संसद में CAG का बड़ा खुलासा : जंग के हालात बने तो 10 दिन में खत्म हो जाएंगे गोला बारूद
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : चीन और पाकिस्तान की सीमा पर लगातार बढ़ रहे तनाव के बीच नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने अपनी रिपोर्ट में बड़ा खुलासा करते हुए कहा है कि अगर पाकिस्तान या चीन से युद्ध के हालात बनते हैं तो भारतीय सेना के पास इतना भी गोला-बारूद नहीं है कि वह लगातार 10 दिनों तक दुश्मनों का मुकाबला कर सके।
गौरतलब है कि कैग सरकारी खातों का ऑडिट करती है। कैग द्वारा शुक्रवार (21 जुलाई) को संसद में रखी गई रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया है कि सेना मुख्यालय ने 2009 से 2013 के बीच खरीदारी के जिन मामलों की शुरुआत की, उनमें अधिकतर जनवरी 2017 तक भी पूरे नहीं हो सके हैं। 2013 से ही ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड ने आपूर्ति किए जाने वाले गोला-बारूद की गुणवत्ता और मात्रा में कमी पर ध्यान दिलाया था, लेकिन इस दिशा में कोई खास प्रगति नहीं हुई और उत्पादन लक्ष्य में कमी बरकरार रही। हटाए गए या काम न आने लायक गोला-बारूद को हटाने या फिर उन्हें दुरुस्त करने में भी सरकार का यही रवैया रहा। गोला-बारूद के डिपो में अग्निशमनकर्मियों की कमी और उपकरणों से हादसे के खतरे का भी कैग ने अपनी रिपोर्ट में जिक्र किया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, सितंबर 2016 में पाया गया कि सिर्फ 20 फीसदी गोला-बारूद ही 40 दिन के मानक पर खरे उतरे। 55 फीसदी गोला बारूद 20 दिन के न्यूनतम स्तर से भी कम थे। हालांकि इसमें बेहतरी आई है, लेकिन बेहतर फायर पावर को बनाए रखने के लिए बख्तरबंद वाहन और उच्च क्षमता वाले गोला-बारूद जरूरी मानक स्तर से कम पाए गए। रिपोर्ट के मुताबिक, मंत्रालय ने 2013 में रोडमैप मंजूर किया था, जिसके तहत तय किया गया कि 20 दिन के मंजूरी स्तर को 50 फीसदी तक ले जाया जाए और 2019 तक पूरी तरह से भरपाई कर दी जाए। 10 दिन से कम अवधि के लिए गोला-बारूद की उपलब्धता बेहद चिंताजनक समझी गई है।
इसके अलाला कैग ने चार पनडुब्बी रोधी वाहक युद्धक पोत के निर्माण में देरी के लिए नौसेना को आड़े हाथ लिया है। संसद में पेश की गई कैग की रिपोर्ट में कहा गया कि नौसेना को सुपुर्द किये गये चार युद्धक पोतों में जरूरी अस्त्र एवं सेंसर प्रणाली नहीं लगायी गई जिसके कारण वे उतनी क्षमता से प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं जिसकी परिकल्पना की गयी थी। कैग ने नौसेना के डिजाइन निदेशालय की भी वाहक पोत की डिजाइन को अंतिम रूप देने में विलंब के लिए आलोचना करते हुए कहा कि स्वीकृत डिजाइन में 24 बदलाव किए गये। सार्वजनिक क्षेत्र के रक्षा उपक्रम गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एवं इंजीनीयर्स लिमिटेड को परियोजना के लिए आशय पत्र 2003 में जारी किया गया था किन्तु पोत की डिजाइन में में व्यापक बदलाव 2008 तक चलता।
नौसेना को पहला वाहक पोत जुलाई 2014 और दूसरा नवंबर 2015 में सौंपा गया। परियोजना के अनुबंध के अनुसार तीसरे वाहक पोत जुलाई 2014 में चौथा अप्रैल 2015 में सौंपा जाना था। कैग ने अपनी रिपोर्ट में इस बात की ओर भी ध्यान दिलाया है कि 2007-08 में हुई 38 दुर्घटनाओं में नौसेना के पोत एवं पनडुब्बियां शामिल रहे। इससे बल की अभियानगत तैयारियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। रिपोर्ट में कहा गया कि सुरक्षा मुद्दों से निबटने के लिए एक विशेष संगठन बनाया गया था। बहरहाल इसके लिए सरकार की मंजूरी का इंतजार किया जा रहा है।