राजनाथ जी! हमनी के पाकिस्तान में सन्नाटा ना, आटा आ टाटा ही चाहीं
किरण राय
नई दिल्ली : इसे देश के गृह मंत्री राजनाथ सिंह का बेतुका बयान नहीं तो और क्या कहेंगे। सरकार में एक जिम्मेदार पद पर रहते हुए अगर कोई आमजनों की भावनाओं से इस तरह खेले तो इसे क्या नाम दें। राजनाथ सिंह की कोशिश भोजपुरी अध्ययन शोध केंद्र के एक कार्यक्रम के माहौल को भोजपुरीमय बनाने की थी। मौजूद लोग गदगद भी हुए, लेकिन एक भोजपुरी पट्टी से वास्ता रखने वाले शख्स के दिल पर यकीनन छुरियां चल गई होंगी। सिर्फ जुमलेबाजी के लिए ऐसा बयान वो भी मीठी मानी जाने वाली जुबान में, वाकई हैरानी और क्षोभ का विषय है। भोजपुरी तो नाम ही है माधुर्य और मिठास का उसमें पाकिस्तान के नाम का तड़का अच्छा नही लगता।
समझ में नहीं आया कि मौका तो पुनर्वास विश्वविद्यालय के भोजपुरी अध्ययन शोध केंद्र के उद्घाटन का था लेकिन राजनाथ जी पाकिस्तान को यूं ही क्यों घसीट लाये। उन्होंने बड़ी हनक और एकाधिकार के साथ अपनी राय को भोजपुरी बोलने वालों की राय से जोड़ दिया। उन्होंने कहा- पाकिस्तान के बारे में अगर हम भोजपुरी बोलने वालों की राय मागेंगे तो वह साफ कहेंगे कि ना आटा चाही, ना टाटा चाही, हमनी के पाकिस्तान में सन्नाटा चाही। उन्होंने कहा कि मैं गृहमंत्री हूं इसलिए सुरक्षा पर विशेष ध्यान देता हूं। तो क्या बतौर गृहमंत्री इस तरह का बयान लाजिमी था देना। अच्छा होता कि बात भोजपुरी की भलाई पर होती, बात भोजपुरी साहित्य पर होती, बात आपकी उन कोशिशों को लेकर होती जो आप अपनी भोजपुरी को लेकर कर रहें हैं।
यकीनन बतौर मंत्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह की मजबूरी है राजनीति करना। मौका भी मुफीद है। लेकिन जब बात किसी भाषा की हो तो दूसरे देश के नाम पर खेलना सही नहीं है। राजनाथ सिंह ने अपनी सफाई में कहा भी- इस समय आतंकवाद सबसे बड़ी चुनौती हैं और हम इसका मुकाबला कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भोजपुरी तो देवनागरी से अलग है। हम भाषा के रूप में भोजपुरी का सम्मान करते हैं। हालांकि अपनी सरकार के भोजपुरी प्रेम का भी राजनाथ सिंह ने बखान करने में गुरेज नहीं किया। उन्होंने कहा कि- हमारी सरकार ने मालिनी अवस्थी को भोजपुरी गीतों के लिए पद्मश्री दिया। देश के गृहमंत्री से सवाल है कि क्या सम्मान देने मात्र से भोजपुरी भाषा को पहचान मिल जायेगी? क्या इतने भर से सरकार के कर्तव्यों की इति हो जायेगी?
अच्छा होता की मंत्रीजी भोजपुरी साहित्य का गुणगान करते। इस मंच से वो भोजपुरी भाषा के शेख्सपियर भिखारी ठाकुर को याद करते। समाज को उस लोक कलाकार की जिजीविषा के बारे में बताते जो अनपढ़ होते हुए भी लोगों को समाज की सच्चाई से रूबरू कराता रहा। जिसने बेटी बेचुआ, बिदेसिया जैसी रचनाओं से एक पूरी पीढ़ी को रोमांचित किया उसे समाज का आईना दिखाया। वो भिखारी ठाकुर के स्त्री विमर्श जिस पर आज समाज और साहित्य में खूब चर्चा हो रही है, उस पर बात करते।
भारत के जनगणना (2001) आंकड़ों के अनुसार भारत में लगभग 3.3 करोड़ लोग भोजपुरी बोलते हैं। पूरे विश्व में भोजपुरी जानने वालों की संख्या लगभग 5 करोड़ है। तो निश्चय ही इन 3.3 करोड़ लोगों को राजनाथ के इस बयान से धक्का पहुंचा होगा। क्योंकि भाषा तो लोगों को जोड़ने का काम करती है। उसे ही जरिया बना वोट की राजनीति करना भला कितना जायज है?
भोजपुरी वासी ही नहीं बल्कि देश का हर वो तबका जो मजदूरी करता है। मेहनत करता है उसे जीने के लिए आटा भी चाहिए और परिवार चलाने के लिए टाटा जैसों की भी जरूरत है। सो राजनाथ जी एक भोजपुरी भाषी होने के नाते मैं कहना चाहूंगी- हमनी के कऊनो देश के सन्नाटा ना चाहीं, बल्कि हमनी के अपना देश में शान से जिए के खातिर आटा आ टाटा दुनो चाहीं।