मोदी के कट्टर आलोचक रहे गोरधन झड़ाफिया आखिर क्यों बने यूपी में भाजपा के चुनाव प्रभारी?
प्रवीण कुमार
नई दिल्ली : भाजपा ने साल 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए देश के उन 17 राज्यों व एक केंद्रशासित प्रदेश के लिए प्रभारी व सहप्रभारी नियुक्त किए हैं जिनमें भाजपा या एनडीए की सरकार है या फिर जहां से भाजपा को कुछ बेहतर मिलने की उम्मीद है। इसी क्रम में सबसे ज्यादा जोर उत्तर प्रदेश में दिखाया गया जहां गुजरात के कद्दावर नेता रहे गोरधन झड़ाफिया को लोकसभा चुनाव का प्रभारी बनाया गया है। गोरधन के सह-प्रभारी के तौर पर भाजपा उपाध्यक्ष दुष्यंत गौतम और मध्य प्रदेश के नेता नरोत्तम मिश्रा को जिम्मेदारी दी गई है। गोरधन की उत्तर प्रदेश में तैनाती को लेकर सियासी गलियारों में सवाल तैरने लगे हैं कि आखिर एक वक्त में नरेंद्र मोदी के कट्टर आलोचक रहे गोरधन झड़ाफिया को यूपी का लोकसभा चुनाव प्रभारी क्यों बनाया गया है? क्या हिन्दुत्व की हवा को गोरधन मोदी, शाह और योगी के मुकाबला ज्यादा कारगर तरीके से फैला सकते हैं?
भाजपा ने बीते 26 दिसंबर को 17 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के लिए चुनाव प्रभारियों व सह प्रभारियों की सूची जारी की है। इस सूची पर गौर करें तो उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान पर ज्यादा गंभीरता दिखाई गई है जहां क्रमश: तीन और दो-दो नेताओं को लगाया गया है। नलिन कोहली और कैप्टन अभिमन्यू को दो-दो राज्यों की जिम्मेदारी सौंपी गई है। सूची इस प्रकार से है--
आंध्र प्रदेश- वी. मुरलीधरन, सुनील देवधर
असम- महेंद्र सिंह
छत्तीसगढ़- डॉ. अनिल जैन
गुजरात- ओम प्रकाश माथुर
हिमाचल प्रदेश- तीरथ सिंह रावत
झारखंड- मंगल पांडेय
मध्य प्रदेश- स्वतंत्र देव सिंह, सतीश उपाध्याय
मणिपुर- नलिन कोहली
नगालैंड- नलिन कोहली
ओडिशा- अरूण सिंह
पंजाब- कैप्टन अभिमन्यू
चंडीगढ़- कैप्टन अभिमन्यू
राजस्थान- प्रकाश जावड़ेकर, सुधांशु त्रिवेदी
सिक्किम- नितिन नवीन
तेलंगाना- अरविंद लिम्बावली
उत्तराखंड- थावरचंद गहलोत
उत्तर प्रदेश- गोरधन झड़ाफिया, दुष्यंत गौतम और नरोत्तम मिश्रा
इस सूची के हिसाब से सियासी गलियारों में जिस नाम की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है उसमें उत्तर प्रदेश के प्रभारी गोरधन झड़ाफिया का नाम शामिल है। ये वही गोरधन झड़ाफिया हैं जो साल 2002 में गुजरात दंगे के वक्त गृह राज्य मंत्री थे। झड़ाफिया पर आरोप है कि गुजरात में हुए मुस्लिम विरोधी दंगों को रोकने के लिए उन्होंने कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया था। इन दंगों में हजारों निर्दोष मुसलमान मारे गए थे। गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात दंगों के बाद गोरधन झड़ाफिया को गृह राज्यमंत्री के पद से हटा दिया था। इसके बाद झड़ापिया नरेंद्र मोदी के कट्टर आलोचक बन गए थे।
2004 में वाजपेयी सरकार के सत्ता से बाहर होने के बाद मोदी ने गुजरात में अपने कैबिनेट का विस्तार किया था जिसमें झड़ाफिया ने शपथ लेने से इनकार कर दिया था। उन्होंने शपथ ग्रहण समारोह के दौरान स्टेज से ही ऐलान किया था कि वह इस सरकार का हिस्सा नहीं बने रहना चाहते हैं। 2002 के गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद मोदी ने झड़ाफिया की जगह अमित शाह को गृह मंत्रालय का प्रभार दिया था। झड़ाफिया इसे वापस पाना चाहते थे, लेकिन जब उन्हें कैबिनेट विस्तार में भी गृह मंत्रालय नहीं दिया तो उन्होंने मंच से ही सरकार से अलग रहने का ऐलान कर दिया। झड़ाफिया ने साल 2007 में भाजपा से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद उन्होंने साल 2009 के लोकसभा चुनाव के वक्त महा गुजरात जनता पार्टी नाम से अपनी पार्टी बनाई और भाजपा के खिलाफ चुनाव भी लड़ा था। इसके बाद उन्होंने नरेंद्र मोदी के एक अन्य आलोचक केशुभाई पटेल से हाथ मिलाया और उनकी पार्टी में अपनी पार्टी का विलय कर दिया था। साल 2014 में नरेंद्र मोदी के राष्ट्रव्यापी लहर को देखते हुए गोरधन झड़ाफिया दोबारा भाजपा में शामिल हुए। झड़ाफिया को गुजरात का कद्दावर पटेल नेता माना जाता है।
हाल तक उन्हें पार्टी में कोई अहम जिम्मेदारी नहीं दी गई थी और 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें टिकट देने तक से मना कर दिया था। सूत्रों के मुताबिक, टिकट मिलने पर वह मुख्यमंत्री पद के संभावित दावेदार के रूप में उभर सकते थे, जिस वजह से उनका टिकट काट दिया गया। आनंदीबेन पटेल को गुजरात के मुख्यमंत्री पद से हटाने के पीछे भी झड़ाफिया की अहम भूमिका मानी जाती है। झड़ाफिया को गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल, प्रवीण तोगड़िया और संजय जोशी का भी करीबी माना जाता रहा है जिनसे मोदी के रिश्ते अच्छे नहीं हैं। पार्टी के सूत्रों के मुताबिक, झड़ाफिया को एक चतुर नेता माना जाता है और उनके संगठनात्मक कौशल से भाजपा को उत्तर प्रदेश में फायदा पहुंच सकता है। कुछ भाजपा नेताओं का यह भी कहना कि उन्हें नई जिम्मेदारी देने के पीछे उनको गुजरात से बाहर रखने की रणनीति है। दुष्यंत गौतम भाजपा के अनुसूचित जाति मोर्चा से हैं। माना जा रहा है कि राज्य में सपा और बसपा गठबंधन से मुकाबला करने की रणनीति तैयार करने में इनकी अहम भूमिका रहेगी।