मिशन 2019 : बिहार में सीटों के बंटवारे को लेकर गठबंधनों में खींचतान
सत्ता विमर्श ब्यूरो
पटना : बिहार में मिशन 2019 को लेकर सियासी हलचल बेहद तेज़ है। बाहर से सबकुछ शांत दिख रहा है लेकिन अंदरखाने हर बड़ा नेता अपनी चालें चल रहा है। 40 लोकसभा सीटों के लिए यहां की राजनीति में लड़ाई उन्नीस-बीस की है। अभी यहां मूल रूप से दो गठबंधन मैदान में हैं। भाजपा की भागीदारी वाला एनडीए जिसकी कमान नीतीश कुमार के हाथों में है और दूसरी ओर है कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल तथा एनसीपी जिसकी बागडोर लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव संभाल रहे हैं। फिलहाल लालू यादव बेल पर हैं इसलिए पर्दे के पीछे सारे फैसले वे ही कर रहे हैं। दोनों गठजोड़ों ने आगामी लोकसभा चुनाव के लिए सीटों के बंटवारे पर बात करनी शुरू कर दी है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह बिहार में एनडीए सरकार बनने के बाद पिछले दिनों पहली बार पटना आए थे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने पुराने बयानों को भुलाकर सुबह उनके साथ जलपान किया और रात में उन्हें अपने घर खाने पर भी बुलाया। अमित शाह और नीतीश कुमार के बीच जो बातचीत हुई उसी पर निर्भर है कि बिहार में नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी साथ-साथ चुनाव लड़ेंगे या फिर 2014 की तरह 2019 में भी नीतीश अकेले पड़ जाएंगे।
भाजपा के कुछ विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि मामला 20-20 पर फंस गया है। बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं। नीतीश कुमार ने इशारों-इशारों में भाजपा नेतृत्व को यह कह दिया है कि 2019 में भाजपा को 40 में से 20 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए और बाकी 20 सीटें अपनी सहयोगी पार्टियों के लिए छोड़ देनी चाहिए, लेकिन भाजपा की समस्या यह है कि इस वक्त लोकसभा में उसके बिहार से आने वाले 22 सांसद हैं। अगर पार्टी नीतीश कुमार की बात मान लेती है तो उसे अपने दो जीते सांसदों के टिकट काटने होंगे। टिकट काटने से ज्यादा बड़ी बात यह होगी कि भाजपा नीतीश के सामने झुकती दिखेगी और इसका असर उसकी पार्टी पर भी पड़ेगा जो अमित शाह को स्वीकार नहीं है।
नीतीश कुमार के करीबी जेडीयू के एक नेता का कहना है कि 20 लोकसभा सीटों पर लड़ने के बावजूद भाजपा ही बड़ी पार्टी रहेगी क्योंकि बाकी की 20 सीटों पर रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी को भी समायोजित किया जाएगा। नीतीश चाहते हैं कि बस इन्हीं तीन पार्टियों का गठबंधन ही बिहार में एनडीए की शक्ल में चुनाव लड़े। इसका मतलब होगा केंद्रीय मंत्री उप्रेंद्र कुशवाहा की पार्टी को एनडीए से बाहर करना और कुशवाहा मतदाताओं को नाराज करने का जोखिम उठाना।
बिहार की सियासत को करीब तीन दशक से समझने-जानने वाले जानकारों का कहना है कि 1990 के दशक में नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा बेहद करीब हुआ करते थे। एक वक्त ऐसा था जब नीतीश ने सुशील मोदी को हटाकर उपेंद्र कुशवाहा को विपक्ष का नेता बना दिया था। लेकिन इसके बाद दोनों के बीच दूरियां बढ़ती चली गई। जब से एनडीए में नीतीश कुमार की वापसी हुई है, उपेंद्र कुशवाहा के लिए स्थितियां मुश्किल हो गई हैं और हो सकता है कि वे 2019 से पहले भाजपा को छोड़कर लालू यादव से दोस्ती कर लें।
उधर, भाजपा नीतीश कुमार के सामने दूसरा प्रस्ताव लेकर आई है। वह उन्हें 22-5-13 का प्रस्ताव मंजूर करने के लिए कह रही है। इसका मतलब है 22 सीटों पर भाजपा चुनाव लड़े, पांच सीट रामविलास पासवान के परिवार के लिए छोड़ी जाएं और बाकी 13 सीटों पर नीतीश कुमार कुछ अपने उम्मीदवार उतारें और कुछ को समायोजित भी करें। भाजपा रामविलास पासवान के छह सांसदों में से एक को जेडीयू के टिकट पर एडजस्ट करवाना चाहती है। इसके अलावा वह जेडीयू के खाते की सीटों पर ही राजद के बागी सांसद पप्पू यादव और उनकी पत्नी रंजीत रंजन जो कांग्रेस से लोकसभा सांसद हैं को भी एडजस्ट करना चाहती है।
पप्पू यादव और उनकी पत्नी लालू यादव की पार्टी से गठबंधन नहीं करना चाहते और लालू भी किसी सूरत में उन्हें समर्थन देने के लिए तैयार नहीं हैं। पप्पू यादव लालू के परिवारवाद और खासकर तेजस्वी यादव पर करारा हमला करते रहे हैं। इस वजह से भाजपा यह मानकर चल रही है कि पप्पू यादव और उनकी पत्नी एनडीए से ही चुनाव लड़ेंगे। लेकिन इसमें भी एक पेंच है। पप्पू की जिद है कि वे एनडीए में तभी शामिल होंगे जब अपनी अलग पार्टी से चुनाव लड़ सकें। लेकिन भाजपा की कोशिश है कि वे जेडीयू टिकट पर मधेपुरा और सुपौल से चुनाव लड़ें। अगर ऐसा हुआ तो नीतीश के पास कहने के लिए 13 सीटें होंगी लेकिन इनमें से तीन पर उम्मीदवार भाजपा के मन का होगा। ऐसा चाहने के पीछे भाजपा की अपनी दलील है। 2014 में बिहार की 40 में से 30 सीटों पर भाजपा चुनाव लड़ी थी। 10 सीटें उसने अपने सहयोगियों के लिए छोड़ी थीं। भाजपा का तर्क है कि अगर वह 2019 में 30 की जगह 22 सीटों पर चुनाव लड़ती है तो वह एनडीए में सबसे ज्यादा आठ सीटें छोड़ने वाली पार्टी होगी।
कुछ-कुछ ऐसी ही स्थिति दूसरे गठबंधन में भी है। कांग्रेस चाहती है कि 2019 में लालू यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव 20-20 के फॉर्मूले पर सीटों का बंटवारा करें। 20 सीटों पर राजद के उम्मीदवार चुनाव लड़ें और बाकी 20 कांग्रेस, एनसीपी, जीतनराम मांझी की हम और एनसीपी के लिए छोड़ी जाएं। उपेंद्र कुशवाहा अगर इस गठबंधन में आते हैं तो उन्हें भी चार सीटें मिलेंगी। लेकिन तेजस्वी यादव वैसा ही कुछ चाहते हैं जैसा भाजपा ने 2014 में किया था। 30 सीटों पर वे अपने पार्टी के उम्मीदवार लड़ाना चाहते हैं और बाकी 10 सीटें सहयोगियों के लिए छोड़ना चाहते हैं। यह एक ऐसा पेंच है जिसे सुलझाना राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के बस की बात नहीं है। यह तो जब सोनिया गांधी और लालू यादव बात करेंगे तभी मामला बन सकेगा।