सृजन घोटाला : जानिए! अरबों के इस घोटाले की पूरी कहानी
प्रवीण कुमार/सत्ता विमर्श टीम
4 अगस्त, 2017 की तारीख और जुम्मे का दिन। भागलपुर के जिलाधिकारी आदेश तितिरमारे की गोपनीय रिपोर्ट जब राज्य मुख्यालय पहुंची तो अफसरों की नींद उड़ गई। आनन फानन में मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह, गृह सचिव आमिर सुबहानी, डीजीपी पीके ठाकुर, इओयू के आइजी जीएस गंगवार ने आपात बैठक की। अधिकारियों में सहमति बनी कि तत्काल इस सूचना को मुख्यमंत्री को दी जाए। अधिकारियों ने जब नीतीश कुमार को यह जानकारी दी तो उन्होंने तत्काल पुलिस और वित्त विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को भागलपुर रवाना होने का आदेश दिया। राज्य सरकार के हेलीकाप्टर से अधिकारी भागलपुर भेजे गये। दोपहर बाद मुख्यमंत्री पृथ्वी दिवस के मौके पर आयोजित समारोह में कहा कि एक बड़े घोटाले की जानकारी मिली है। अफसरों को भागलपुर भेजा गया है। सरकार के खजाने से निकल कर राशि सृजन नाम की गैर सरकारी संस्था के खाते में जमा हुई और वह रकम अफसर व रोजनेताओं के करीबियों के खाते में जमा हुई।
करीब एक हजार करोड़ के भागलपुर के इस चर्चित सृजन घोटाला की खबर से राज्य में सियासी घमासान मच गया। वह इसलिए क्योंकि उस वक्त (2008) नीतीश कुमार मुख्यमंत्री थे और वित्त मंत्री सुशील कुमार मोदी। फिलहाल, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस घोटाले की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश तो कर दी है, लेकिन अगर सीबीआई जांच में सुशील मोदी, गिरिराज सिंह, शाहनवाज हुसैन पर आंच आती है तो यह जांच कितना आगे बढ़ पाएगी यह कहना मुश्किल है। भागलपुर के इस सृजन घोटाले ने 1990 के दशक के चारा घोटाला और हर्षद मेहता के शेयर घोटाले की याद ताजा कर दी है। सूत्र बता रहे हैं कि सीबीआई ने घोटालेबाजों के लिंक को अगर खोज निकाला तो रकम 12 से 15 हजार करोड़ रुपये को पार कर सकती है।
अब तक 12 आरोपी गिरफ्तार
1. प्रेम कुमार (डीएम के स्टेनो) : इन्हें धोखाधड़ी के इस मामले में शामिल पाया गया है. मोबाइल पर की गयी बातचीत में इओयू को कई ऐसी बातें पता चली हैं, जिससे यह साबित हुआ है कि बैंक व नजारत शाखा के बीच यह कड़ी का काम करता था।2. अरुण कुमार सिंह (बैंक ऑफ बड़ौदा के पूर्व मैनेजर) : इनके खिलाफ कई गलत तरीके से तैयार किये गये कागज पर हस्ताक्षर मिले हैं।
3. अजय पांडेय को इस धोखाधड़ी का मास्टरमाइंड बताया जा रहा है। वह बैंक कर्मी, नजारत, डीएम के स्टेनो और सृजन के पदाधिकारियों के बीच को-ऑर्डिनेटर का काम करता था।
4. बंशीधर फर्जी तरीके से बैंक स्टेटमेंट व पासबुक तैयार किया करता था, जिसका इस्तेमाल विभाग को कागजात उपलब्ध कराने में किया जाता था।
5. राकेश यादव (नाजिर, जिला परिषद) : नाजिर राकेश यादव ने प्रेम कुमार, राकेश झा और सृजन के पदाधिकारियों से मिलकर धोखाधड़ी की और उससे लाभ लिया। मोटी रकम मिलने पर उसने कई जगह पर लाखों निवेश किया।
6. राकेश झा (नाजिर) : नाजिर राकेश झा नजारत के खाते से अवैध निकासी में बैंककर्मी, प्रेम कुमार और सृजन के पदाधिकारियों के साथ था। सारी जानकारी होने पर वह लाभ लेता रहा, लेकिन जिलाधिकारी को इसकी सूचना नहीं दी।
7. सरिता झा (सृजन की प्रबंधक) : सरिता झा को भी इस धोखाधड़ी में शामिल पाया गया है। इस बात का सबूत मिला है कि सृजन से जारी होनेवाले चेक पर सरिता झा के भी हस्ताक्षर होते थे।
8. एससी झा (सृजन के ऑडिटर) : एससी झा पर आरोप है कि इतनी बड़ी राशि की धोखाधड़ी और बंशीधर द्वारा बनाये गये बैंक स्टेटमेंट में गड़बड़ी होने के बाद भी उन्होंने उस गलती को नहीं पकड़ा। वे भी उस गिरोह में शामिल थे।
9. अरुण कुमार (जिला कल्याण पदाधिकारी)
10. महेश मंडल (नाजिर, कल्याण विभाग) : नाजिर महेश मंडल पर आरोप है कि वह कल्याण पदाधिकारी और सृजन की पूर्व सचिव मनोरमा देवी के बीच पुल का काम किया करता था।
11. विनोद कुमार (ड्राइवर) : विनोद सृजन की पूर्व सचिव मनोरमा देवी का ड्राइवर था। उस पर आरोप है कि वह चेक और विभिनन कागजात को बताये गये ठिकानों पर पहुंचाने का काम करता था।
12. अतुल कुमार (बैंक ऑफ बड़ौदा का असिस्टेंट मैनेजर) : अतुल कुमार पर भी इस धोखाधड़ी मामले में शामिल होने का आरोप है। वह कई सरकारी चेक को पास कर चुका था।
महागठबंधन से अलग होकर और भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने के साथ ही नीतीश राज को इस घोटाले से साख पर बट्टा लगता दिख रहा है। इस मामले में गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दूबे पर भी आरोप लग रहे हैं कि उनकी जमीन पर बन रहे मॉल में इस घोटाले के आरोपियों का पैसा लगा है। मॉल बनाने वाली कंपनी जीटीएम बिल्डर्स एंड प्रमोटर्स प्राइवेट लिमिटेड ने हालांकि यह स्वीकार किया है कि मॉल निशिकांत दूबे की ही जमीन पर बन रहा है और इसे बनाने की सारी जिम्मेदारी जीटीएम बिल्डर्स की है। कंपनी ने यह भी कहा है कि यह मॉल 2008 से बन रहा है और तब दूबे सांसद भी नहीं हुआ करते थे। भागलपुर पुलिस ने शहर के बीचोबीच बन रहे इस मॉल के निर्माण से जुड़ी सारी जानकारी मांगी है।
क्या है भागलपुर का सृजन घोटाला?
भागलपुर की सरकारी जमीन पर सृजन नाम की संस्था की इमारत में कई घोटालों के राज दफन हैं। सृजन महिलाओं में कौशल विकास के लिए एक सेल्फ हेल्प ग्रुप का नाम है। 2003-04 में यह संस्था रांची से बिहार के भागलपुर में शिफ्ट किया और उस समय के जिलाधिकारी ने इस एनजीओ को सरकार की जमीन लीज पर दे दिया वो भी मात्र 200 रुपया महीने पर। यही अपने आप में नियमों के प्रतिकूल था और यहीं से शुरू हो गई थी घोटाले की कहानी। सृजन ने इसी जमीन पर अपना मुख्यालय बना लिया और 2007-08 में सृजन को-ऑपरेटिव बैंक खुल गया। इसी बैंक से शुरू हुआ आर्थिक घोटाले का असली खेल जिसके तहत भागलपुर ट्रेजरी के पैसे को सृजन के खाते में ट्रांसफर किया जाने लगा और फिर वहां से सरकारी पैसे को मार्केट में लगाया जाने लगा। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सृजन में सेल्फ हेल्प ग्रुप के नाम पर कई फर्जी ग्रुप बनाए गए, उनके खाते खोले गए और उन खातों में नेताओं और नौकरशाहों ने अपना काला धन सफेद कर किया।
यह घोटाला 2008 से हो रहा है। तब बिहार में जेडीयू-भाजपा की सरकार थी और वित्त मंत्रालय सुशील कुमार मोदी के पास हुआ करता था। उसी साल ऑडिटर ने यह गड़बड़ी पकड़ ली थी और इस बात पर आपत्ति भी की थी कि सरकार का पैसा को-ऑपरेटिव बैंक में कैसे जमा हो रहा है। तत्कालीन एसडीएम विपिन कुमार ने सभी प्रखंड अधिकारियों को लिखा कि पैसा सृजन के खाते में जमा नहीं करें। लेकिन सब-कुछ पहले की तरह चलता रहा। आखिर कोई जिलाधिकारी किसके कहने पर सरकारी विभागों का पैसा सृजन को-ऑपरेटिव बैंक के खाते में ट्रांसफर कर रहे थे। एक नहीं, एक के बाद कई जिलाधिकारियों ने ने ऐसा होने दिया। यही नहीं 25 जुलाई 2013 को भारतीय रिजर्व बैंक ने बिहार सरकार से कहा था कि इस को-ऑपरेटिव बैंक की गतिविधियों की जांच की जाए। रिजर्व बैंक के नियमानुसार अगर 30 करोड़ से अधिक की गड़बड़ी होती है तो जांच सीबीआई करती है।
जानिए! कौन है इस घोटाले का असली सरगना?
भाजपा के किसान मोर्चा के उपाध्यक्ष विपिन शर्मा को एक हजार करोड़ के इस सृजन घोटाले का मास्टरमाइंड कहा जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि विपिन शर्मा सृजन की सर्वेसर्वा मनोरमा देवी, उनकी मौत के बाद उनके बेटे अमित कुमार और उसकी पत्नी प्रिया कुमार के करीबी रहे हैं। विपिन शर्मा भाजपा में पूर्व सांसद शाहनवाज हुसैन और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के भी करीबी रहे हैं लेकिन इस मामले के उजागर होने के बाद से फरार चल रहे हैं। भाजपा ने विपिन शर्मा को हालांकि पार्टी से निलंबित कर दिया है। इसके अलावा राज्य कैबिनेट ने जयश्री ठाकुर नाम के एक पदाधिकारी को भी बर्खास्त किया है। जयश्री ठाकुर बांका जिला में भू-अर्जन पदाधिकारी थीं और 2013 में राज्य सरकार के आर्थिक अपराध इकाई ने छापेमारी कर उनकी अवैध चल और अचल संपत्ति जब्त की थी। सबसे पहले उसी समय सृजन का नाम चर्चा व विवादों में आया था क्योंकि सृजन को-ऑपरेटिव बैंक से उनके खाते में 7 करोड़ से ज्यादा राशि जमा की गई थी।
भागलपुर के लोग बताते हैं कि मनोरमा देवी ने सृजन को शून्य से शिखर पर पहुंचाया। इसमें उनकी बड़ी भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन उनकी मौत के बाद करोड़ों का मामला उजागर होना इस बात को बल देता है कि कहीं इसमें बड़े सफेदपोश की भूमिका तो नहीं। ऐसा तो नहीं कि मनोरमा का हिसाब-किताब लिखित होता था। वह कंप्यूटर या फिर आधुनिक सॉफ्टवेयर पर अधिक भरोसा नहीं करती थी। ऐसे में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि जब वर्षोँ से यह खेल जारी था तो आज चर्चा में क्यों आया। कहीं कुछ सफेदपोश अपनी गर्दन बचाने की फिराक में तो नहीं थे या फिर कहीं ऐसा तो नहीं कि मनोरमा देवी के जाने के बाद संस्था का दारोमदार नये चेहरे पर आने से कुछ को अपनी बादशाहत जाती दिखी। मनोरमा देवी जब तक जिंदा रहीं, तब तक कुछ गिने-चुने शख्स ही उनके आस-पास रहे। उन पर वह भरोसा भी सबसे अधिक करती थीं। यही नहीं, शहर की कई संपत्तियों की खरीदारी भी इसी शख्स के नाम से हुई।
कौन हैं घोटाले की मुख्य आरोपी प्रिया कुमार?
इस पूरे घोटाले की मास्टरमाइंड थी मनोरमा देवी जो सृजन संस्था की संचालक थी। लेकिन मुख्य आरोपियों में जिस प्रिया कुमार का नाम लिया जा रहा है वह झारखंड प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेता की बेटी हैं। मनोरमा देवी के बेटे अमित और बहु प्रिया कुमार ने इस पूरे घोटाले को कई और लोगों के साथ मिलकर अंजाम तक पहुंचाया। बताया जा रहा है कि प्रिया कुमार झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मौजूदा उपाध्यक्ष अनादि ब्रह्म की बेटी हैं। प्रिया कुमार रांची की रहने वाली हैं और उनकी पढ़ाई-लिखाई रांची के संत अन्ना स्कूल और फिर जेवियर कॉलेज से हुई है। सात साल पहले उनकी शादी 2007 में सृजन घोटाले के कर्ताधर्ता अमित कुमार से हुई। अनादि ब्रह्म झारखण्ड में कांग्रेस के पुराने कार्यकर्ताओं में से हैं।
स्टूडेंट्स यूनियन पॉलिटिक्स से झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी (जेपीसीसी) में उपाध्यक्ष अनादि पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय के करीबी भी माने जाते हैं। सृजन संस्था के कई कार्यक्रमों में उनको देखा भी गया है। हालांकि सृजन संस्था के कार्यक्रम में भाजपा के कई सांसदों को भी देखा गया है।
2013 में हल्ला मचने के बाद भी दबा रहा मामला
2013 में इस मामले के प्रकाश में आने के बाद भागलपुर के एक स्थानीय निवासी संजीत कुमार ने केंद्रीय वित्त मंत्री को पत्र लिखकर सृजन के कारनामों की जांच करने का अनुरोध किया था। 25 जुलाई 2013 को लिखी इस चिट्ठी की एक कॉपी उन्होंने रिजर्व बैंक के गवर्नर और बिहार के मुख्यमंत्री कार्यालय में स्पीड पोस्ट से भेजी थी। इस पत्र के आधार पर रिजर्व बैंक के पटना कार्यालय ने बिहार के निबंधक सहकारी समिति से उचित करवाई कर शिकायतकर्ता संजीत कुमार को सूचित करने का आदेश दिया। भागलपुर के तत्कालीन जिलाधिकारी प्रेम सिंह मीणा ने दो सदस्यीय एक टीम भी बनायी लेकिन रहस्मय ढंग से इस टीम के एक सदस्य बीमार पड़ गए और जिलाधिकारी का भी तबादला हो गया। संजीत ने अपनी शिकायत में लिखा था कि सृजन महिला को-ऑपरेटिव सोसाइटी एक्ट के तहत रजिस्टर्ड है और इसे बैंक चलाने या पब्लिक के पैसे लेने का किसी भी प्रकार का लाइसेंस रिजर्व बैंक से प्राप्त नहीं है और रिज़र्व बैंक के आदेश के बाद भी जांच पूरी नहीं होना साबित करता है कि इस संस्था को बड़े अधिकारियों और सत्ता पर काबिज नेताओं का संरक्षण प्राप्त है।
राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव अब संजीत कुमार की इसी शिकायत और पत्र का हवाला देते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और वित्त मंत्री सुशील मोदी के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। लेकिन लालू यादव के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि जब सुशील मोदी और नीतीश कुमार दोनों इस मामले को उजागर करने में विफल रहे तब उसी वित्त मंत्रालय में जब उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी और सहकारिता मंत्री अलोक मेहता 20 महीने तक विराजमान रहे तब वो किस दबाव में सृजन घोटाले को उजागर करने में विफल रहे। सहकारिता मंत्री के नाते अलोक मेहता भी अपने भागलपुर दौरे के दौरान सृजन के कार्यालय गए और मनोरमा देवी की मेजबानी स्वीकार की।