फ्रेंच भाषी प्रवासियों की PBD में विशेष उपस्थिति
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : राजधानी दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित होने वाले 12वें प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन में आम तौर पर अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और दक्षिण पूर्व एशिया के प्रवासी भारतीयों का बोलबाला रहेगा, लेकिन कम ही लोगों को यह पता होगा कि इसमें 20 फीसदी भागीदारी ऐसे देशों से होगी, जहां की भाषा फ्रेंच है।
फ्रेंच भाषी प्रवासी भारतीयों की कुल आबादी 15 लाख से अधिक है। हिंद महासागर, अफ्रीका, यूरोप तथा दक्षिण पूर्व एशिया सहित पूरी दुनिया में ये फ्रेंच भाषी भारतीय प्रवासी फैले हैं। इनका इतिहास काफी उथल-पुथल भरा रहा है। इन प्रवासियों में से अधिकतर के पूर्वजों को फ्रांस की तत्कालीन सरकार या फ्रांसीसी व्यापारियों द्वारा 19वीं सदी के मध्य में दास प्रथा खत्म होने के बाद अश्वेत की जगह खेती के काम में लगाने के लिए ले जाया गया था।
फ्रांस के उपनिवेशों में जाने के बाद उन्होंने पाया कि उनके सभी बुनियादी अधिकार छीन लिए गए और उनसे किए गए वादों का सम्मान नहीं किया गया। उन्हें जबरदस्ती ईसाई बनाया गया, उनकी हिंदू संस्कृति और परंपरा को छिन्न-भिन्न कर दिया गया। इन्हें फ्रेंच सीखने और भारतीय भाषा भूलने पर मजबूर किया गया। 150 वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बाद आज भी उन्हें भारत से बिछुड़ना काफी खलता है।
फ्रेंच कैरीबियाई द्वीप गुआडिलूप के निवासी और गोपियो गुआडिलूप के अध्यक्ष नारायनिनसामी का कहना है, ‘जब हम अपनी स्थिति की तुलना पड़ोसी त्रिनिदाद और टोबैगो से करते हैं, तब हमें पता चलता है कि हमारे पूर्वजों के सामने कितनी विकट स्थिति रही होगी। त्रिनिदाद के लोगों ने कमोबेश अपनी भारतीय संस्कृति और परंपरा को बरकरार रखा है।’
उन्होंने कहा, ‘हम भारत से अपना संपर्क खो चुके थे और इसकी खोज फिर से पांच साल पहले तब शुरू कर पाए, जब हमने भारत की यात्रा की थी।’ प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्रालय ने भी फ्रेंच भाषी प्रवासियों के महत्व को पहचाना है और हर साल आठ जनवरी को आयोजित होने वाले प्रवासी भारतीय दिवस के दौरान एक विशेष संध्या बैठक-फ्रैंकोफोन इवनिंग-का आयोजन होता है।