भारत के प्रधानमंत्री और उप-प्रधानमंत्री
भारतीय संविधान के अनुसार प्रधानमंत्री का पद बहुत ही महत्त्वपूर्ण पद है, क्योंकि प्रधानमंत्री ही संघीय कार्यपालिका का प्रमुख होता है। चूंकि भारत में ब्रिटेन के समान संसदीय शासन व्यवस्था को अंगीकार किया गया है, इसलिए प्रधानमंत्री पद का महत्त्व और अधिक हो गया है। अनुच्छेद 74 के अनुसार प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद का प्रधान होता है। वह राष्ट्रपति के कृत्यों का संचालन करता है।
चयन तथा नियुक्ति
प्रधानमंत्री के चयन तथा नियुक्ति के सम्बन्ध में संविधान के अनुच्छेद 75 में केवल यह प्रावधान किया गया है कि प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा। लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं है कि राष्ट्रपति अपने विवेकाधिकार से प्रधानमंत्री की नियुक्ति कर सकता है। सामान्य प्रथा यह है कि राष्ट्रपति उसी व्यक्ति को प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त कर सकता है जो लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल का नेता होता है। जो व्यक्ति लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल का नेता चुना जाता है, वह राष्ट्रपति से मिलकर सरकार बनाने का दावा करता है। इसके बाद उस व्यक्ति को प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त किया जाता है। यदि आम चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं प्राप्त होता है तो राष्ट्रपति लोकसभा में सबसे बड़े दल के नेता को या किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसे कई दलों का समर्थन प्राप्त होता है, को प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त करके उससे यह अपेक्षा करता है कि वह एक महीने के भीतर लोकसभा में अपना बहुमत साबित करे।
उदाहरण के लिए 1979 में चरण सिंह, जिन्हें कई दलों ने समर्थन दिया था तथा 1989 में वी.पी. सिंह राष्ट्रपति के द्वारा प्रधानमंत्री नियुक्त किये गये थे। इसी प्रकार 1991 में जब लोकसभा के मध्यावधि चुनाव में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था, तब लोकसभा में सबसे बड़े देल के नेता पी.वी. नरसिंहराव को राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त किया था। यही स्थिति 11वीं लोकसभा और फिर 1998 में गठित 12वीं लोकसभा में भी देखने को मिली, जब राष्ट्रपति ने लोकसभा चुनाव में किसी दल अथवा गठबंधन के बहुमत नहीं मिलने के कारण सबसे बड़ा दल और सबसे बड़े गठबंधन के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री नियुक्त किया था।
जब कार्यरत मंत्रिपरिषद के विरुद्ध लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र देना पड़ता है। ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति लोकसभा में विपक्ष के नेता को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करता है, लेकिन उसके इन्कार करने पर उस व्यक्ति को, जिसे कई दलों का समर्थन प्राप्त हो, सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करता है और उन्हें निर्देश देता है कि सरकार के गठन के पश्चात् एक मास के अंतर्गत अपना बहुमत सिद्ध करे। 1979 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के त्यागपत्र के बाद राष्ट्रपति ने लोकसभा में विपक्ष के नेता वाई. बी. चाव्हाण को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था, लेकिन उनके इन्कार करने पर कई दलों से समर्थन प्राप्त करने वाले चरण सिंह को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया था।
प्रधानमंत्री पद की योग्यता
प्रधानमंत्री पद की योग्यता के सम्बन्ध में संविधान में कोई स्पष्ट प्रावधान तो नहीं किया गया है, लेकिन इतना अवश्य कहा गया है कि प्रधानमंत्री लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल का नेता होगा। लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल का नेता होने के लिए जरूरी है कि नेता लोकसभा का सदस्य हो। इसलिए प्रधानमंत्री को साधारणत: लोकसभा का सदस्य होने की योग्यता रखनी चाहिए। यदि कोई व्यक्ति, जो कि लोकसभा का सदस्य नहीं है, प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त किया जाता है तो उसे छह महीने के अंतर्गत लोकसभा का सदस्य होना पड़ता है। उदाहरण के लिए 1967 में इंदिरा गांधी (तब राज्यसभा की सदस्य थी) तथा 1991 में जब पी.वी. नरसिंहराव प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त किये गये तब वे लोकसभा के सदस्य नहीं थे, लेकिन उन्होंने छह महीने के भीतर लोकसभा का चुनाव लड़कर संसद की सदस्यता प्राप्त की थी। हालांकि प्रधानमंत्री के लिए लोकसभा की सदस्यता अनिवार्य नहीं है। उसे वस्तुत: संसद के दोनों सदनों में से किसी एक सदन अर्थात लोकसभा या राज्यसभा का सदस्य अनिवार्यत: होना चाहिए। 1997 में प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त इन्द्र कुमार गुजराल तथा बाद में 2004 में नियुक्त प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह राज्यसभा के सदस्य रहे हैं।
संसद के किसी सदन का सदस्य नहीं होने पर भी कोई व्यक्ति प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त हो सकता है। अनुच्छेद 75 (5) के अनुसार यदि कोई व्यक्ति छह महीने के अन्दर संसद के किसी सदन का सदस्य नहीं बन जाता है, तो वह प्रधानमंत्री पद पर नहीं बना रह सकता है। इसका अर्थ है कि बाहरी व्यक्ति भी प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त हो सकता है। लेकिन उसे छह महीने के भीतर संसद के किसी सदन का सदस्य बन जाना चाहिए। यदि वह इस अवधि के भीतर संसद के किसी सदन का सदस्य नहीं बन पाता है तो उसे अपने पद से इस्तीफा देना पड़ेगा। ज्ञातव्य है कि 1996 में जब एच.डी. देवगौड़ा प्रधानमंत्री नियुक्त हुए थे तब वे किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे। उनकी नियुक्ति को एस.पी. आनन्द ने इस आधार पर न्यायालय में चुनौती दी थी कि इससे अनुच्छेद 14, 21 और 75 का उल्लंघन होता है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले पर अपना निर्णय सुनाते हुए कहा कि अनुच्छेद 75 (5) के अनुसार यह नियुक्ति विधिमान्य है।
प्रधानमंत्री पद की अवधि
सामान्यतया प्रधानमंत्री अपने पद ग्रहण की तिथि से लोकसभा के अगले चुनाव के बाद मंत्रिमण्डल के गठन होने तक प्रधानमंत्री पद पर बना रह सकता है, लेकिन इसके पहले भी वह राष्ट्रपति को त्यागपत्र देकर पदमुक्त हो सकता है, या लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पारित होने के कारण पद त्याग सकता है, या राष्ट्रपति के द्वारा बर्खास्त किया जा सकता है।
प्रधानमंत्री के वेतन एवं भत्ते
प्रधानमंत्री को प्रतिमाह 1 लाख 25 हजार रुपये वेतन के रूप में मिलते हैं। साथ ही उन्हें मुफ़्त आवास, यात्रा, चिकित्सा, टेलीफोन आदि की सुविधाएं मुहैया करायी जाती हैं। भत्ते के रूप में प्रधानमंत्री को निर्वाचन क्षेत्र, आकस्मिक खर्च, अन्य खर्चे एवं महंगाई भत्ता आदि दिया जाता है।
प्रधानमंत्री के अधिकार एवं कार्य
प्रधानमंत्री संविधान के अनुच्छेद 75 (1) अपने मंत्रिमण्डल के अन्य सदस्यों को नियुक्त करने, मंत्रिमण्डल से बर्खास्त करने तथा मंत्रिमण्डल से उनके त्यागपत्र को स्वीकार करने की सिफारिश राष्ट्रपति से करता है। वह अपने मंत्रिमण्डल के सदस्यों को विभाग का आवंटन कर सकता है तथा किसी मंत्री को एक विभाग से दूसरे विभाग में अन्तरित भी कर सकता है। चूंकि प्रधानमंत्री मंत्रिमण्डल का प्रधान होता है इसलिए उसकी मृत्यु या त्याग पत्र से मंत्रिमण्डल का विघटन हो जाता है प्रधानमंत्री का यह कर्तव्य होता है कि वह संघ के कार्यकलाप के प्रशासन सम्बन्धी और विधान विषयक की सूचना राष्ट्रपति को दे और यदि राष्ट्रपति किसी ऐसे विषय पर प्रधानमंत्री से सूचना मांगता है तो अनुच्छेद 78 के तहत प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को सूचना देने के लिए बाध्य है। प्रधानमंत्री मंत्रिमण्डल की बैठक की अध्यक्षता करता है। यदि राष्ट्रपति चाहता है कि किसी बात पर मंत्रिपरिषद विचार करे तो वह प्रधानमंत्री को सूचना देता है। आजादी के बाद देश में चुने गए प्रधानमंत्रियों के नाम और कार्यकाल इस प्रकार से हैं---
- नरेंद्र दामोदर दास मोदी (भारतीय जनता पार्टी) 26 मई 2014 से अब तक
- डॉ. मनमोहन सिंह (इंडियन नेशनल कांग्रेस) 22 मई, 2004 से 26 मई 2014 तक
- अटल बिहारी वाजपेयी (भारतीय जनता पार्टी) 19 मार्च, 1998 से 22 मई, 2004
- इन्द्र कुमार गुजराल (जनता दल) 21 अप्रैल, 1997 से 19 मार्च, 1998
- एच. डी. देवगौड़ा (जनता दल) 1 जून, 1996 से 21 अप्रैल, 1997
- अटल बिहारी वाजपेयी (भारतीय जनता पार्टी)16 मई, 1996 से 1 जून, 1996
- पी. वी. नरसिंह राव (इंडियन नेशनल कांग्रेस) 21 जून, 1991 से 16 मई, 1996
- चन्द्रशेखर सिंह (समाजवादी जनता पार्टी) 10 नवम्बर, 1990 से 21 जून, 1991
- विश्वनाथ प्रताप सिंह (जनता दल) 2 दिसम्बर, 1989 से 10 नवम्बर, 1990
- राजीव गांधी (इंडियन नेशनल कांग्रेस) 31 अक्टूबर, 1984 से 1 दिसम्बर, 1989
- श्रीमती इंदिरा गांधी (इंडियन नेशनल कांग्रेस) 14 जनवरी, 1980 से 31 अक्टूबर, 1984
- चरण सिंह चौधरी (जनता पार्टी सेक्यूलर) 28 जुलाई, 1979 से 14 जनवरी, 1980
- मोरारजी देसाई (जनता पार्टी) 24 मार्च, 1977 से 28 जुलाई, 1979
- श्रीमती इंदिरा गांधी (इंडियन नेशनल कांग्रेस) 24 जनवरी, 1966 से 24 मार्च, 1977
- गुलजारी लाल नन्दा (कार्यवाहक) 11 जनवरी, 1966 से 24 जनवरी 1966
- लाल बहादुर शास्त्री (इंडियन नेशनल कांग्रेस) 9 जून, 1964 से 11 जनवरी, 1966
- गुलजारी लाल नन्दा (कार्यवाहक) 27 मई, 1964 से 9 जून, 1964
- जवाहर लाल नेहरू (इंडियन नेशनल कांग्रेस) 15 अगस्त, 1947 से 27 मई, 1964
उप प्रधानमंत्री
भारतीय संविधान में उप-प्रधानमंत्री पद की कोई व्यवस्था नहीं है। इसके बावजूद समय-समय पर इस पद की व्यवस्था की जाती रही है। इस पद का अब तक 7 बार सृजन किया गया है। पहली बार इस पद का सृजन प्रथम लोकसभा के दौरान प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा किया गया था। इस प्रकार सरदार बल्लभ भाई पटेल उप-प्रधानमंत्री पद को सुशोभित करने वाले प्रथम व्यक्ति थे। वे 1947-1950 तक इस पद पर आसीन रहे। दूसरी बार इस पद का सृजन इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में 1967-1969 के दौरान किया गया, जब मोरारजी देसाई को इसका दायित्व सौंपा गया। 1977 में सत्ता में आयी मोरारजी देसाई सरकार में दो उप-प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और जगजीवन राम बनाये गये। जनता पार्टी से अलग होने के बाद जब चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस के समर्थन में अपनी सरकार बनायी, तब उन्होंने वाई. वी. चव्हाण को उप-प्रधानमंत्री नियुक्त किया था। तब चव्हाण कांग्रेस छोड़कर चौधरी चरण सिंह के साथ आ गये थे। इसी प्रकार 1989 में वी.पी. सिंह सरकार में और 1990 में चन्द्रशेखर सरकार में चौधरी देवीलाल को उप-प्रधानमंत्री पद पर आसीन किया गया था। इसी क्रम में जून, 2002 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को उप-प्रधानमंत्री पद का दायित्व सौंपा था। संवैधानिक दृष्टि से उप-प्रधानमंत्री और मंत्रिमण्डल के किसी अन्य सदस्य की स्थिति में कोई अन्तर नहीं होता है। परन्तु व्यवहार में उप-प्रधानमंत्री सरकार में प्रधानमंत्री के बाद दूसरे स्थान पर होता है। प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति में वह प्रधानमंत्री के समस्त दायित्वों का निर्वहन करता है। देश में अब तक नियुक्त उप-प्रधानमंत्रियों का कार्यकाल इस प्रकार रहा---
- लालकृष्ण आडवाणी -- 29 जून, 2002 से 22 मई, 2004
- चौधरी देवी लाल -- 10 नवम्बर, 1990 से 21 जून, 1991
- चौधरी देवी लाल -- 2 दिसम्बर, 1989 से 1 अगस्त, 1990
- वाई. वी. चव्हाण -- 28 जुलाई, 1979 से 14 जनवरी, 1980
- चौधरी चरण सिंह -- 24 जनवरी, 1979 से 28 जुलाई, 1979
- जगजीवन राम -- 24 जनवरी, 1979 से 28 जुलाई, 1979
- मोरारजी देसाई -- 13 मार्च, 1967 से 19 जुलाई, 1969
- सरदार वल्लभ भाई पटेल -- 15 अगस्त, 1947 से 15 दिसम्बर, 1950
कार्यवाहक प्रधानमंत्री
भारत की संवैधानिक परम्परा में यह प्रावधान है कि यदि किसी प्रधानमंत्री की उसके कार्यकाल के दौरान मृत्यु हो जाए और नया प्रधानमंत्री चुना जाना तत्काल सम्भव न हो तो कार्यवाहक अथवा अंतरिम प्रधानमंत्री की नियुक्ति तब तक के लिए की जा सकती है, जब तक कि नया प्रधानमंत्री विधिक रूप से नियुक्त नहीं कर दिया जाता। संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार प्रधानमंत्री के पद को रिक्त नहीं रखा जा सकता। भारत रत्न सम्मानित गुलजारी लाल नन्दा एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जो इस पद पर दो बार नियुक्त हुए। पहली बार तब जब देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का निधन हो गया था। दूसरी बार जब पद पर रहते देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का निधन हो गया था तब 11 से 24 जनवरी 1966 तक कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाए गए थे।