मीडिया के खिलाफ सरकारी गोपनीयता कानून के इस्तेमाल की कोशिश निंदनीय : मीडिया संगठन
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : राफेल मामले में अटॉर्नी जनरल द्वारा सुप्रीम कोर्ट में की गई टिप्पणियों की एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने गुरुवार को निंदा की। गिल्ड ने सरकारी गोपनीयता कानून को मीडिया के खिलाफ इस्तेमाल करने की हर कोशिश को भी निंदनीय करार दिया। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी राफेल सौदे को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए भ्रष्टाचार और पक्षपात के आरोप लगा रहे हैं। केंद्र सरकार ने इन आरोपों को खारिज किया है।
गिल्ड ने कहा कि सरकारी गोपनीयता कानून को मीडिया के खिलाफ इस्तेमाल करने की हर कोशिश उतनी ही निंदनीय है, जितना निंदनीय पत्रकारों से उनके सूत्रों का खुलासा करने के लिए कहना है। उसने इस मामले में मीडिया के प्रति उत्पन्न खतरे की भी निंदा की और सरकार से अपील की कि वह ऐसा कोई भी कदम उठाने से बचे जिससे मीडिया की स्वतंत्रता कमजोर होती हो। बयान में कहा गया, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया सुप्रीम कोर्ट के सामने की गई अटॉर्नी जनरल की उन टिप्पणियों की घोर निंदा करता है जो उन्होंने उन दस्तावेजों के संबंध में की थीं जिनके आधार पर द हिंदू समेत कई मीडिया ने राफेल सौदे पर खबर दी थी।
मालूम हो कि बुधवार को अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने शीर्ष अदालत द्वारा राफेल मामले पर दिए गए फैसले की पुनर्विचार याचिका ख़ारिज करने की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि ताजा याचिका उन दस्तावेजों पर आधारित है जो रक्षा मंत्रालय से चुराए गए थे और यह पता करने के लिए जांच जारी है कि क्या यह सरकारी गोपनीयता कानून का उल्लंघन और अपराध है या नहीं। गिल्ड के बयान में कहा गया है, हालांकि अटॉर्नी जनरल ने बाद में स्पष्ट किया कि इन दस्तावेजों का इस्तेमाल करने वाले पत्रकारों और वकीलों के खिलाफ जांच और कार्रवाई नहीं की जाएगी, लेकिन गिल्ड इस प्रकार के खतरों को लेकर चिंतित है।
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, इंडियन वीमंस प्रेस कोर और प्रेस एसोसिएशन ने एक संयुक्त बयान में कहा, हम मानते हैं कि समय आ गया है कि सरकारी गोपनीयता कानून के साथ मानहानि कानून की चौथे स्तंभ के खिलाफ संभावित दुरुपयोग के मद्देनजर समीक्षा की जाए। संयुक्त बयान में कहा गया है, हम पत्रकार संगठन भारत के अटॉर्नी जनरल द्वारा दिए गए बयानों पर चिंता जताते हैं कि द हिंदू अखबार में प्रकाशित रफाल सौदे पर खबरें रक्षा मंत्रालय से चोरी किए गए दस्तावेजों पर आधारित हैं। चौथा स्तंभ दोहरी जिम्मेदारी से बंधा हुआ है। उसका काम सवाल उठाने के साथ-साथ जनता के हित में क्या है इसकी रिपोर्टिंग करना भी है चाहे कोई भी सरकार हो। यह इसकी नैतिक जिम्मेदारी है।
हम अपने सूत्रों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध : एन. राम
द हिंदू प्रकाशन समूह के चेयरमैन एन. राम ने बुधवार को कहा कि राफेल सौदे से जुड़े दस्तावेज जनहित में प्रकाशित किए गए और उन्हें मुहैया करने वाले गुप्त सूत्रों के बारे में द हिंदू समाचारपत्र से कोई भी व्यक्ति कोई सूचना नहीं पाएगा। जानकारी को दबा कर या छिपा कर रखे जाने के कारण ही दस्तावेज प्रकाशित किए गए। एन. राम ने कहा, आप इसे चोरी हो गए दस्तावेज कह सकते हैं…हम इसको लेकर चिंतित नहीं हैं। लेकिन हमें यह गुप्त सूत्रों से मिला था और हम इन सूत्रों की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। कोई भी इन सूत्रों के बारे में हमसे कोई सूचना नहीं पाने जा रहा है। लेकिन दस्तावेज खुद ही बोलते हैं और खबरें (स्टोरी) खुद ब खुद बोलती हैं।
मालूम हो कि अटार्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ के समक्ष बुधवार को कहा था कि राफेल सौदे पर जिन्होंने भी दस्तावेज सार्वजनिक किए हैं वे सरकारी गोपनीयता कानून और अदालत की अवमानना कानून के तहत दोषी हैं। पीठ राफेल सौदे के खिलाफ सभी याचिकाओं को खारिज करने वाले न्यायालय के फैसले पर पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। राम ने कहा, मैं सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही पर टिप्पणी नहीं करूंगा। लेकिन हमने जो कुछ प्रकाशित किया वह प्रकाशित हो चुका है। वे प्रामाणिक दस्तावेज हैं और वे जनहित में प्रकाशित किए गए क्योंकि यह सब ब्योरा दबाकर या छिपाकर रखा गया था। उन्होंने कहा, यह प्रेस का कर्तव्य है कि खोजी पत्रकारिता के जरिए जनहित के लिए काफी अहमियत रखने वाली प्रासंगिक सूचना या मुद्दे सामने लाएं जाएं।
उल्लेखनीय है कि राम ने 8 फरवरी को द हिंदू में लिखा था कि भारत और फ्रांस के बीच 59,000 करोड़ रुपये के राफेल सौदे को लेकर चली वार्ता के दौरान प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) द्वारा समानांतर बातचीत किए जाने पर रक्षा मंत्रालय ने आपत्ति दर्ज कराई थी। यह राफेल सौदे से जुड़े सरकारी दस्तावेज पर कथित तौर पर आधारित था। राम ने कहा, हमने जो कुछ किया वह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(ए) वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत और सूचना का अधिकार अधिनियम, विशेष रूप से इसकी धारा आठ (1)(आई) और धारा 8(2) के तहत पूरी तरह से संरक्षित है। द हिंदू के अनुसार, राम ने कहा, इसमें किसी राष्ट्रीय सुरक्षा हित से समझौता होने का कोई सवाल ही नहीं है।
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में सरकारी गोपनीयता कानून, 1923 को खत्म किए जाने की वकालत करते हुए एन. राम ने कहा, सरकारी गोपनीयता कानून औपनिवेशिक कानून का एक आपत्तिजनक हिस्सा है जो लोकतंत्र विरोधी है और स्वतंत्र भारत में प्रकाशनों के खिलाफ शायद ही कभी इस्तेमाल किया गया है। अगर जासूसी या कुछ और होता है तो वह अलग मामला है। यहां ऐसी सामग्री है जिसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए और ऐसी सूचना है जो स्वतंत्र होनी चाहिए। यह सभी पाठकों के लिए स्वतंत्र रूप से उपलब्ध होनी चाहिए।
उन्होंने कहा, इस सरकार के कार्यकाल में मीडिया संस्थानों में भय का माहौल पैदा हुआ है लेकिन अब भारतीय मीडिया ने और भी बहुत कुछ करने का फैसला कर लिया है। सबसे बड़ी बात है कि इस मुद्दे को बड़े पैमाने पर छुपाने की कोशिश की गई। इस मुद्दे पर कुछ लोग जो चुप्पी का माहौल बनाए रखना चाहते थे वह टूटा है। एन. राम ने कहा कि अपनी इस जांच में द हिंदू ने पूरी जिम्मेदारी के साथ काम किया है। हालांकि इसका यह मतलब नहीं था कि जो कुछ भी हमारे हाथ में आया उसे खोजी पत्रकारिता के नाम पर हमने सार्वजनिक कर दिया। उदाहरण के तौर पर राफेल मामले में स्वतंत्र जांच के दौरान भारत से जुड़ी 13 प्रक्रियाओं की जानकारी हमारे हाथ लगी लेकिन अखबार ने यह फैसला किया कि उन्हें प्रकाशित करने की कोई जरूरत नहीं है।