'टीपू' सुल्तान की जिंदगी में आई डिंपल तो...
किरण राय
सांसद डिंपल यादव का आज जन्मदिन है। जी हां! जिस दिन अखिलेश अपनी राजनीतिक बुआ मायावती को जन्मदिन की बधाई देते हैं उसी दिन वह अपनी डिंपल का भी जन्मदिन मनाते हैं। अखिलेश की जिंदगी में डिंपल एक पत्नी के रूप में तो अहम हैं ही, उनकी राजनीतिक जिंदगी में भी डिंपल काफी लकी रही हैं। प्रेम विवाह करने वाले अखिलेश ने मुख्यमंत्री बनने के बाद एक इंटरव्यू में कहा था कि शादी होते ही उनकी किस्मत बदल गई थी। डिंपल का उनकी जिंदगी में आना काफी भाग्यशाली रहा।
अखिलेश अपनी लकी चार्म से कहां मिले और दोनों की लव स्टोरी का आगाज कैसे हुए इसका किस्सा काफी रोचक है। किसी हिन्दी फिल्म के लव बर्डस की तरह इनकी कहानी में भी प्यार, तकरार, मान मनौवल सब कुछ है। क्योंकि मामला पॉलिटिकल क्लास का है सो वो तड़का भी इनकी जिन्दगी की कहानी में है।
दोस्ती से बढ़ा सिलसिला
बात तब की है जब डिंपल स्कूल में और अखिलेश इंजिनियरिंग कर रहे थे। आर्मी अधिकारी कर्नल आरसीएस रावत की बेटी डिंपल 17 की और दिग्गज मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश 21 साल के थे। एक मित्र ने दोनों का परिचय कराया और फिर सिलसिला चल पड़ा। पहली मुलाकात काफी बढ़िया रही। दोनों के बीच बातचीत बढ़ी और फिर ये दोस्ती प्यार में बदल गई। शांत और सादगी पसंद डिम्पल का हर अंदाज अखिलेश को भाने लगा, शायद यही वजह थी कि ऑस्ट्रेलिया जाने के बाद भी खतों और ग्रीटिंग्स के जरिए रिश्ते को बनाये रखने की कोशिश जारी रही।
जब लिया 'टीपू' ने शादी का फैसला
अखिलेश ऑस्ट्रेलिया से लौटे तो पिता ने शादी को लेकर मंशा पूछी। 4 साल से रिलेशनशिप में रहने के बाद इरादा पक्का था- लेकिन पिता को बताते तो बताते कैसे? सो एक जरिया तलाशने लगे और अपनी बीमार दादी मूरती देवी में उन्हें वो उम्मीद की किरण दिखाई दी। दादी के लाडले 'टीपू' ने अपनी लव स्टोरी तफसील से बताई और पोते की चहेती दादी ने हामी भर दी। फिर तो इरादों के पक्के अखिलेश ने कमर कस ली, जिद ठान ली और फिर वही किया जिसका फैसला सालों पहले ले चुके थे।
पॉलिटिक्स, जाति-बिरादरी सब ने रोका रास्ता
एक बाधा पार हो चुकी थी। लेकिन पिता को मनाना भी आसान नहीं था। आड़े जाति- बिरादरी की दीवार आई। अखिलेश के साथ यादव लगा था तो डिंपल नाम के साथ रावत जुड़ा था। मुद्दा यादव और राजपूत का ही नहीं था। इससे कहीं आगे पॉलिटिकल अनरेस्ट एक बड़ा कारण था। 90 के दशक में पहाड़ी विद्रोह चरम पर था। अलग राज्य उत्तरांचल की मांग जोरों पर थी। पहाड़ के लोग मुलायम को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानते थे। कहा जाता है कि डिम्पल का गांव भी इसके खिलाफ था।
वो दो लोग जिन्होंने सख्त मुलायम को मनाया
पहाड़ी विद्रोह के कारण मुलायम को बेटे की ज़िन्दगी की चिंता थी। उनको लगता था कि कहीं उनके विरोधी अखिलेश की जान के दुश्मन न बन जाएं। दूसरी फिक्र अपनी राजनीतिक जमीन के खिसकने की भी था। मुलायम यादवों की राजनीति करते थे। उन्हें ये डर भी था कि कहीं यादव और राजपूतों के बीच शादी को लेकर सियासी रिश्ते ना तार-तार हो जायें। ऐसे में बिहार और उत्तराखंड के दो नेताओं ने मुलायम का मान-मनौवल किया। ये दो नेता थे बिहार के वरिष्ठ सपा नेता कपिल देव सिंह और दूसरे उत्तराखंड के ही सपा नेता विनोद बर्थवाल। समीकरण समझाया, ये भी बताया कि भविष्य में ये रिश्ता राजनीतिक दृष्टि से काफी फायदेमंद साबित होगा। वर्तमान में अंकल अमर सिंह भले ही अखिलेश के लिेए 'बाहरी' हो गए हों लेकिन तब इस 'बाहरी' ने भी बाप-बेटे के बीच की दूरी को पाटने का काम किया, नतीजतन 24 नवंबर 1999 को डिम्पल अखिलेश की हो गईं।
क्यों हैं टीपू की लकी चार्म
अखिलेश डिम्पल को अपने लिए भाग्यशाली मानते हैं। उन्हें लगता है कि डिम्पल के आने के बाद किस्मत ने उनका भरपूर साथ दिया। राजनीति चमकी और सियासत के हिसाब से देश के सबसे बड़े सूबे के सीएम तक बन गए। नॉन पॉलिटिकल बैकग्राउंड वाली डिंपल भी अब राजनीतिक रंग में रंग चुकी हैं। पेंटिंग की शौकीन डिंपल पति के राजनीतिक करियर को बड़ी बारीकी और प्यार से रंग भी रहीं हैं। सियासी हलकों में चर्चा है कि कांग्रेस- सपा के बीच समझौते के पीछे भी डिंपल की सोच है। यानी अखिलेश की डिम्पल राजनीतिक मंच पर भी सक्रिय हैं। तभी तो जहां अखिलेश की बात होती है वहां डिंपल का जिक्र खुद-ब-खुद हो जाता है। प्यार की तस्दीक तो सपा के विज्ञापन भी करते हैं। हाल ही में सपा के दो वी़डियो जारी किए गए। दोनों में सपा के पुराने दिग्गजों की बनिस्बत अखिलेश और उनकी अर्धांगिनी की लाइफ स्टाइल को तरजीह दी गई। डिंपल अब राजनीति को ज्यादा करीब से समझने बूझने भी लगी हैं।