...तो क्या BSP का होगा बेड़ा पार?
सत्ता विमर्श ब्यूरो
उत्तर प्रदेश चुनाव 2017 को लेकर सभी बड़ी पार्टियां अपने-अपने दावे और वायदे के साथ मैदान में हैं। चुनावों का ऐलान नहीं हुआ है लेकिन प्रचार-प्रसार का काम रफ्तार पकड़ चुका है। चुनाव पूर्व सर्वेक्षण भी आने लगे हैं। कोई सपा नीत सरकार पर, तो कोई यूपी के ट्रेंड के हिसाब से इस बार बसपा पर दांव लगा रहा है। पिछले दिनों आए सर्वेक्षण के मुताबिक हंग एसेम्बली के आसार प्रबल है। सब को ऐसा लगता है कि एक खास तबके या वर्ग पर उनकी लोकप्रियता बढ़ रही है। जोर-आजमाईश हर स्तर पर दिख रही है। जितनी बड़ी पार्टियां उतने बड़े हथकंडे अपनाए जा रहें हैं।
भाजपा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की बड़ी रैलियां आयोजित कर रही है तो कांग्रेस अपनी खाट पंचायत और रोड शो के जरिए पार्टी में जान फूंक रही है। समाजवादी पार्टी पिछले एक महीने से टीवी चैनलों पर अपने भारी भरकम विज्ञापनों के जरिए लोगों तक पहुंच रही है। इन सबके बीच ऐसी धारणा बनने लगी कि बसपा कहीं पीछे छूट रही है लेकिन हाथी भी धीमी गति से सटीक चाल चल रहा है। हाल ही में बहनजी की चार बड़ी रैलियां इसकी गवाह है। सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय के मंत्र से वो अपने खास वर्ग को इकट्ठा कर रहीं हैं। ये चार रैलियां क्रमश: आगरा, आजमगढ़, इलाहाबाद और सहारनपुर में आयोजित की गईं। इससे साफ हो गया कि बसपा आखिर चाहती क्या है। बसपा अपने दलित वोटरों को समेटने के साथ ही मुस्लिम मतदाताओं और अगड़ों को अपने कैडर में शामिल करने की जुगत में है।
इन रैलियों से बसपा की रणनीति का एक सकारात्मक चेहरा सामने आ रहा है। दिख रहा है कि बहुजन पार्टी भी भाजपा की तर्ज पर बड़ी रैलियां आयोजित कर सकती है। पार्टी अपने खास दलित वोटर जो पिछले चुनावों में थोड़ा छिटका था, को भी वापिस लाने के प्रति गंभीर है। सबसे अहम बात है उसने सोशल इंजीनियरिंग की रणनीति में कोई बदलाव नहीं किया है और सर्वजन सुखाय की बात कर अन्य जातियों के युवाओं को भी आकर्षित करने में लगी है। रैलियों में भीड़ दिखाने की होड़ में बसपा शामिल नहीं है लेकिन उसका पूरा ध्यान अपने शुभचिंतकों को अपनी ओर खींचने का है।
बहनजी ने एक दो महीने में नहीं अपनी सोच को मूर्त रूप दिया है बल्कि ये कवायद दो विगत दो सालों से चल रही थी। अपनी रणनीति को अमली जामा पहनाने के लिए बसपा के रणनीतिकारों ने भाईचारा समितियों का गठन किया। एक तरफ जहां पार्टी ने ब्राह्मण-दलित एकता पर खूब काम किया। तो वहीं दूसरी ओर पार्टी ने दलित-मुस्लमान गठबंधन पर भी काफी मेहनत की है। इसके तहत पार्टी उन बस्तियों, उन झुग्गियों में जाती है जहां मुस्लिम-दलित आबादी है। मुस्लिमों को अपनी बात पहुंचाने के लिए उन्हीं के अंदाज का सहारा ले रही है। यानी इन बस्तियों या इलाके के दलित या मुस्लिम चेहरों को सामने रख कर बात की जा रही है।
जहां बड़ी पार्टियां नगाड़ा बजा-बजा कर दलितों और मुस्लमानों के साथ का दावा कर रही है वहीं बहनजी की टीम शांति से जाकर उन्हें भाजपा-सपा के छुपे एजेंडे की बात बता रही है। यकीन दिलाया जा रहा है कि बसपा के आते ही इस तबके को पूरी सुरक्षा मुहैया कराई जाएगी। सूबे में दंगे नहीं होंगे और गुण्डाराज खत्म होगा। भाजपा पर निशाना साधने के साथ ही सपा को भी निशाने पर रखा जा रहा है। मुस्लिम वोटरों की एक तरह से ड्रिलिंग की जा रही है। उन्हें बताया जा रहा है कि जिस सपा का उन्होंने पिछले 25 सालों से साथ दिया वही उनके हक की बात अब नहीं कर रही है। स्पष्ट है कि समाजवादी पार्टी को लेकर पैदा हुए अविश्वास को कैश करने में बसपा पीछे नहीं रहना चाहती। साथ ही इन दिनों जिस तरह सपा के अंदर का कलह सड़क पर आ गया है उस पर भी गाहे बगाहे बहनजी चोट कर ही दे रहीं है।
चर्चा है कि मुस्लिम वोटरों को लुभाने के लिए बसपा तकरीबन 100 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देगी। पार्टी को लगता है कि उसका पारम्परिक वोटर यानी दलित तो उसके साथ बना ही हुआ है सो मुस्लमानों के लिए उसे कुछ खास करना होगा। उन्हें लगता है कि ये उम्मीदवार बसपा के लिए वोट खींच सकते हैं। इसका एक और प्रभाव अन्य विधानसभा सीटों के मुस्लिम वोटरों पर भी पड़ेगा। पार्टी इस बार दलित और पिछड़े मुस्लमानों की भी बात कर रही है। पार्टी उन कस्बों और इलाकों में ज्यादा सक्रिय है जहां अंसारी, फकीर, गद्दी जैसी दलित (मुस्लिम )जातियां रहती हैं। पार्टी इस बार गरीब मुस्लिम के पुराने एजेंडे पर जोर देने से बच रही है।
स्पष्ट दिख रहा है कि नेगेटिव पब्लिसिटी की बजाए बसपा अपने कैडर को मजबूत करने के लिए दलितों को समझाने और मुस्लिमों को रिझाने में जुटी है। वहीं सर्वजन हिताय के जरिए अगड़ों को भी बसपा की ओर आने की दावत दे रही है।