प्रधानमंत्री जी! वाकई ये अंदाज-ए-गुफ्तगू है क्या
किरण राय
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की धारा प्रवाह बोलने की कला के सब कायल हैं। उनकी शैली, विपक्ष पर हमला करते वक्त कसा गया तंज सभी को भाता है। घण्टों मंच पर खड़े रहकर अपनी बात प्रभावशाली तरीके से रखना उनकी खासियत है। लेकिन अपने संसदीय क्षेत्र से जिस तरह का भाषण उन्होंने दिया ना तो वो एक प्रधानमंत्री की गरिमा के अनुरूप था और ना ही उससे हमारी राजनीति या फिर जनता का कोई लाभ होने वाला है। मोदी जी हिन्दी फिल्मों के नायक की तरह नहीं बल्कि एक हास्य अभिनेता के किरदार में खुद को एडजस्ट करने की कोशिश करते दिखे। क्या विपक्ष पर धावा बोलने के लिए मिमिक्री जरूरी थी?
प्रधानमंत्री ने अपनी जनता के सामने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की खिल्ली उड़ाई। उन्हें ऐसा युवा नेता बताया जो बोलना सीख रहा है और उसका बोलना उन्हें पसंद आने लगा है। लेकिन क्या ये बात अपने चिर परिचित अंदाज में मोदी कहते तो लोग समझ नहीं पाते? या फिर उन्हें लगने लगा है कि अपने पुराने अंदाज से इतर उन्हें कुछ नया करना चाहिए, भले इसके लिए मान और साख दोनों पर सवाल खड़े होने लगे। एक और चीज जो वाकई सोचनीय है वो ये, कि जो इस सरकार के निर्णयों का विरोध करे वो पाकिस्तान की सोच रखने वाला होता है इसका मतलब क्या? क्या कोई आपका विरोध ना करे! और जो करेगा वो देश के खिलाफ होगा। ये कैसी राजनीति है? मोदी के एक-एक शब्द अपनी बात कम मनमोहन, चिदम्बरम जैसे नेताओं का मजाक उड़ाने वाले ज्यादा लगे।
जनता का क्या है वो तो आपकी सुन कर जाएगी, कुछ देर हंसेगी फिर उसको समझेगी लेकिन फिर शायद भूल भी जाएगी। लेकिन बतौर पीएम आपने किस परम्परा के तहत नकल के तरीके का इस्तेमाल किया। ऐसे में अगर युवा राजनीति करने वाला युवराज अंदाज-ए-गुफ्तगू पर सवाल खड़े करे तो गलत क्या है? इस तरह मोदी जी ने अपना ही नहीं उस पद का भी मखौल उड़ाया जिसकी एक अपनी गरिमा और पहचान होती है। आखिर जुमलों के बाद ये मजाकिया अंदाज क्या सही है?