ब्रिटेन में बोरिस जॉनसन ने ध्वस्त किया लेबर पार्टी का 100 साल पुराना किला, कंजरवेटिव पार्टी को प्रचंड बहुमत
सत्ता विमर्श डेस्क
लंदन : ब्रिटेन में 12 दिसंबर को हुए आम चुनाव के एकतरफा नतीजे में बोरिस जॉनसन की कंजरवेटिव पार्टी (टोरी) को जबरदस्त बहुमत मिला। शुक्रवार को घोषित चुनाव परिणामों में हाउस ऑफ कॉमन्स की कुल 650 में से कंजरवेटिव पार्टी को 365 सीटों पर जीत मिली है। यह बहुमत के आंकड़े (326) से 39 ज्यादा हैं। इस बार जॉनसन को मार्गरेट थैचर जैसा ही जनादेश मिला है। इस प्रकार से लेबर पार्टी को 1930 के बाद सबसे बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। 2016 के जनमत संग्रह के बाद ही साफ हो गया था कि ब्रिटेन यूरोपियन यूनियन (ईयू) छोड़ देगा। अब इस जनादेश से इसपर मुहर भी लग गई है। जनवरी के अंत तक ब्रिटेन इससे बाहर हो जाएगा।
कंजरवेटिव पार्टी की जीत बताती है कि ब्रिटेन की राजनीति में बदलाव आ चुका है। कंजरवेटिव पार्टी को अमीरों की पार्टी कहा जाता है बावजूद इसके उत्तरी और मध्य इलाके में मजदूर वर्ग के वोटरों पर पार्टी ने अपनी छाप छोड़ी है। जॉनसन के पास संसद का पूरा समर्थन रहेगा। थैचर और टोनी ब्लेयर की तरह ही जॉनसन के पास ब्रिटेन को आगे ले जाने की पूरी छूट होगी। कंजरवेटिव पार्टी ने लेबर पार्टी के गढ़ में जबरदस्त सेंधमारी की है। दिलचस्प बात ये है कि जिस ब्लाइथ घाटी में टोरियों को दुश्मन माना जाता था, वहां भी पार्टी को जीत मिली है। लेबर नेता जेरेमी कोर्बिन को जनता ने पूरी तरह ठुकरा दिया। कोर्बिन ने जॉनसन के अर्थव्यवस्था पर उठाए गए कदमों और वादों पर सवाल उठाए थे। वहीं, जॉनसन ने आरोप लगाए थे कि कोर्बिन ने तानाशाहों और आतंकवादियों के प्रति नरमी बरती है। अंत में चुनाव नतीजों ने जॉनसन की जोखिम भरी रणनीति पर मुहर लगा दी है। उन्होंने मजदूर वर्ग के ब्रेग्जिट वोटरों पर ध्यान दिया था। इसी का असर रहा कि लेबर पार्टी को कई सीटों पर हार झेलनी पड़ी। जॉनसन की ये जीत कई मायनों में अहम रही। उनकी जीत के कारणों को भी समझने की जरूरत है।
127 साल में सबसे ज्यादा 15 भारतीय मूल के लोग बने सांसद
ब्रिटेन के आम चुनाव में भारतीय मूल के लोगों का प्रदर्शन उम्मीद से बेहतर रहा। कुल 15 भारतवंशी संसदीय चुनाव जीते। प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की कंजरवेटिव पार्टी से 7 जबकि उनकी मुख्य विरोधी लेबर पार्टी से भी इतने ही भारतीय मूल के सांसद चुने गए। एक अन्य लिबरल डेमोक्रेट पार्टी के टिकट पर विजयी रहे। 1892 में फिन्सबरी सेंट्रल से भारतीय मूल के दादाभाई नौरोजी पहली बार सांसद बने थे। अब 127 साल बाद भारतवंशी सांसदों का आंकड़ा 15 हो गया है।
पिछले चुनाव में यह आंकड़ा 12 था। कंजरवेटिव पार्टी से दो भारतवंशी पहली बार सांसद बने। ये हैं- गगन मोहिंद्रा (हार्टफोरशायर साउथ वेस्ट) और क्लेयर कुटिन्हो (सरे ईस्ट)। इस पार्टी से पांच सांसद दोबारा जीते। ये हैं- प्रीति पटेल (विटहैम), आलोक शर्मा (रीडिंग वेस्ट), शैलेष वारा (कैम्ब्रिजशायर नॉर्थ ईस्ट), सुएला ब्रेवरमैन (फेयरहैम) और ऋषि सुनाक (रिचमंड यॉर्कशायर)।
ब्रिटेन में करीब 15 लाख भारतीय मूल के लोग हैं। आम चुनाव के नतीजे सामने आए तो इनकी ताकत का अहसास हुआ। हाउस ऑफ कॉमन्स में अब कुल 15 भारतवंशी सांसद होंगे। लगातार दूसरी बार सत्ता संभालने जा रहे जॉनसन की पार्टी का पलड़ा भारी माना जा रहा था। उनकी पार्टी से 7 भारतवंशी संसद पहुंचेंगे। लेबर पार्टी का प्रदर्शन फीका रहा। लेकिन, इस पार्टी से भी 7 भारतवंशी हाउस ऑफ कॉमन्स में पहुंचेंगे। पिछले सदन में कंजरवेटिव पार्टी से 5 भारतीय सांसद थे। इस चुनाव में तीन भारतवंशी ऐसे हैं जो पहली बार चुनकर आए हैं।
पांच साल पहले डेविड कैमरॉन के नेतृत्व में कंजरवेटिव पार्टी मुक्त बाजार, समलैंगिक विवाह और पर्यावरणवाद का समर्थन करने वाली उदार पार्टी के तौर पर जानी जाती थी। लेकिन जॉनसन उसे अर्थव्यवस्था सुधार के क्षेत्र में ले गए। उन्होंने सरकारी खर्च बढ़ाने, कमजोर उद्योगों का समर्थन करने जैसे वादे कर लोगों का ध्यान खींचा। चुनाव परिणामों से ये साफ हो गया कि उत्तरी इलाकों में लेबर पार्टी समर्थक कामगार वर्ग ने पूरे खेल का पासा ही पलट दिया। इन्होंने खुलकर कंजरवेटिव पार्टी के लिए मतदान किया। लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी की भी इस चुनाव में बुरी गत हुई। उसके नेता जो स्विनसन ही चुनाव हार बैठे हैं।
अब प्रधानमंत्री जॉनसन के सामने कई चुनौतियां होंगी। सबसे बड़ी चुनौती है ब्रेग्जिट से अलग होने की। अगले महीने ब्रिटेन के यूरोपीय यूनियन से अलग होने की औपचारिकता पूरी होगी। जॉनसन के सामने एक और बड़ी चुनौती होगी। इस चुनाव में स्कॉटिश नेशनल पार्टी ने टोरियों से कई सीटें छीनी हैं। 2021 में स्कॉटलैंड के चुनाव होंगे। यहां के मतदाताओं ने ईयू में बने रहने का समर्थन किया था। इसके चलते अब स्कॉटलैंड की आजादी के लिए जनमत संग्रह कराने की मांग और मजबूती से उठे। जबकि जॉनसन स्कॉटलैंड के ब्रिटेन से अलग होने का विरोध करते हैं। ऐसे में आने वाले वक्त में उनके सामने ये मुद्दा एक बड़ी चुनौती बनकर उभरेगा।