विकास की राजनीति पर फिदा हुई दिल्ली
दिल्ली विधानसभा चुनाव में मतदाताओं ने आम आदमी पार्टी को एक बार फिर से बड़ा जनादेश दिया है। यह जनादेश खासतौर से उन नेताओं तथा उम्मीदवारों के मुंह पर तमाचा है जिन्होंने चुनाव के दौरान अथवा इससे पहले विवादित बयान देकर नफरत की राजनीति के बूते चुनाव जीतने की एक खतरनाक कोशिश की थी। सच जानिए तो दिल्ली जनादेश के कई मायने हैं जिसे घोर सांप्रदायिक पार्टी भाजपा समेत सभी राष्ट्रीय व क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को समझने की जरूरत है। इसमें कोई दो राय नहीं कि दिल्ली के मतदाताओं ने आम आदमी पार्टी का जो काम देखा है, उसकी काम करने की जो नीयत देखी है, उस पर अपना भरोसा जताया है। कहने का मतलब यह है कि कहीं न कहीं काम की राजनीति, सही मायने में विकास की राजनीति को लोगों ने पसंद किया है और भारतीय राजनीतिक परिवेश में यह बदलाव बहुत बड़ी चीज है, क्योंकि देश भर में इसका एक संदेश जाएगा कि जनता काम पर वोट करने लगी है।
मोदी सरकार का एक और दुस्साहस
मोदी सरकार का भारतीय संविधान में जम्मू कश्मीर से संबंधित धारा 370 को खत्म करने का ऐलान मोदी सरकार का एक और दुस्साहस भरा फैसला है। इससे पहले 2014 में पहली बार सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने नोटबंदी का फैसला लिया था। जिस तरह से नोटबंदी के दर्द से आज भी देश कराह रहा है, आने वाले वक्त में धारा 370 के दर्द का अहसास भी देशवासियों को होगा। धारा 370 को हटाने के साथ ही जम्मू कश्मीर का विभाजन कर जिस तरह से उसका पूर्ण राज्य का दर्जा भी खत्म कर दिया गया है यह पूरी की पूरी सियासत है और इससे आरएसएस, भाजपा, मोदी और शाह की नीति और नीयत पर सवाल खड़े होते हैं।
राहुल की कांग्रेस के लिए जनादेश के मायने
याद करें, ठीक एक साल पहले 11 दिसंबर 2017 को राहुल गांधी ने कांग्रेस की बागडोर संभाली थी। तब किसी ने ऐसी अपेक्षा ऩहीं की थी कि एक साल के छोटे से कार्यकाल में विरोधियों के तंज का शिकार होने वाले इस शख्स को लोग बांहें फैलाकर इस तरह से स्वीकार करेंगे। पांच राज्यों के चुनावी नतीजों से यकीनन भारतीय राजनीतिक परिदृश्य पर राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी दोनों का वजूद बढ़ा है। पार्टी की जिम्मेदारियों में भी इजाफा हुआ है। 2019 की बिसात बिछ चुकी है और राहुल गांधी को सामने खड़े मोदी, शाह और भाजपा के साथ-साथ महागठबंधन की राजनीति और उसमें शामिल दलों व नेताओं की हर चाल को समझ-बूझकर चलने के लिए तैयार रहना होगा। कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में ऐसा करने में राहुल अगर कामयाब रहे तो यकीनन उनका कद और बढ़ेगा और नरेन्द्र मोदी के समकक्ष उनकी हैसियत को लोग गंभीरता से देखेंगे।
मोदी सरकार के 4 साल : उम्मीदों से छल
नरेंद्र मोदी सरकार के चार साल पूरे हो चुके हैं। वर्ष 2014 में जब इस सरकार ने सत्ता संभाली थी तब जनता की उम्मीदें सातवें आसमान पर थीं। 30 साल बाद केंद्र में किसी पार्टी को अकेले बहुमत जो हासिल हुआ था। जाहिर सी बात है इस मजबूत सरकार से कुछ बड़े बदलावों की उम्मीदें जनता ने संजोई थी और खुद मोदी व उनके सहयोगियों ने इसका वादा भी किया था। लेकिन आज क्या हुआ चार साल के बाद? मोदी सरकार ने उम्मीदों से सिर्फ छल ही तो किया है। अमीर और अमीर हो गया। गरीब और गरीब। देश की 125 करोड़ जनता को यह जानना जरूरी है कि बीते चार सालों में देश को खर्चीली रैलियों, गढ़े हुए भाषणों, रेडियो पर मन की बातों और जुमलों के अलावा हासिल क्या हुआ है?
राजनीति से प्रेरित है निजी स्कूलों की मनमानी
रेयान इंटरनेशनल स्कूल में 7 साल के प्रद्युम्न ठाकुर की नृशंस हत्या हमारे बिगड़ते सामाजिक व्यवहार का उदाहरण तो है ही साथ ही हमारे लिए एक संकेत भी है। इशारा कि केवल सामाजिक तानेबाने को कोसने या फिर किसी संस्थागत कमी की लकीर को पीटने भर से कुछ नहीं होगा बल्कि बात तो तब बनेगी जब हम पोलिटिकल रिफॉर्म पर बहस करेंगे।
पीएम मोदी को लुभाता है इजरायल का राष्ट्रवाद
भारत की आजादी के 70 साल में किसी प्रधानमंत्री की पहली इजराइल यात्रा को लेकर नरेंद्र मोदी काफी उत्सुक है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगवानी के लिए भी इजरायल भी पूरी तरह से तैयार है। हालांकि मोदी इससे पहले 2006 में भी इस यहूदी देश की मेहमानवाजी का लुत्फ उठा चुके हैं। लेकिन तब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे। आज वह प्रधानमंत्री हैं। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर इतने साल बाद भारत को इजरायल की याद क्यों आयी?
किसानों की आत्महत्या का अंतहीन सिलसिला
मध्य प्रदेश में कर्ज का बोझ और सूदखोरों से परेशान किसानों की आत्महत्या का अंतहीन सिलसिला जारी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गृह जनपद सीहोर में एक और किसान ने सोमवार सुबह अपने घर में फांसी लगाकर जान दे दी। गिनती करें तो सीहोर में पिछले 8 दिनों में चौथे किसान ने खुदकुशी की है। और मंदसौर में गोलीबारी की घटना के बाद आठ दिनों में 12 किसानों ने जान दी है। आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या बढ़ने का मतलब साफ है कि उसका सरकार में भरोसा पूरी तरह से खत्म हो चुका है। यह एक भयावह स्थिति है। समय रहते सरकार ने इस अन्नदाता की तकलीफ पर ध्यान नहीं दिया तो आत्महत्या का यह अंतहीन सिलसिला जारी रहेगा और वो दिन दूर नहीं जब देश में किसानी करने वाले अन्नदाता खत्म हो जाएंगे। सोचिए! तब क्या होगा?
आप का वो माइडस टच!
इन दिनों आम आदमी पार्टी उस दौर से गुजर रही है जो उसके लिए अकल्पनीय है। ठीक वैसे ही जैसे दिल्ली की सत्ता पर बम्पर जीत के साथ काबिज होना। एक दौर वो था जब सब आप के माइडस टच के कायल थे। माइडस एक यूनानी पौराणिक कथा का पात्र। कहा जाता है कि वो एक ऐसा राजा था जो जिस चीज को छूता था वो सोने का हो जाता था। आप के साथ भी कुछ वैसा था। जिस मुद्दे को पार्टी उठाती थी...उस पर सब विश्वास करते थे। यकीन होता था कि ये पार्टी विद डिफरेंस हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए सकारात्मकता का संचार करेगी।