आखिर क्यों उगते हैं कालाहांडी और डेंगलमाल जैसे कुकुरमुत्ते?
जल और जन के परस्पर रिश्तों को लेकर यूएन वर्ल्ड वाटर असेसमेंट ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा है कि पानी की उपलब्धता को लेकर भारत में आंकड़े जुटाने की संवेदनशीलता अभी देखने को नहीं मिल रही है। देश में पानी-सेहत-शिक्षा की स्थिति झारखण्ड से लेकर महाराष्ट्र तक एक जैसी है। तो सवाल उठना लाजिमी है कि कल्याणकारी राज्य की छाती पर क्यों उगते है कालाहांडी और डेंगलमाल?
वाह रे बाजार, बाजार में बैठा बनिया, बनिये की मुट्ठी में बंद अपने देश का नेता और योजनाकार
पहाड़िया समाज की आबादी लगातार सिमट रही है। यहां के फलदार वृक्षों को जिओ के मोबाइल टावर बांझ बना रहे हैं। परम्परावादी पहाड़िया जिन पहाड़ों पर बसते हैं, उसी पहाड़ी के नीचे संताल लोगों की बस्तियां हैं। सच कहें तो पहाड़िया इलाकों का विकास स्थानीय आबादी के मनोनुकूल नहीं बल्कि वातानुकूलित चैम्बर्स में पनपे विचारों का नतीजा है। ठेकेदारों के घोटालिया रवैये से विकास का अस्थि पंजर ही पहाड़िया समाज की नियति है।