उन्हें जेल में डालने का है। यही इस कानून का गलत इस्तेमाल होगा।
राज्यवर्धन सिंह राठौर : जिस तरीके से कांग्रेस ने आज वॉक आउट किया, इसने उनकी वोट बैंक पॉलिटिक्स को फिर से जाहिर कर दिया। यह आपका डिप्लोमैटिक व्यवहार है। अब वे राज्यसभा में इसे रोकने की कोशिश करेंगे, लेकिन हमारी फिलॉसफी सबको मजबूत करने और साथ लेकर चलने की है।
लोकसभा से तीन तलाक को अपराध ठहराने वाले बिल को मंजूरी दिलाने के बाद सरकार के लिए राज्यसभा से इसे पारित कराना चुनौती होगी क्योंकि उच्च सदन में एनडीए का बहुमत नहीं है। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने सरकार और विपक्ष को इस बिल के संबंध में बहस के लिए चार घंटे का वक्त दिया था। विपक्ष का कहना था कि इस विधेयक से तीन तलाक को दंडनीय अपराध के दायरे से हटाना चाहिए, जबकि सरकार ने इसे मुस्लिम महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए अहम करार दिया।
जानिए! चार घंटे से अधिक की बहस में किसने क्या तर्क दिए
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि तीन तलाक लेने वाले मुस्लिम पुरुषों के लिए सजा का प्रावधान करने वाला यह विधेयक राजनीति नहीं है बल्कि महिलाओं को न्याय दिलाने वाला और उन्हें सशक्त करने वाला है। बिल को राजनीतिक दृष्टि से नहीं देखना चाहिए, यह मानवता और न्याय के लिए है। उन्होंने कहा, '20 इस्लामिक देश इस पर प्रतिबंध लगा चुके हैं। फिर भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में ऐसा क्यों नहीं हो सकता? मेरा आग्रह है कि आप लोग इस संदेवनशील मसले को राजनीतिक चश्मे से न देखें।'
सदन में कांग्रेस पार्टी के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि यह विधेयक समाज को बांटने और जोड़ने के बजाय तोड़ने का विधेयक है। यह संविधान के खिलाफ है, मुस्लिम पर्सनल लॉ के खिलाफ है। विधेयक के कई प्रावधान असंवैधानिक हैं। इसलिए इस विधेयक को दोनों सदनों की संयुक्त सेलेक्ट कमेटी को रेफर किया जाना चाहिए ताकि इसकी स्क्रूटनी की जा सके। एआईएडीएमके नेता पी. वेणुगोपाल, टीएमसी के सुदीप बंदोपाध्याय, एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी और एनसीपी की सुप्रिया सुले ने भी ऐसी ही मांग रखी। इसपर लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा कि ऐसा ही एक विधेयक लोकसभा में चर्चा के बाद पारित हो चुका है। सदस्य चर्चा के दौरान मुद्दे को उठा सकते हैं। लेकिन अचानक इस तरह की मांग नहीं उठाई जा सकती है कि विधेयक को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजा जाए।
कांग्रेस सांसद सुष्मिता देव ने कहा कि सशक्तिकरण के नाम पर सरकार महिलाओं को सिर्फ मुकदमेबाजी का झंझट थमा रही है। इस बिल का उद्देश्य मुस्लिम महिलाओं को सशक्त करने से ज्यादा मुस्लिम पुरुषों को दंडित करना है। भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी ने कहा कि तीन तलाक का विरोध करने वाले लोगों से मैं यह पूछना चाहती हूं कि कुरान के किस सूरा में तलाक-ए-बिद्दत का जिक्र किया गया है। यह महिला बनाम पुरुष का मसला नहीं है, यह पूरी तरह से मानवाधिकार के उल्लंघन से जुड़ा मामला है।
मालूम हो कि तीन तलाक को दंडनीय अपराध ठहराने वाले विधेयक को 17 दिसंबर को लोकसभा में पेश किया गया था। यदि इस विधेयक को मंजूरी मिलती है तो यह सितंबर में लागू किए गए अध्यादेश की जगह लेगा। प्रस्तावित कानून के मुताबिक तीन तलाक लेना अवैध होगा और ऐसा करने का दोषी पाए जाने पर पति को तीन साल तक की जेल की सजा होगी।