साख और राजनीतिक पुनरोत्थान की जंग
किरण राय
ओपिनियन पोल सामने हैं। भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर सरकार बनाने की कगार पर बताई जा रही है और कांग्रेस अपने अंक तो बढ़ाती दिख रही है लेकिन सरकार बनाने का आंकड़ा उससे दूर है। जो ट्रेंड सामने आए हैं वो इंगित करते हैं कि पाटीदार और दलित आंदोलनों के बावजूद गुजरात के बेटे 'मोदी' की लोकप्रियता असर दिखाएगी। भाजपा पिछले 22 सालों से गुजरात से बेदखल नहीं हुई है और इस बार फिर जी जान से जुटी है उसके लिेए ये जीत साख का सवाल है तो कांग्रेस के लिए राजनीतिक पुनरोत्थान का। कांग्रेस विजय प्राप्त करती है तो 2019 के आम चुनावों के लिए सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ेगी।
इन सर्वे से जाहिर होता है कि भाजपा का वोट शेयर काफी कम होगा और कांग्रेस उनके किले को भेदने में कामयाब होगी...लेकिन इतना भी नहीं कि वो (भाजपा) सरकार ना बना सके। ये चुनाव राहुल गांधी की social acceptance यानी सामाजिक स्वीकृति को भी परखने वाले होंगे। राहुल ने इस बीच खुद को काफी बदला भी है। जहां वो राजनीतिक मंच पर काफी असहज से दिखते थे अब फ्रंट फुट पर विरोधी खेमे की बॉल खेलते हैं। चुनाव प्रचार उन्होंने काफी आक्रामक अंदाज में किया है। गुजरात की जनता उन्हें 2018 या 2019 के विकल्प के तौर पर देश की जनता के सामने पेश करेगी।
ठीक वैसे ही मोदी की नेतृत्व क्षमता का ये लिटमस टेस्ट है। उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद 21 राज्यों में चुनाव लड़े गए। हरियाणा, उत्तराखंड और असम में भाजपा ने कांग्रेस के हाथ से सत्ता छीन ली वहीं 10 राज्यों में अपने सहयोगियों के साथ मिलकर सरकार बनाई। वहीं कांग्रेस ने पुड्डुचेरी और अरुणाचल प्रदेश में सत्ता बचाई तो पंजाब और केरल में (यहां अपने सहयोगियों के साथ) जीत हासिल की। भाजपा के लिए बिहार और दिल्ली की हार एक करारा झटका थी तो उत्तर प्रदेश में बम्पर जीत अविश्वसनीय रही।
गुजरात ऐसा पहला प्रांत है जहां 90 के दशक से एक ही दल राज करता आ रहा है। ये पहला राज्य है जहां बिना किसी सहयोगी के ही भाजपा अपना परचम लहराती आई है... मोदी के प्रधानमंत्री बनने और अमित शाह के भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद ये उनका पहला बड़ा इम्तेहान है। राजनीतिक विचारकों और विश्लेषकों का मत है कि भाजपा जीत जाएगी। भले ही दलित और पटेल आंदोलनों का उसे कुछ खामियाजा भुगतना पड़े। चुनाव लोकतांत्रिक दृष्टि से भी काफी अहम हैं। सवाल कई होंगे...एक व्यक्ति विशेष के दम पर क्या जीत देश के लिए सही है? ये जानते हुए कि उस सूबे में एक बार नहीं बल्कि मोदी के जाने के बाद दो-दो बार मुख्यमंत्री बदले गए हों...क्योंकि दोनों ही अपने पद के अनुरूप जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभा पाए। क्या गुजरात मॉडल का मतलब मोदी थे? अगर पोल के मुताबिक नतीजे आते हैं तो कांग्रेस को अपने अंदर झांकने की हिम्मत कायदे से करनी होगी। उसे खुद को समझाना होगा कि क्यों वो एक मजबूत विपक्ष के तौर पर खुद को साबित नहीं कर पाई? क्यों सत्ता पक्ष की 22 साल की कमजोरियों पर वो आक्रामक अंदाज में वार नहीं कर पाई?