नहीं चेते मुलायम तो रिपीट होगा सिंधिया घराने का इतिहास
किरण राय
नई दिल्ली : शेख्सपियर का बहुचर्चित ड्रामा है जुलियस सीजर। जब इसके तीसरे एक्ट पर पहुंचेंगे तो 5वें सीन में जुलियस का जो परिवार, उसके माता-पिता उसके साथ हमकदम बनकर चलते हैं वही उसके विचार जानने के बाद खिलाफ हो जाते हैं। माता-पिता को सहन नहीं होता कि उनकी बेटी उनके फैसले के विरुद्ध कैसे जा सकती है। मां बेटी की मौत की कामना करती है तो पिता उसे सम्पत्ति से बेदखल करने की बात करता है। शेख्सपियर के इस ड्रामे में जुलियस-सीजर के प्यार को गढ़ा गया। लेकिन इस कहानी के इर्द-गिर्द अभिभावकों के अहम को बखूबी बुना गया। आजकल मुलायम परिवार में भी कुछ ऐसा ही चल रहा है। यहां एक पिता है, एक चाचा है और एक बेटा है जो सीएम है। बेटे को अग्रजों के विरुद्ध जाने का खामियाजा बार-बार भुगतना पड़ता है। बड़ों की बात तो वह मान रहा है, लेकिन कब तक? कहा नहीं जा सकता।
अगले साल यानी 2017 में विधानसभा चुनाव होने हैं। सभी प्रमुख दल अपने लाव-लश्कर के साथ मैदान में हैं। किसी पार्टी से जुड़ने और किसी से टूटने का सिलसिला जारी है। लेकिन इन सबके बीच निगाहें फिलहाल राज कर रही पार्टी पर है। गुजरे एक महीने में पार्टी के भीतर इतना कुछ घटा कि परिवार के साथ-साथ सत्ता का सियासी गणित भी गड़बड़ाने लगा। See Saw की तरह कभी कोई ऊपर जाता तो कभी कोई किसी को नीचे धकेल देता है। फौरी तौर पर मुलायम ने सब कुछ संभालने की कोशिश की। बेटे को डपटा तो भाई को पुचकारा। इस सब उठापटक के बीच पार्टी का नुकसान जो हुआ सो हुआ लेकिन सूबे के सीएम की किरकिरी तो गजब हुई। उन्होंने जिस-जिस का विरोध किया वो सब पूरे सम्मान के साथ पार्टी में स्थापित हो गए। फिलहाल सब कुछ शांत और नियंत्रण में दिख रहा है, लेकिन क्या वाकई ऐसा है? कहीं ये किसी तूफान से पहले की शांति तो नहीं?
सब कुछ यथास्थिति लगता अगर अखिलेश बार-बार कांग्रेस उपाध्यक्ष की तारीफ में कसीदे ना पढ़ते। उनके हर एक्शन का समर्थन ना करते दिखते। एक आम जिज्ञासु आदमी यही सोचेगा इसमें ऐसा नया क्या है? सब कह रहें हैं और मीडिया की खबरें तस्दीक कर रहीं हैं कि सपा यूपी में अगर आशा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं करती है और हंग असेम्बली के आसार बनते हैं तो वो किसी और की बजाए कांग्रेस का हाथ थाम सकती है। ये बहुत सामान्य और दिखती हुई सच्चाई है। लेकिन परदे के पीछे कुछ और भी पक रहा है। कुछ ऐसा जिससे बगावत की बू आ रही है। कुछ ऐसा जिससे पिता-पुत्र के संबंध दांव पर लगे हैं और बहुत कुछ ऐसा जिससे हो सकता है अपनी साख बचाने के लिए, अपना रुतबा बरकरार रखने के लिए अखिलेश अलग रास्ता अख्तियार कर लें। हो सकता है मुलायम परिवार ग्वालियर के सिंधिया परिवार का इतिहास दोहरायें। जब एक बेटे ने अपनी आन के लिए, अपने उसूलों के लिए मां को ना कह दिया था। इस बेटे का नाम था माधवराव सिंधिया और मां थी राजमाता विजयाराजे सिंधिया।
विजयाराजे पहले कांग्रेस में थीं, लेकिन इंदिरा गांधी ने जब राजघरानों को खत्म कर दिया और उनकी संपत्तियों को सरकारी घोषित कर दिया तो उनकी इंदिरा गांधी से ठन गई थी। इसके बाद वे जनसंघ में शामिल हो गईं। उनके बेटे माधवराव सिंधिया भी उस वक्त जनसंघ में शामिल हो गए थे लेकिन वे कुछ समय ही रहे। बाद में उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया। इससे विजयाराजे अपने बेटे से नाराज हो गई थीं। उस वक्त विजयाराजे ने कहा था कि इमरजेंसी के दौरान उनके बेटे के सामने पुलिस ने उन्हें लाठियों से पीटा था। उन्होंने अपने बेटे पर अरेस्ट करवाने का आरोप भी लगाया था। विजयाराजे अपने बेटे से इतनी नाराज थीं कि उन्होंने अपनी सारी जायदाद बेटियों के नाम कर दी। हालांकि अभी विजयाराजे सिंधिया की वसीयतों पर अदालत में मामला चल रहा है। ये दो वसीयत 1985 और 1999 में आई थीं।
भारतीय जनता पार्टी की उपाध्यक्ष रहीं विजया राजे सिंधिया और उनके बेटे कांग्रेस के माधवराव सिंधिया के बीच औपचारिक बातचीत के रिश्ते भी नहीं रह गए थे। राजमाता विजया राजे को हमेशा यह पीड़ा रही कि माधव राव ने उनकी राय की उपेक्षा कर कांग्रेस का दामन थाम लिया। वो खीज उनकी हमेशा बनी रही। यहां तक की उन्होंने माधवराव को मुखाग्नि देने से भी मना कर दिया था, ये और बात है कि उनका अंतिम संस्कार उनके इसी इकलौते बेटे ने किया।
फिलहाल मुलायम परिवार का मामला इसी ओर जाता दिख रहा है। बेटे की चल नहीं रही और पिता अपनी चलाने से बाज नहीं आ रहे। किसी आज्ञाकारी बेटे की तरह वो मान तो रहें हैं लेकिन जिस तरह वो कांग्रेस उपाध्यक्ष को सराह रहे हैं, उनके हर एक तर्क का समर्थन कर रहें हैं उससे लग रहा है कि आने वाले दिनों में हो सकता है वो चुनाव बाद अपने समर्थकों के साथ अलग हो जायें और राहुल जी की कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना दें। मुलायम हमेशा कहते हैं राजनीति अनिश्चितताओं का खेल है और इसमें कोई अछूत नहीं होता। हो सकता है इस बार उनके सुपुत्र पिता के इस कथन को चरितार्थ कर दें और चाचा की दबंगई से निजात पाने का रास्ता निकाल लें।