ईमानदारी पचाना सीखो सत्ताधारियों
किरण राय
हरियाणा के बहुचर्चित और विवादास्पद व्हिसलब्लोअर आईएएस अधिकारी अशोक खेमका की ईमानदारी को भाजपा की खट्टर सरकार भी नहीं पचा पाई। ऐसा लगता है कि अब देश में सत्ताधारियों का हाजमा इतना कमजोर हो गया है कि वह ईमानदारी को पचा नहीं पाता है। दबंग कार्यशैली के लिए चर्चित 1993 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी अशोक खेमका पांच महीने में दो बार तबादले से दुखी हैं। सरकार ने उन्हें परिवहन विभाग के आयुक्त एवं सचिव पद से हटाकर उनका तबादला पुन: पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग के महानिदेशक पद पर कर दिया है। गौर करें तो उनके लगभग 24 साल के कार्यकाल में यह 46वीं बार तथा मौजूदा भाजपा सरकार में दूसरी बार तबादला हुआ है।
अशोक खेमका के तबादले से पुरानी कांग्रेस सरकार के बाद अब भाजपा सरकार पर भी सवाल उठने लगे हैं। हालांकि प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने इस बारे में स्पष्टीकरण देते हुए कहा है कि यह एक सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा है तथा सरकार प्रशासनिक जरूरतों के अनुसार अधिकारियों के तबादले करती है। इसे किसी दूसरे नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए। लेकिन बड़ा सवाल यह कि कायदे कानूनों का पालन करने का दावा करने वाली सरकार ने देश की सर्वोच्च अदालत के निर्देश की अवहेलना क्यों की। सर्वोच्च अदालत का कहना है कि दो साल से पहले तबादला करने पर सिविल सर्विसेज बोर्ड को कारण बताना होगा। दिलचस्प बात यह है कि बोर्ड का मुखिया मुख्य सचिव होता है और उसने ही तबादले का आदेश जारी किया है। अब सुनवाई कौन करे।
दूसरा बड़ा सवाल यह कि हरियाणा की नई स्टेट कैरिज स्कीम (नई परिवहन नीति) लाने से पहले ही अशोक खेमका का तबादला सरकान ने क्यों किया? मालूम हो कि नई स्टेट कैरिज स्कीम लाने का ऐलान हाल ही में विधानसभा के बजट सत्र के दौरान वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु ने किया था। इस पर विभाग काम कर रहा था और अशोक खेमका भी उसका हिस्सा थे। इस स्टेट कैरिज परमिट स्कीम के तहत केवल उन्हीं मार्गों पर प्राइवेट प्लेयर्स को परमिट देने की योजना थी जहां रोडवेज अपनी सेवा देने को तैयार नहीं हो। इसको लेकर रोडवेज यूनियन विरोध में खड़ी हो गई थी।
दरअसल अशोक खेमका काफी दिनों से ओवरलोडिंग और ओवरसाइजिंग को रोकने की मुहिम में जुटे हुए थे। एक आंकलन के मुताबिक उत्तर प्रदेश और राजस्थान से करीब 3000 ट्रक और डंपर अवैध माइनिंग करके रोजाना रेत, बजरी और पत्थर लेकर हरियाणा में आते हैं। इनमें क्षमता से तीन गुना अधिक मेटेरियल होता है। इनसे हादसे होने के साथ ही सड़कें भी जल्दी टूटती हैं। खेमका इसको रोकने के अभियान में जुटे थे। परिवहन विभाग में आने के बाद खेमका ने ऐसे तमाम वाहनों के फिटनेस प्रमाण-पत्र जारी करने पर रोक लगा दी थी। इससे इंडस्ट्री में बवाल मच गया। ट्रांसपोर्टर्स हड़ताल पर चले गए और इन लोगों ने दबाव बनाया तो सरकार ने उन्हें एक साल के लिए गैरकानूनी तरीके से चलने की छूट दे दी।
परिवहन विभाग अमूमन सबसे ज्यादा भ्रष्ट विभागों में से एक होता है, क्योंकि व्यावसायिक परिवहन में तमाम लाइसेंस, परमिट का कारोबार होता है। ऐसे में राजनेताओं के हित इस विभाग से जुड़े होते हैं और वहां कोई बेहद ईमानदार अफसर बैठ जाए तो भ्रष्टाचार के जमे-जमाए तंत्र को काम करने में दिक्कत होती है। कहा जा रहा है कि खेमका के वहां होने से किसी प्रभावशाली राजनेता को असुविधा हो रही थी। ऐसा नहीं है कि प्रशासन में और ईमानदार अफसर नहीं हैं, लेकिन ज्यादातर ईमानदार लोग इस बेईमान सत्ता तंत्र से समझौता करके रहना सीख जाते हैं। कुछ अफसर होते हैं, जो कतई समझौता नहीं करते और खेमका की तरह भुगतते हैं।
याद कीजिए, जब हरियाणा में कांग्रेस की सरकार थी, तब खेमका भाजपा के प्रिय थे, क्योंकि वह रॉबर्ट वाड्रा के कारोबार की गड़बड़ियों को उजागर कर रहे थे। तब कांग्रेस सरकार ने उन्हें प्रताड़ित करने की भरपूर कोशिश की थी। मगर पिछले दिनों आई सीएजी की रिपोर्ट से यह जाहिर हुआ कि खेमका ने जो आपत्तियां उठाई थीं, वे जायज थीं। दरअसल हमारे देश में राजनीति व प्रशासन में नियमों के विरुद्ध लोगों को उपकृत करना ही नियम बन गया है, नियमों का पालन करना अपवाद है। परिवहन विभाग में भी खेमका ने नियमों को कड़ाई से लागू करने की कोशिश की थी। यह प्रयास भ्रष्टाचार व सिफारिशों पर आधारित तंत्र में सरकार के लिए मुसीबत बन गया था और सरकार को उनका तबादला ही एकमात्र विकल्प दिखा।
ऐसा भी नहीं है कि अकेले अशोक खेमका ही इस सत्ता तंत्र की बेईमानी का शिकार बने हों। हरियाणा के एक अन्य अफसर संजीव चतुर्वेदी के साथ भी ऐसा हो चुका है। उन्हें भी पिछली राज्य सरकार ने काफी प्रताड़ित किया था। वन सेवा के अधिकारी चतुर्वेदी को आखिरकार दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में सतर्कता अधिकारी बनाया गया, लेकिन वहां से भी केंद्र की भाजपा सरकार के राज में उन्हें जाना पड़ा। आम जनता सच्चे और ईमानदार लोगों को चाहती है, यह बार-बार साबित हो चुका है। ऐसे में हमारे सत्ताधीशों और आम जनता के बीच इतना बड़ा फर्क क्यों कि वे ईमानदार आईएएस अधिकारी को पचा नहीं पाते?