सरदार पटेल की नजर में पंडित नेहरू
कुछ दिनों पहले एक पुराना दस्तावेज मिला, जिसमें पटेल ने नेहरू के बारे में अपने संस्मरण लिखे थे। इसे पढ़ा जाना चाहिए, कम से कम आज के संदर्भों में जब दोनों के रिश्तों को लेकर बहुत कुछ कहा जा रहा है। पटेल ने ये विचार नेहरू जी के 60वें जन्मदिवस पर जाहिर किए थे। 14 नवंबर 1949 को इस मौके पर नेहरू पर एक ग्रंथ का प्रकाशन हुआ जिसमें सरदार पटेल, सर्वपल्ली राधाकृष्णन, गोविंद वल्लभ पंत समेत कई महान नेताओं ने उनके बारे में अपने विचार जाहिर किए थे।
सवाल देश बचाने का
बसपा सुप्रीमो मायावती ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान इवीएम के साथ किसी साजिश के तहत छेड़छाड़ करने का जो आरोप लगाया है वह वास्तव में गंभीर है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और कांग्रेस ने भी इस तरह की आशंका जताई है। अगर देश के सामने इस तरह की चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं तो तमाम राजनीतिक दलों और व्यक्तियों को स्वार्थ से ऊपर उठकर देश बचाओ की एक सूत्री नीति को अपनाना होगा और उसके लिए प्रभावकारी रणनीति भी तैयार करनी होगी।
भाजपा के मंत्री क्यों मना रहे हैं मातम?
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 403 विधानसभा सीटों में से एक भी सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया। चार चरण का चुनाव खत्म होने के बाद अचानक ऐसा क्या हो गया कि एक के बाद एक भाजपा नेता व मोदी सरकार के वरिष्ठ मंत्री पार्टी की इस गलती को कोस रहे हैं और मातम मनाने की भरपूर नौटंकी कर रहे हैं। राजनाथ सिंह, उमा भारती और मुख्तार अब्बास नकवी ने इस संदर्भ में पार्टी के फैसले क्षोभ व्यक्त किया है।
इतिहास को सहेजकर समृद्ध होता ताईवान
पूर्वी एशिया और चीन सागर के द्वीपीय देश ताईवान में डच और जापान के औपनिवेशिक शासन के इतिहास को अनपिंग किले, नमक संग्रहालय और चीनी मिल में सहेजते हुए इन्हें विश्व पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। लगभग 400 किलोमीटर लंबे और 150 किलोमीटर चौड़े देश ताईवान ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने के लिए अपना इतिहास स्वतंत्र रूप से लिखना शुरू किया है। इसके लिए चीन से अलग ताईवान ने ऐसे स्थलों को पहचाना और इन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रखना शुरू किया है जिनका संबंध केवल ताईवान की भूमि है।
और कमजोर होगी AIADMK की सियासी ताकत
ऑल इंडिया अन्नाद्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) की हालत कमोबेश आज वही है जो कांग्रेस की इंदिरा गांधी की मौत के बाद थी। हालत इतनी बदतर होती गई कि राष्ट्रीय राजनीति की धुरी रही कांग्रेस लोकसभा चुनावों में बुरी तरह पिटी और 44 सीटों तक सिमट गई। हालात अभी भी सुधरे नहीं हैं। पार्टी अभी भी किसी करिश्माई नेता के लिए तरस रही है। जयललिता की मौत के बाद एआईएडीएमके भी उसी दौर से गुजर रही है।
बढ़ती महंगाई : पलट दो सरकार को उलटा
याद कीजिए 2014 के लोकसभा चुनाव को जब भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी यूपीए सरकार में महंगाई को मुद्दा बनाकर यह कहते नहीं थकते थे कि 'मोदी सरकार आई महंगाई गई'। भाजपा ने इस मुद्दे पर जनभावनाओं को भुनाया और जब देश में बहुमत की सरकार बन गई तो उसके बाद सर्जिकल स्ट्राइक, नोटबंदी, रेनकोट, जन्मपत्री जैसे मुद्दों में उलझाकर आम आदमी की जिन्दगी को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाले महंगाई के मुद्दे को नेपथ्य के हवाले कर दिया। अब कोई भी पार्टी प्रतिबद्धता के साथ अपने चुनाव घोषणा पत्र में महंगाई को मुद्दा नहीं बनाता है।
यूपी में कौन ज्यादा चिल्ला रहा है हिन्दू-मुस्लिम?
अचानक उत्तर प्रदेश का चुनावी मुद्दा विकास से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की तरफ जाता दिखने लगा है। बीजेपी के ठंडे बक्से से निकलकर विनय कटियार जोश में राम मंदिर निर्माण की बात करने लगे हैं। योगी आदित्यनाथ की पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जोशीली सभाएं जमकर होने लगीं। ऐसा दिखने लगा कि जैसे भारतीय जनता पार्टी ने अपने भड़काऊ बयान देने वाले नेताओं को आगे कर दिया है। तो क्या सिर्फ भारतीय जनता पार्टी ही हिन्दू-हिन्दू चिल्लाती है? क्या भारतीय राजनीति के सांप्रदायिक बनाने का पूरा जिम्मा सिर्फ भारतीय जनता पार्टी पर ही जाता है?
संभावनाओं का नया द्वार
2017 का उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव सिर्फ प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देश में राजनीतिक बदलाव की क्षमता और संभावना दोनों का संकेत बनने जा रहा है। चुनाव पूर्व कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का गठबंधन सिर्फ राजनीतिक सुविधा के मकसद से किया गया गठबंधन नहीं है। इसमें अपेक्षित और रचनात्मक तथा सार्थक बदलाव लाने की संभावना दिखाई दे रही है।
कांग्रेस को एक पूर्णकालिक राजनेता की दरकार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल के आखिरी दिन जो बोला, उस पर टिप्पणी करने के लिए कांग्रेस की तरफ से दूसरी, तीसरी पंक्ति के नेता ही मिल पाए। उसकी वजह ये रही कि पार्टी के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी छुट्टी पर थे। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, जब राहुल गांधी छुट्टी पर थे। इसलिए कांग्रेस को सख्त जरूरत है एक पूर्णकालिक राजनेता की। वो प्रियंका गांधी भी हो सकती हैं या कोई और भी। कांग्रेस के साथ स्वस्थ लोकतंत्र की सेहत के लिए भी ये जरूरी है।
नोटबंदी या अक्लमंदी?
एक आम आदमी यह सोचने को मजबूर हो गया है कि रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने जब नोटबंदी के सुझाव को मानने से इंकार कर दिया ता तब मोदी सरकार को नए गवर्नर उर्जित पटेल की मदद से इतनी हड़बड़ी में यह सब करने की जरूरत क्यों पड़ी। सरकार की मजबूरी किस सीमा तक है इसको समझने के लिए इतना ही काफी है कि रिजर्व बैंक यह बताने के कतरा रहा है कि निदेशक मंडल की जिस बैठक में नोटबंदी का निर्णय लिया गया उसमें क्या-क्या कार्यवाही हुई।