सुप्रीम फैसला : अयोध्या की विवादित भूमि पर विराजमान होंगे रामलला विराजमान, सुन्नी वक्फ बोर्ड का मस्जिद का दावा खारिज
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : करीब सात दशक तक चली कानूनी लड़ाई के बाद अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का बहुप्रतीक्षित सुप्रीम फैसला सुना दिया गया है। राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने सर्वसम्मति यानी 5-0 से ऐतिहासिक फैसला सुनाया। फैसले में निर्मोही अखाड़े के दावे को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने रामलला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड को ही पक्षकार माना। कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा विवादित जमीन को तीन पक्षों में बांटने के फैसले को अतार्किक करार देते हुए आखिर में रामलला विराजमान के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में ही कहीं और 5 एकड़ जमीन दी जाए। कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि वह मंदिर निर्माण के लिए तीन महीने में ट्रस्ट बनाए जिसमें निर्मोही अखाड़े को भी प्रतिनिधित्व दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट के रूम नंबर-एक में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने करीब 45 मिनट में एक-एक कर फैसले के मुख्य बिंदुओं को पढ़ा।
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चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने फैसले में कहा कि टाइटल सिर्फ आस्था से साबित नहीं होता है। 1856-57 तक विवादित स्थल पर नमाज पढ़ने के सबूत नहीं हैं। जबकि हिंदू इससे पहले अंदरूनी हिस्से में भी पूजा करते थे। लिहाजा सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 2.77 एकड़ विवादित जमीन का मालिकाना हक रामलला विराजमान को देने का फैसला किया है। कोर्ट ने आगे कहा कि चूंकि हर मजहब के लोगों को संविधान में बराबर का सम्मान दिया गया है। इसलिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को इसके एवज में मस्जिद निर्माण के लिए पांच एकड़ जमीन दी जाए। केंद्र सरकार या तो अयोध्या में अधिग्रहित की गई 67 एकड़ जमीन में से 5 एकड़ जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को दे या फिर यूपी सरकार अयोध्या शहर के भीतर कहीं और मुस्लिम पक्ष के लिए जमीन दे। कोर्ट ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार मंदिर निर्माण के लिए तीन महीने में ट्रस्ट बनाकर अपनी पूरी योजना बताए। इस ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़े को भी प्रतिनिधित्व मिले।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 16 दिसंबर 1949 तक नमाज पढ़ी गई थी। टाइटल सूट नंबर 4 (सुन्नी वक्फ बोर्ड) और 5 (रामलला विराजमान) में हमें संतुलन बनाना होगा। हाई कोर्ट ने जो तीन पक्ष माने थे उसे दो हिस्सों में मानना होगा। हाई कोर्ट द्वारा जमीन को तीन हिस्सों में बांटना तार्किक नहीं था। इससे साफ हो गया कि मामले में अब रामलला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड दो पक्ष ही रह गए। सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य पार्टी रामलला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड को ही माना। सुन्नी पक्ष ने विवादित जगह को मस्जिद घोषित करने की मांग की थी। कोर्ट ने फैसले में कहा कि 1856-57 तक विवादित स्थल पर नमाज पढ़ने के सबूत नहीं हैं। मुस्लिम पक्ष ने अपने दावे में कहा था कि वहां लगातार नमाज पढ़ी जाती रही थी। कोर्ट ने कहा कि 1856 से पहले अंदरूनी हिस्से में हिंदू भी पूजा किया करते थे। रोकने पर बाहर चबूतरे पर पूजा करने लगे। अंग्रेजों ने दोनों हिस्से अलग रखने के लिए रेलिंग बनाई थी। फिर भी हिंदू मुख्य गुंबद के नीचे ही रामलला का गर्भगृह मानते थे।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की खुदाई से निकले सबूतों की अनदेखी नहीं कर सकते हैं। बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनी थी। मस्जिद के नीचे विशाल संरचना थी। एएसआई ने इसे 12वीं सदी का मंदिर बताया है। कोर्ट ने कहा कि वहां से जो कलाकृतियां मिली थीं, वह इस्लामिक नहीं थीं। विवादित ढांचे में पुरानी संरचना की चीजें इस्तेमाल की गई थीं। गौरतलब है कि मुस्लिम पक्ष लगातार कह रहा था कि एएसआई की रिपोर्ट पर भरोसा नहीं करना चाहिए। हालांकि कोर्ट ने फैसले में यह भी कहा कि नीचे संरचना मिलने से ही हिंदुओं के दावे को माना नहीं जा सकता। कोर्ट ने कहा कि एएसआई यह साबित कर पाया कि मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनी थी। लेकिन अयोध्या में राम के जन्मस्थान के दावे का किसी ने विरोध नहीं किया। विवादित जगह पर हिंदू पूजा किया करते थे। गवाहों के क्रॉस एग्जामिनेशन से हिंदू दावा गलत साबित नहीं हुआ। हिंदू मुख्य गुंबद को ही राम के जन्म का सही स्थान मानते हैं। रामलला ने ऐतिहासिक ग्रंथों के विवरण रखे। हिंदू परिक्रमा भी किया करते थे। चबूतरा, सीता रसोई, भंडारे से भी इस दावे की पुष्टि होती है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने शिया वक्फ बोर्ड की अपील खारिज कर दी। जज ने कहा कि मस्जिद कब बनी, इससे फर्क नहीं पड़ता। 22-23 दिसंबर 1949 को मूर्ति रखी गई। एक व्यक्ति की आस्था दूसरे का अधिकार न छीने। लिहाजा नमाज पढ़ने की जगह को हम मस्जिद मानने से मना नहीं कर सकते हैं। यह जगह सरकारी जमीन है।