भारतीय जनता पार्टी
भारत के राजनीतिक पटल पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का उदय हालांकि 1980 में हुआ लेकिन अगर पार्टी के इतिहास की बात करें तो इसका उदय आजादी के पूर्व में तब हुआ था जब वर्ष 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) का गठन किया था।
आरएसएस का गठन स्वयंसेवी संगठन के रूप में हुआ लेकिन इसकी छवि कट्टरपंथी हिंदू संगठन के रूप में उभरी। जनवरी 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद कई लोगों ने इसके लिए आरएसएस और इसकी सोच को ज़िम्मेदार ठहराया। तत्कालीन राजनीतिक स्थिति को देखते हुए संघ परिवार ने राजनीतिक शाखा के तौर पर वर्ष 1951 में भारतीय जनसंघ का गठन किया। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी इसके नेता बने। 1952 में हुए पहले आम चुनाव में जनसंघ को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल गया।
गठन के पहले दशक में जनसंघ ने अपने संगठन और अपनी विचारधारा को मजबूत बनाने पर जोर दिया। उसने कश्मीर, कच्छ और बेरुबारी को भारत का अभिन्न अंग घोषित करने का मुद्दा उठाया। साथ ही जमींदारी और जागीरदारी प्रथा का भी विरोध किया। वर्ष 1967 में राजनीतिक ताकत के रूप में जनसंघ ने अपनी उपस्थिति का अहसास कराया। इस वर्ष पहली बार कांग्रेस का वर्चस्व टूटता दिखा और कई राज्यों में उसकी हार हुई। जनसंघ और वामपंथियों ने मिलकर कई राज्यों में सरकार बनाई। इसी दौरान पंडित दीन दयाल उपाध्याय की अगुआई में जनसंघ ने कालीकट सम्मेलन में भाषा नीति घोषित की और सभी भारतीय भाषाओं को सम्मान देने की बात कही। हालांकि इसके कुछ ही दिनों बाद पंडित दीन दयाल उपाध्याय मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर मृत पाए गए।
वर्ष 1971 के लोकसभा चुनाव से पहले अटल बिहारी वाजपेयी को जनसंघ की कमान मिली। उन्होंने पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में गरीबी पर चोट का नारा दिया लेकिन चुनावों में उसे कोई खास सफलता नहीं मिल सकी। तब इंदिरा गांधी की अगुआई में कांग्रेस की सरकार बनी। लेकिन कुछ वर्षों बाद ही इंदिरा सरकार पर भ्रष्टाचार और तानाशाही के आरोप लगने लगे। जय प्रकाश नारायण ने इसके खिलाफ मुहिम चलाई और जनसंघ भी इसमें शरीक हुआ। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वर्ष 1975 में देश में आपातकाल की घोषणा कर दी जिसका व्यापक विरोध हुआ। नतीजा 1977 के चुनावों में देखने को मिला। कांग्रेस की बड़ी हार हुई और जनता पार्टी के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनी जिसमें जनसंघ भी शामिल था।
लेकिन भारतीय राजनीति का ये पहला प्रयोग विफल हो गया और दोहरी सदस्यता के मुद्दे पर गठबंधन टूट गया। मध्यावधि चुनाव हुए जिसमें इंदिरा की अगुआई में कांग्रेस फिर सत्ता पर काबिज हो गई। राज नारायण और मधु लिमये जैसे समाजवादियों ने जनता पार्टी और आरएसएस दोनों की सदस्यता रखने का विरोध किया। इससे जनता पार्टी में बिखराव हुआ। वर्ष 1980 में जनसंघ ने खुद को पुनर्गठित किया। जनता पार्टी में शामिल इसके नेता एक मंच पर आए। नई पार्टी का जन्म हुआ और इसका नाम भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) रखा गया।
1984 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को दो सीटें मिलीं। लेकिन वर्ष 1989 में जनता दल के साथ सीटों के तालमेल से इसे 89 सीटें मिलीं। हालांकि मंडल आयोग की रिपोर्ट को लेकर मतभेदों के बाद भाजपा ने सरकार से हटने का फ़ैसला किया। इसके बाद 1990 में भाजपा ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर आंदोलन तेज कर दिया। पार्टी के नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने रथ यात्रा शुरू की जिससे पार्टी को काफी लोकप्रियता मिली।
1991 के चुनावों में पार्टी ने 120 सीटों पर सफलता हासिल की। हालांकि 1992 में बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के बाद उसपर सांप्रदायिक राजनीति को बढ़ावा देने के आरोप लगे और चार राज्यों में उसकी सराकरें बर्खास्त कर दी गईं। दिल्ली में भाजपा की पहली सरकार वर्ष 1996 में बनी लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी सबसे कम दिनों के प्रधानमंत्री साबित हुए। वह बहुमत नहीं जुटा सके और महज 13 दिनों में सरकार गिर गई। 1996 के चुनावों में पार्टी को 161 सीटें मिली थीं।
इसके बाद 1998 में पार्टी ने 182 सीटें हासिल की। इसी समय राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए का स्वरूप सामने आया। सरकार में समता पार्टी, अन्नाद्रमुक, शिवसेना, अकाली दल और बीजू जनता दल शामिल हुई। तेलुगूदेशम पार्टी ने इसे बाहर से समर्थन दिया। लेकिन ये सरकार भी 13 महीने ही चल सकी और अन्नाद्रमुक के समर्थन वापस लेने से सरकार गिर गई।
ठीक एक साल बाद 1999 में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा की अगुआई में एनडीए फिर सत्ता में आई और वाजपेयी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने। ये सरकार पूरे पांच साल चली लेकिन वर्ष 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में सत्ता की चाबी फिर कांग्रेस के हाथों में गई। पूरे एक दशक तक कांग्रेस राज का भाजपा के सबसे लोकप्रिय नेता नरेंद्र मोदी ने खात्मा किया और गुजरात के मुख्यमंत्री से सीधे देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर जा पहुंचे। पूरे 30 साल बाद देश में किसी एक पार्टी (भारतीय जनता पार्टी) को पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने का मौका मिला।
- पार्टी का संविधान
- पार्टी के अध्यक्ष और कार्यकाल
- पार्टी का सांगठनिक ढांचा