केशव मौर्या : उप्र की बिसात पर BJP का पहला दांव
प्रवीण कुमार
केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश में अगले साल 2017 में होने वाला विधानसभा चुनाव की कमान 49 साल के एक ऐसे व्यक्ति को सौंपी है, जिसकी छवि तो कट्टर हिंदुत्ववादी की रही है, लेकिन उसका दामन इतना दागदार है कि उससे पार पाकर पार्टी को उत्तर प्रदेश की सत्ता दिला पाना बहुत कठिन होगा।
असल में भाजपा ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए पिछड़ा व हिंदुत्ववादी होने के नाते केशव प्रसाद मौर्य पर पहला दांव खेला है। मगर सच तो यह भी है कि सांसद बनने के बाद जो शख्स अपने क्षेत्र सिराथू में हुए विधानसभा उपचुनाव में भी पार्टी को जीत नहीं दिला पाए वो यूपी की बिसात पर शह और मात के खेल में कितना कुछ कर पाएंगे, कहना बहुत मुश्किल है। सांसद बनने के बाद 13 सितंबर, 2014 को सिराथू सीट पर उपचुनाव हुआ था। लेकिन उनकी ही सीट पर सपा उम्मीदवार वाचस्पति पासी ने भाजपा उम्मीदवार संतोष सिंह पटेल को लगभग 25 हजार मतों से हराया था।
बहरहाल, वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में दिए गए शपथ पत्र के मुताबिक, प्रदेश भाजपा के नए अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्या पर 11 आपराधिक मुकदमें दर्ज हैं जिनमें से आठ कौशाम्बी और दो इलाहाबाद में हैं। केशव पर हत्या की साजिश का भी आरोप लगा है। 2011 में मोहम्मद गौस हत्याकांड में उन्हें साजिश का आरोपी बनाया गया। इसके साथ ही उनपर धार्मिक भावनाएं भड़काने, धमकी, मारपीट और सीएलए एक्ट समेत कई अन्य धाराओं में भी मुकदमें दर्ज हैं। हालांकि एक मुकदमे में केशव के बरी होने की बात भी कही जा रही है। मौर्या ने 2013 में ईसाई धर्म प्रचारक और वक्ता पीटर यंगरीन के इलाहाबाद में कार्यक्रम का जबरदस्त विरोध किया था। वीएचपी के इस आंदोलन की कमान केशव प्रसाद मौर्या को ही सौंपी गई थी। इस मामले में केशव को जेल भी जाना पड़ा था।
केशव प्रसाद मौर्या का हालांकि कोई खास राजनीतिक अनुभव नहीं रहा है। वे काफी समय से आरएसएस और विश्व हिन्दू परिषद से जुड़े रहे हैं। मौर्या विहिप के पूर्णकालिक सदस्य भी रहे हैं। यूपी की सियासत के जानकारों के मुताबिक आरएसएस विधानसभा चुनावों में भाजपा के लिए जमीन तैयार कर रही है। भाजपा हाईकमान ने मौर्या को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर एक तो पिछड़ी जाति के वोट बैंक में सेंध लगाकर सोशल इंजीनियरिंग को मजबूत करेगी वहीं, दूसरी तरफ उनके नाम को आगे लाकर पार्टी में गुटबाजी को ख़त्म करने का प्रयास भी किया गया है।
मौर्या भाजपा के हार्डलाइनर नेताओं में से एक माने जाते हैं और उन्हें हमेशा विहिप और आरएसएस का समर्थन मिलता रहा है। कौशांबी के गांव में चाय बेचने वाले के बेटे केशव पहले करोड़पति बने, फिर ऐतिहासिक वोट हासिल कर सांसद बने और अब प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी। केशव मौर्य कौशांबी के सिराथू के कसया गांव के रहने वाले हैं। उनके पिता श्याम लाल वहीं चाय की दुकान चलाते थे। केशव की प्राथमिक शिक्षा दीक्षा भी गांव में ही हुई। कहते हैं कि बचपन में केशव पिता की दुकान चलाने में मदद करते थे और अखबार भी बेचते थे। लोकसभा चुनाव के दौरान नामांकन के समय दिए गए हलफनामे के मुताबिक केशव दंपति पेट्रोल पंप, एग्रो ट्रेडिंग कंपनी, कामधेनु लॉजिस्टिक आदि के स्वामी हैं। साथी ही जीवन ज्योति अस्पताल के पार्टनर हैं।
विहिप कार्यकर्ता के रूप में केशव 18 साल तक गंगापार और यमुनापार में प्रचारक रहे। साल 2002 में शहर पश्चिमी विधानसभा सीट से उन्होंने भाजपा प्रत्याशी के रूप में राजनीतिक सफर शुरू किया। उन्हें बसपा प्रत्याशी राजू पाल ने हराया था। इसके बाद साल 2007 के चुनाव में भी उन्होंने इसी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा। इस बार भी उन्हें जीत तो हासिल नहीं हुई। 2012 के चुनाव में उन्हें सिराथू विधानसभा से जीत मिली। यह सीट पहली बार भाजपा के खाते में आई थी। दो साल तक विधायक रहने के बाद केशव ने फूलपुर सीट पर भी पहली बार भाजपा का झंडा फहराया। मोदी लहर में इस सीट पर 503564 वोट हासिल कर एक इतिहास बना दिया।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो भाजपा दलितों और पिछड़ों को लुभाना चाहती है। इसी वजह से केशव प्रसाद मौर्या को नया अध्यक्ष बनाया गया है। पिछले तीन प्रदेश अध्यक्ष सवर्ण जाति के थे। वे विधानसभा चुनाव में कुछ खास नहीं कर पाए थे। ऐसे में पार्टी ने पिछड़ी जाति के नेता मौर्या पर दांव लगाया है। पार्टी को उम्मीद है कि मौर्या के नेतृत्व में पार्टी बसपा के वोट बैंक में सेंध लगा पाएगी।