भारत में राजनीतिक घोटाले
सियासी पार्टियां सत्ता में आती हैं और चली जाती हैं लेकिन सत्ता के दलालों, बिचौलियों का एक समूह पिछले 65 वर्षों से इस देश पर शासन कर रहा है। जब भी कोई चुनाव होता है, ये दलाल किस्म की प्रजाति बड़ी संख्या में जुट जाती है। हम दशकों से यह शिकायत करते आ रहे हैं कि भ्रष्टाचार हमारे देश को दीमक की तरह खोखला कर रहा है, लेकिन हर साल घोटाले बढ़ते ही चले जा रहे हैं और इसके साथ-साथ लूटी गई धनराशि भी।
देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में 80 लाख के जीप घोटाले से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में ताजातरीन 1.86 लाख करोड़ के कोयला घोटाले इस बात को पुष्ट करते हैं। जानने वाले अच्छी तरह से जानते हैं कि ड्रग माफिया, गोल्ड माफिया या फिर तमाम छोटे-बड़े विभिन्न आपराधिक गिरोह यदि किसी के सामने पानी भरते हैं तो वे हैं कोल माफिया। जितना कालाधन कोयले के कारोबार में है उतना न तो सोने, चांदी, हीरे और मोती के तस्करी में है और न ही शेयर घोटाले में। इसलिए कोयले की कलंक गाथा ने घोटालों की सभी कहानियों के पीछे छोड़ दिया है। यूपीए सरकार की कोल ब्लॉक आवंटन पर हाल ही में आई कैग की रिपोर्ट भी इसी तरह की कहानी बयां करती है।
भारत को आज़ाद हुए 65 साल बीत चुके हैं लेकिन देश आज भी गुलाम है। आप पूछेंगे किसका गुलाम तो जवाब है घोटालों का गुलाम, भ्रष्टाचार का गुलाम। हां इस देश में घोटालों की एक पूरी श्रृंखला है और वह भी बहुत लंबी। भारत में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचा है, जहां घोटाले न हुए हों। दरअसल भारतीय लोकतंत्र के जो खंभे हैं उनकी जवाबदेही धीरे-धीरे सामाजिक जीवन से ग़ायब होती जा रही है। देश के नेताओं और सरकारी अफसरों के मूल्य निरंतर घटते जा रहे हैं और आज स्थिति यह हो गई है कि सभी जनता को ठगने में लगे हुए हैं। हम आपको यहां बता रहे हैं कि इस पूरे भ्रष्ट तंत्र की नींव इतिहास में कितनी दूर तक जाती है और इसमें आप रू-ब-रू होंगे भारत के बड़े-बड़े घोटालों से।
जीप घोटाला (1948)
जीप घोटाला 1948-49 में आज़ाद भारत का सबसे पहला घोटाला (80 लाख) था। वीके कृष्णामेनन ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त थे। पाकिस्तानी हमले के बाद भारतीय सेना को क़रीब 4603 जीपों की जरूरत थी। मेनन ने इस सौदे में अहम जिम्मेदारी निभाई। बताया जाता है कि उनके कहने पर रक्षा मंत्रालय ने कतिपय विवादास्पद कंपनियों से समझौते किए और औपचारिकताएं पूरी किए बगैर ही उन्हें भारी धनराशि अग्रिम भुगतान के रूप में दे दी। उन कंपनियों को 2000 जीपों के लिए क्रय आदेश दिया गया था लेकिन ब्रिटेन से भारत में 155 जीपों, जो कि चलने की स्थिति में भी नहीं थीं की मात्र एक खेप ही पहुंची। तत्कालीन विपक्ष ने वीके कृष्णामेनन पर 1948 में जीप घोटाले का गंभीर आरोप लगाया। उन दिनों कांग्रेस की तूती बोलती थी और वह पूर्ण बहुमत में भी थी। विपक्ष कहने भर की थी। विपक्ष के द्वारा प्रकरण की न्यायिक जांच के अनुरोध को रद्द करके अनन्तसायनम अयंगर के नेतृत्व में एक जांच कमेटी बिठा दी गई। बाद में 30 सितम्बर 1955 में सरकार ने जांच प्रकरण को समाप्त कर दिया। यूनियन मिनिस्टर जीबी पंत ने घोषित किया कि ‘सरकार इस मामले को समाप्त करने का निश्चय कर चुकी है। यदि विपक्षी संतुष्ट नहीं हैं तो इसे चुनाव का मुद्दा बना सकते हैं।' 3 फरवरी 1956 के बाद शीघ्र ही कृष्णामेनन को नेहरू केबिनेट में रक्षा मंत्री नियुक्त कर दिया गया।
बीएचयू फंड घोटाला (1956)
आजाद भारत का पहला शैक्षणिक घोटाला बीएचयू फंड घोटाला के रूप में सामने आया था। 1956 में किए गए इस घोटाले के तहत विश्वविद्यालय के अधिकारियों पर 50 लाख के फंड हड़पने के आरोप लगे थे। अंदाजा लगा सकते हैं कि उस दौर में 50 लाख रुपए की क्या कीमत रही होगी? इस घोटाले का पर्दाफाश नहीं हो सका क्योंकि उस दौर के नेता और मंत्री इस पूरे घोटाले को घोलकर पी गए। तब भी केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी।
हरिश्चंद्र मूंदड़ा कांड (1958)
इस मामले में राजनीति और पूंजीपति के बीच अपवित्र गठजोड़ उजागर हुआ था। 1958 में फिरोज गांधी ने एक सनसनीखेज मूंदड़ा कांड का खुलासा कर संसद को हिला दिया था। उन्होंने बताया कि उद्योगपति हरिदास मूंदड़ा की कई कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए उनके शेयर भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) द्वारा 1.25 करोड़ रुपए में खरीदवाए गए। निगम द्वारा शेयरों की बढ़ी हुई कीमत दी गई। जांच हुई तो मामले में तत्कालीन वित्त मंत्री टीटी कृष्णामाचारी, वित्त सचिव एचएम पटेल और भारतीय जीवन बीमा निगम के अध्यक्ष दोषी पाए गए। मूंदड़ा पर 160 करोड़ रुपए के घोटाले का आरोप था। 180 अपराधों के मामले थे। दबाव बढ़ा तो वित्त मंत्री को पद से हटा दिया गया और मूंदड़ा को 22 साल की सजा मिली। कृष्णामाचारी को सिर्फ उनके पद से हटा दिया गया।
तेजा लोन घोटाला (1960)
जहाजरानी उद्योगपति धर्म तेजा को पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1960 में बिना किसी जांच पड़ताल के एक शिपिंग कंपनी शुरू करने के लिए सरकार से 20 करोड़ रुपए का लोन दिला दिया था। लेकिन बाद में धनराशि को देश से बाहर भेज दिया। धर्म तेजा को जयंत जहाजरानी कंपनी की स्थापना के लिए ऋण के रूप में 20 करोड़ मिले, लेकिन कंपनी की स्थापना के बिना ही वह पैसे के साथ भाग गया था। बाद में उसे यूरोप से गिरफ्तार किया गया और 6 साल की कैद हुई थी।
नागरवाला कांड (1971)
इंदिरा गांधी के शासनकाल के दौरान 24 मई 1971 में घटित हुआ चर्चित नागरवाला कांड पर आज तक रहस्य का पर्दा पड़ा हुआ है। दिल्ली के संसद मार्ग स्थित स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के मुख्य कैशियर बी.पी.मल्होत्रा को इंदिरा गांधी की आवाज में किसी ने फोन किया और कहा कि कोड बताने वाले आदमी को 60 लाख रुपए तुरंत दे दिए जाएं। बाद में पता चला कि इंदिरा गांधी ने ये फोन नहीं किया था। इस धोखाधड़ी के लिए कैप्टन रुस्तम सोहराब नागरवाला को गिरफ्तार किया गया। नागरवाला भारतीय खुफिया विभाग से जुड़ा हुआ था। मार्च 1972 में जेल में ही उसकी रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई। इतना ही नहीं, इस मामले की जांच करने वाले पुलिस अधिकारी की भी छह महीने बाद सड़क हादसे में मौत हो गई। आज तक इस पूरे मामले की असलियत का पता नहीं चल पाया है।
कुओ तेल कांड (1980)
वर्ष 1980 में इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन से 3 लाख टन मिट्टी तेल और 5 लाख टन हाईस्पीड डीजल खरीदने के टेंडर जारी किए गए। यह टेंडर हरीश जैन को मिला जिन्होंने हांगकांग की कुओ ऑयल लिमिटेड की ओर से ठेका लिया था। बाद में खुलासा हुआ कि इस पूरे प्रकरण में 9 करोड़ रुपए की हेराफेरी की गई थी। पोल खुलने पर पेट्रोलियम मंत्री पीसी सेठी को हटना पड़ा। लंबे समय तक जांच चलती रही और अंत में फाइल ही गुम हो गई।
बोफोर्स तोप घोटाला (1987)
बोफोर्स तोपों की खरीद में दलाली का खुलासा अप्रैल 1987 में स्वीडन रेडियो ने किया था। रेडियो के मुताबिक बोफोर्स कंपनी ने 1437 करोड़ रुपए का सौदा हासिल करने के लिए भारत के बड़े राजनेताओं और सेना के अधिकारियों को रिश्वत दी थी। राजीव गांधी सरकार ने मार्च 1986 में स्वीडन की एबी बोफोर्स से 400 होबित्जर तोपें खरीदने का करार किया था। इस खुलासे ने भारतीय राजनीति में खलबली मचा दी और राजीव गांधी इसके निशाना बने। 1989 के लोकसभा चुनाव का ये मुख्य मुद्दा था जिसने राजीव गांधी को सत्ता से बाहर कर दिया और वीपी सिंह राष्ट्रीय मोर्चा सरकार के प्रधानमंत्री बने। 1990 में नई सरकार ने बोफोर्स दलाली की जांच सीबीआई को सौंप दी थी। सीबीआई ने मुकदमा दर्ज किया। कई कानूनी अड़चनों के बाद सीबीआई 1997 में स्वीडन से बोफोर्स दलाली से संबंधित 500 पेज का दस्तावेज लाने में सफल रही। इन दस्तावेजों के आधार पर सीबीआई ने 1999 में विन चड्डा, आक्तोवियो क्वात्रोची, पूर्व रक्षा सचिव एसके भटनागर, बोफोर्स कंपनी और उसके प्रमुख मार्टिन अर्बडो के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। चार्जशीट में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को भी आरोपी बनाया गया था। साल 2000 में सीबीआई ने सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर की, जिसमें श्रीचंद हिंदुजा, गोपीचंद हिंदुजा और प्रकाशचंद हिंदुजा को भी आरोपी बनाया गया। 2002 में घोटाले के दो मुख्य आरोपी विन चड्डा और एस के भटनागर का निधन हो गया। इसी साल दिल्ली हाईकोर्ट ने हिंदुजा बंधुओं के खिलाफ सीबीआई की चार्जशीट को खारिज कर दिया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने चार्जशीट को सही ठहराया।
प्रतिभूति शेयर घोटाला (1992)
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह समय बदलाव का दौर था। उदारीकरण की शुरुआत हो चुकी थी। इसी समय शेयर दलाल हर्षद मेहता ने बैंकिंग व्यवस्था और शेयर बाजार के लचर निगरानी तंत्र का लाभ उठाते हुए बैंकों से लिए धन से शेयर खरीदकर बाजार में कृत्रिम तेजी पैदा कर दी। मेहता के वायदा सौदों का भुगतान न कर पाने की वजह से सेंसेक्स में 570 अंकों की गिरावट आई थी। इससे बैंकों को तब तकरीबन 5 हजार करोड़ की चपत लगी थी साथ ही निवेशकों के भी करोड़ों रुपए डूब गए। करीब पांच साल बाद 1997 में जाकर विशेष अदालत में प्रतिभूति घोटाले से जुडे मामलों की सुनवाई शुरू हो सकी और केन्द्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई ने करीब 34 आरोप लगाए। सीबीआई ने लगभग 72 अपराधिक मामले दर्ज करने के अलावा 600 दीवानी मामले चलाए लेकिन इनमें से महज चार मामलों में ही आरोप पत्र दाखिल किए गए। सितम्बर 1999 में मेहता को मारुति उद्योग के साथ धोखाधड़ी के आरोप में चार साल की सजा हुई लेकिन जेपीसी की सिफारिशें न तो पूरी तरह से स्वीकार की गईं और न ही पूरी तरह से लागू हो पायीं। इससे सबक लेकर सरकार ने शेयर बाजार की निगरानी और नियमन के लिए सेबी का गठन कर दिया।
हवाला कांड (1996)
आयकर विभाग द्वारा कारोबारी एसके जैन के ठिकानों पर मारे गए छापे में कुछ डायरियां बरामद हुईं, जिनमें 1988-1991 के बीच किए गए लेन-देन का ब्यौरा था। इसमें 65 करोड़ रुपए नेताओं, अधिकारियों और सियासी पार्टियों को देने का उल्लेख था। आरोपियों में से एक लालकृष्ण आडवाणी भी थे, जो उस समय नेता विपक्ष थे। इसके अलावा माधवराव सिंधिया, अर्जुन सिंह और शरद यादव जैसे दिग्गजों पर भी पैसे लेने के आरोप लगे थे। इस घोटाले से पहली बार यह बात सामने आयी कि सत्तासीन ही नहीं, बल्कि विपक्ष के नेता भी चारों ओर से पैसा लूटने में लगे हुए हैं। दिलचस्प बात यह थी कि यह पैसा कश्मीरी आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन को गया था। कई नामों के खुलासे हुए लेकिन सीबीआई किसी के भी खिलाफ सबूत नहीं जुटा सकी। बाद में ये भी आरोप लगा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने इसे अपने राजनीतिक विरोधियों को फंसाने के लिए औजार के रूप में इस्तेमाल किया था।
यूरिया खाद घोटाला (1996)
1996 के यूरिया खाद घोटाले में पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के पुत्र पीवी प्रभाकर राव का नाम सामने आया। बात 1996 की है जब देश में यूरिया की आपूर्ति करने के लिए एनएफएल ने 2 लाख टन यूरिया खाद की वैश्विक निविदा मंगाई गई थी। इस सौदे में बिना किसी बैंक गारंटी के कंपनी को 133 करोड़ रूपए का आवंटन कर दिया गया। नेशनल फर्टिलाइजर के एमडी सीएस रामकृष्णन ने कई अन्य व्यापारियों, जो कि नरसिंह राव के नजदीकी थी, के साथ मिलकर 2 लाख टन यूरिया आयात करने के मामले में सरकार को 133 करोड़ रूपए का चूना लगा दिया। सीबीआई को शक था कि इन सबमें प्रभाकर का ही हाथ है, बावजूद इसके प्रधानमंत्री के बेटे होने की वजह से प्रभाकर पर किसी ने हाथ नहीं डाला।
बिहार का चारा घोटाला (1996)
1991 में लालू प्रसाद यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद पशुपालन विभाग में हुए 950 करोड़ रूपए से अधिक के घोटाले की जांच पटना हाईकोर्ट के आदेश के बाद 1996 में शुरू हुई। इस मामले में सीबीआई ने 64 अलग-अलग मामले दर्ज किए। इन सभी की जांच कर 2003-2004 में आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी गई। इनमें 37 मुकदमों में अदालत अब तक 350 से अधिक आरोपियों को सजा सुना चुकी है। हालांकि जिस मामले में लालू यादव आरोपी है, उसमें अभी तक अदालत में सुनवाई चल रही है।
केतन पारिख शेयर घोटाला (2001)
इस घोटाले को अंजाम देने में केतन पारिख ने भी हर्षद मेहता के जैसे तौर तरीकों का इस्तेमाल किया। दो बैंकों ग्लोबल ट्रस्ट बैंक और माधवपुरिया मर्केंटाइल कॉपरेटिव बैंक से भारी धनराशि लेकर इसने 10 चुनिंदा कंपनियों के शेयर खरीदे। इसके लिए उसने बैनामी खातों और छोटे स्टाक एक्सचेंजों का इस्तेमाल किया। इस घोटाले को लगभग 1500 करोड़ रुपए का आंका गया। इस मामले ने साबित कर दिया कि हमारी व्यवस्था पुराने अनुभवों से सबक नहीं सीखती।
तहलका काण्ड (2001)
21वीं सदी में तहलका कांड को देश के पहले घोटाले के रूप में माना जा सकता है। अब घोटाले कैमरे पर भी होने लगे थे और दुनिया ने इसे सीधे होते देखा। इसका एक उदाहरण तहलका कांड के रूप में 2001 में सामने आया। एक मीडिया हाउस तहलका के स्टिंग ऑपरेशन ने यह खुलासा किया कि कैसे कुछ वरिष्ठ नेता रक्षा सौदे में गड़बड़ी करते हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण को रिश्वत देते लोगों ने टेलीविजन और अखबारों में देखा। इस घोटाले में तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज और भारतीय नौ-सेना के पूर्व एडमिरल सुशील कुमार का नाम भी सामने आया। इस मामले में अटल बिहारी वाजपेयी ने जॉर्ज फर्नांडीज का इस्तीफा मंजूर करने से इंकार कर दिया था। हालांकि बाद में जॉर्ज ने इस्तीफा दे दिया।
स्टाम्प पेपर घोटाला (2003)
वर्ष 2003 में 30 हजार करोड़ रुपए का बड़ा घोटाला सामने आया। इसके पीछे अब्दुल करीम तेलगी को मास्टर माइंड बताया गया। मामले के सूत्रधार रहे अब्दुल करीम तेलगी ने 1994 में स्टाम्प बेचने का लाससेंस हासिल किया। इसके बाद उसने सरकार के नासिक स्थित प्रेस के कर्मचारियों को अपने साथ मिलाकर स्टाम्प छापने की मशीन हासिल की और इसकी बारीकियां सीखी तथा फर्जी स्टाम्प छापना शुरू कर दिया। तेलगी ने बड़े ही संगठित रूप से 14 राज्यों, 125 बैंकों तथा एक हजार कर्मचारियों का नेटवर्क बनाकर जाली स्टाम्प की आपूर्ति की। पहले तो इस जालसाजी का आकार राशि 30 हजार करोड़ तक आंकी जाती रही लेकिन बाद में आरबीआई ने इसे महज 200 करोड़ बताया।
हसन अली खान टैक्स चोरी घोटाला (2008)
देश के सबसे बड़े कथित टैक्स चोर हसन अली पर 50 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की टैक्स चोरी का आरोप है। हसन अली और उनके सहायकों पर विदेशों में काला धन रखने के आरोप हैं। हसन अली पर आरोप है कि उसने स्विस बैंकों में 8 अरब डॉलर रखे हैं। उस पर यह भी आरोप है कि उसने अपनी आमदनी छिपाई और 1999 के बाद से आय कर रिटर्न दाखिल नहीं किया है।
सत्यम घोटाला (2008)
कार्पोरेट जगत का शायद सबसे बडा घोटाला। 14 हजार करोड़ रुपए के इस घोटाले में सत्यम कम्प्यूटर सर्विसेज के मालिक राम लिंग राजू का नाम आया। राजू ने इस्तीफा दिया और वह अभी भी जेल में है। सत्यम घोटाला दो खास मायनों में एकदम अलग किस्म का था। एक यह कि सत्यम कंप्यूटर्स सचमुच में एक कामयाब कंपनी थी, सॉफ्टवेयर निर्यात की देश की चौथी सबसे बड़ी कंपनी। इसके संस्थापक बी रामलिंग राजू एक समय भारत के सॉफ्टवेयर उद्योग के सितारे माने जाते थे। घोटाले की दूसरी खास बात यह थी कि इसका खुलासा खुद रामलिंग राजू ने किया, जब सच उगलने के सिवा उनके सामने कोई चारा नहीं रह गया। राजू ने बहीखातों में मुनाफा काफी बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया था, जिससे कंपनी के शेयर सत्तर फीसद तक चढ़ गए। मगर इससे निवेशकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा। फर्जीवाड़ा सात हजार करोड़ रुपए का था, पर निवेशकों को करीब चौदह हजार करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा। मामले की जांच सीबीआइ को सौंपी गई। सीबीआइ ने अपने आरोपपत्र में इसे देश का सबसे बड़ा कॉरपोरेट घोटाला करार दिया था। विशेष अदालत ने बी रामलिंग राजू और उनके भाई समेत दस लोगों को आपराधिक षड्यंत्र और धोखाधड़ी आदि आरोपों में दोषी करार देते हुए सात साल की कैद की सजा सुनाई है। साथ ही राजू और उनके भाई पर पांच-पांच करोड़ रुपए का जुर्माना भी लगाया है। अन्य आठ आरोपियों पर अदालत ने अलग-अलग राशि के जुर्माने लगाए हैं, जिनमें अधिकतम जुर्माना पच्चीस लाख रुपए का है।
खाद्यान्न घोटाला (2010)
उत्तर प्रदेश में करीब 35 हजार करोड़ रूपए का खाद्यान्न घोटाला वर्ष 2010 में उजागर हुआ। दरअसल, यह अंत्योदय, अन्नपूर्णा और मिड-डे मील जैसी खाद्य योजनाओं के तहत आने वाले अनाज को बेचने का मामला है। यह घोटाला वर्ष 2001 से 2007 के बीच हुआ था। राज्य में इन योजनाओं के तहत आवंटित चावल की भी कालाबाजारी की गई। कुछ अनुमानों के मुताबिक इस तरह 2 लाख करोड़ रुपए के वारे-न्यारे करने का आरोप भी है। इस घोटाले मे मैनपुरी जनपद में ही तकरीबन 8 करोड़ के आसपास के गबन का आरोप है। एक बीएसए केडीएन राम के खिलाफ तो सीबीआई जांच भी चल रही है।
हाउसिंग लोन घोटाला (2010)
सीबीआई ने नवम्बर 2010 में हाउसिंग घोटाला का पर्दाफाश किया। इस घोटाले में ताजा खुलासे के मुताबिक होम लोन घोटाले का आंकड़ा 42750 करोड़ से ज्यादा का हो सकता है। 42750 करोड़ के लोन को मनी मैटर्स नाम की एक कंपनी ने मंजूरी दिलवाई थी। होम लोन के लिए मनी मैटर्स ने बैंक ऑफ इंडिया के जनरल मैनेजर आर एन तायल को 25 लाख रिश्वत दी। बदले में तायल ने मनी मैटर्स के ग्राहकों को लोन का भरोसा दिया साथ ही BGR एनर्जी को 200 करोड़ और OPG ग्रुप को 300 करोड़ के लोन का भरोसा दिया था। इस मामले में तत्कालीन एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस के सीईओ रामचंद्रन नायर, एलआईसी हाउसिंग के सचिव निवेश, नरेश के चोपड़ा, सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया के डायरेक्टर एमएस जौहर, पंजाब नेशनल बैंक दिल्ली के डीजीएम वेंकोबा गुज्जल और बैंक ऑफ़ इंडिया के जीएम आर एन तयाल का नाम लिया जा रहा है।
राष्ट्रमंडल खेल घोटाला (2010)
पिछले साल दिल्ली में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन में बड़े पैमाने की आर्थिक अनियमितता की बात सामने आने के बाद सरकार इस मुद्दे पर बुरी तरह घिर गई। आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। कलमाड़ी को जेल भी जाना पड़ा। लंदन में 2009 में हुई क्वींस बेटन रिले के भुगतान और कई कंपनियों को दिए गए करोड़ों रुपए के ठेकों के बारे में सीबीआई ने उनसे पूछताछ भी की। इस मामले में कलमाड़ी के कई करीबी अधिकारियों की गिरफ्तारी भी हुई है।
आदर्श सोसायटी घोटाला (2010)
मुंबई में करगिल शहीदों की विधवाओं के लिए पहले सेना की जमीन का आवंटन कर छह मंजिला इमारत बनाने की योजना बनी। लेकिन नेताओं, अफसरों, सैन्य अधिकारियों में आपसी सांठ-गांठ के चलते 31 मंजिला इमारत बन गई और बाजार दर के मुकाबले बेहद मामूली कीमत पर प्रभावशाली लोगों ने फ्लैट्स की बंदरबांट कर ली। इसपर उठे विवाद के चलते अशोक चव्हाण को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। चव्हाण पर आरोप है कि उन्होंने 10 वर्ष पूर्व कांग्रेस-राकपा संगठन की सरकार के समय राजस्व मंत्री के रूप में रक्षा विभाग के वरिष्ठ सदस्यों और शहीदों की विधवाओं के लिए आवंटित सोसायटी में अन्य लोगों को आवास आवंटन में भूमिका निभाई। आरोप है कि इस सोसायटी में चव्हाण की सास और अन्य करीबी रिश्तेदारों को भी फायदा पहुंचाया गया। हाल ही में पर्यावरण मंत्रालय ने इस भवन को अवैधानिक बताते हुए इसे ढहाने का आदेश दिया है।
2जी स्पेक्ट्रम घोटाला (2008)
यूपीए-2 सरकार और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए परेशानी का सबब बने इस मामले के बारे में हुए खुलासों पर यकीन किया जाए तो आर्थिक अनियमितता के अन्य प्रकरण इसके मुकाबले बेहद मामूली दिखेंगे। दूरसंचार मंत्रालय ने 2जी स्पेक्ट्रम की नीलामी के दौरान नियमों को ताक पर रखकर प्रमुख निजी टेलीकॉम कंपनियों को लाइसेंस दिया। 2008 में ये लाइसेंस नियमों का खुले तौर पर उल्लंघन कर आवंटित किए गए थे। सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणियों और विरोधी दलों के दबाव के चलते तत्कालीन दूरसंचार मंत्री और डीएमके नेता ए. राजा को दूरसंचार मंत्री का पद भी छोड़ना पड़ा। 1.76 लाख करोड़ रुपए के इस घोटाले ने सरकार को बुरी तरह परेशान किया। विपक्षी दलों ने इस मामले की जांच जेपीसी को सौंपे जाने के मुद्दे पर संसद का शीत सत्र तक नहीं चलने दिया।
कोल ब्लॉक आवंटन घोटाला (2012)
कांग्रेस नीत यूपीए की सरकार ने बिना नीलामी के देश भर में कोल ब्लॉक बांटे। जबकि कोयला सचिव ने 2004 में ही कह दिया था कि ऐसा करने से नुकसान होगा। नियंत्रक एवं महालेखाकार परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ 2004 से 2009 के बीच बांटे गए ब्लॉक से सरकार को 1.86 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। 17 अगस्त 2012 को संसद में कैग की रिपोर्ट पेश की गई। इस मामले में प्रधानमंत्री से इस्तीफे की मांग को लेकर विपक्ष ने संसद का मॉनसून सत्र नहीं चलने दिया। दरअसल कोयला घोटाला ए.राजा के 2जी घोटाले से भी बड़ा है और दूसरी सबसे अहम बात यह है कि 2006 से 2009 के बीच 142 कोल ब्लॉक बांटे गए थे और इस दौरान कोयला मंत्रालय प्रधानमंत्री के पास था। अब चारों तरफ से घिरी सरकार कह रही है कि हम अपना पक्ष पीएसी (लोक लेखा समिति) में रखेंगे। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कह रहे हैं, ‘मेरा राजनीतिक जीवन बेदाग रहा है। घोटाले की बात कहना गलत है। जांच होने दीजिए, सब सामने आ जाएगा। घोटाला साबित होने पर मैं राजनीति से संन्यास ले लूंगा।‘