राजनीति की ए बी सी डी हमने अटल जी से सीखी : अरविन्द गुप्ता
साल 1975 में जनसंघ के समय से ही सक्रिय राजनीति में प्रवेश करने वाले अरविन्द राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में निचले स्तर पर काम करते हुए भाजपा की राजनीति तक पहुंचे। अरविन्द गुप्ता अटल जी को अपना राजनीतिक गुरु मानते हैं और उनका कहना है कि राजनीति की ए बी सी डी हमने उन्हीं से सीखी। वरिष्ठ पत्रकार जयराम ने सत्ता विमर्श के लिए उनके प्रारंभिक और राजनीतिक जीवन पर विस्तार से बातचीत की।
PM मोदी ने पत्रकारों के सामने माना कि भाजपा के भीतर से ही उठ रहीं हैं अलग-अलग आवाजें
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी ही पार्टी के दिग्गजों से लेकर एक आम कार्यकर्ता को छिपे अंदाज में एक सुर में यानी पार्टी लाइन के मुताबिक बात रखने की नसीहत दी है। मोदी दिवाली मिलन समारोह में पत्रकारों से रूबरू थे। इसका आयोजन भाजपा के मुख्य कार्यालय में किया गया था।
लोकतंत्र या कुलीन तंत्र
लोकतंत्र असल में उन सभ्य लोगों का शासन तंत्र है जो आम सहमति से निर्णय लेने और प्रशासन चलाने में भरोसा रखते हैं। लेकिन हाल की कुछ घटनाओं से यह महसूस होने लगा है कि लोकतंत्र को पीछे धकेला जा रहा है और इस बात की पूरी कोशिश है कि देश को हिन्दू राष्ट्र से आगे उसे कुलीन तंत्र में बदल दिया जाए। यह एक खतरनाक संकेत हैं। यह कौन कर रहा है और कैसे कर रहा है इसपर देश के तमाम राजनीतिक दलों और वैचारिक प्रतिबद्धता की लड़ाई लड़ने वाले बुद्धिजीवियों को सोचना होगा। देर की तो शायद बहुत मुश्किल हो जाएगी।
संसदीय राजनीति का वो दौर जब अटल...
इसमें कोई दो-राय नहीं कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से अपनी राजनीतिक जीवन यात्रा की शुरुआत की थी और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ बनाते वक्त जिन तीन-चार लोगों को संघ से लिया था उनमें से वाजपेयी एक थे। वाजपेयी के बारे में यह भी कहा जाता है कि वे संघ के अनुशासन को भले ही मानते रहे, लेकिन उनके विचारों की दुनिया में हमेशा खुली हवा का खास स्थान रहा। इसलिए वाजपेयी आरएसएस के पसंदीदा नेताओं में से कभी नहीं रहे।