नोटबंदी : संसद में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच गतिरोध बरकरार
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : नोटबंदी को लेकर विपक्ष सदन के बाहर तो हमलावर है ही सदन में भी पक्ष और विपक्ष के बीच तकरार बरकरार है। मोदी सरकार के निर्णय को लेकर आम लोगों को हो रही परेशानियों के विरोध में विपक्षी नेताओं ने भी अपने तीखे तेवर कायम रखते हुए प्रधानमंत्री से इस मुद्दे पर संसद में बयान देने की मांग को लेकर भारी हंगामा किया जिससे दोनों सदनों की कार्यवाही दिन भर बाधित रही। हालांकि सरकार की ओर से कहा गया कि वह चर्चा के लिए तैयार है और विपक्ष को चर्चा से बचना नहीं चाहिए।
विपक्ष द्वारा यह मांग भी की गयी कि नोटबंदी के सरकार के फैसले की संयुक्त संसदीय समिति से जांच करायी जाए तथा नोट बदलवाने के लिए लाइन में लगने के दौरान जान गंवाने वाले लोगों को 10-10 लाख रूपये का मुआवजा दिया जाए।
विपक्ष के हंगामे और विपक्षी सदस्यों के बार-बार आसन के समक्ष आकर नारेबाजी करने के कारण संसद के दोनों सदनों में प्रश्नकाल और शून्यकाल भी नहीं चल पाए। हंगामे के कारण जहां लोकसभा को एक बार के स्थगन के बाद वहीं राज्यसभा को दो बार के स्थगन के बाद पूरे दिन के लिए स्थगित कर दिया गया।
लोकसभा में विपक्ष मतविभाजन वाले नियम-56 के तहत नोटबंदी मुद्दे पर तत्काल चर्चा कराने की मांग पर बुधवार को भी अड़ा रहा। सदन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी में अपनी मांग के समर्थन में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, वाम दल के सदस्य अध्यक्ष के आसन के समीप आकर नारेबाजी करने लगे। कांग्रेस सदस्य अपने हाथों में एक बड़ा बैनर लिये हुए थे जिस पर नोटबंदी के विरोध में नारे आदि लिखे हुए थे।
लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने सदस्यों से अपने स्थान पर जाने और सदन की कार्यवाही चलने देने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि बैनर दिखाना नियमों के खिलाफ है। संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार ने कहा कि सरकार सभी मुद्दों पर चर्चा को तैयार है। लेकिन इस प्रकार से बैनर, पोस्टर दिखाना कांग्रेस जैसे दल के लिए ठीक नहीं है जिसने देश पर 50 साल से अधिक समय तक शासन किया। अनंत कुमार ने कहा कि नोटबंदी पर एक दो या तीन दिन भी चर्चा की जा सकती है, हम उसके लिए तैयार हैं। लेकिन इस प्रकार से सदन की कार्यवाही बाधित करना ठीक नहीं है।
कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि हम काफी प्रयास कर रहे हैं कि नियम 56 के तहत चर्चा कराने की अनुमति दी जाए। बाहर जनता में ऐसा संदेश जा रहा है कि विपक्ष चर्चा के लिए तैयार नहीं है। सदन के बाहर भाजपा के लोग कह रहे हैं कि कुछ लोग कालेधन के समर्थन में हैं। उन्होंने कहा, हम चर्चा के लिए तैयार हैं। प्रधानमंत्री सदन में उपस्थित नहीं हैं। वह आएं, हमारी बात सुनें। खड़गे जब अपनी बात रख रहे थे तो सदन में प्रधानमंत्री नहीं थे।
तृणमूल सदस्य सुदीप बंदोपाध्याय ने कहा कि प्रधानमंत्री केवल भाजपा के नेता नहीं बल्कि पूरे सदन के नेता हैं। उन्हें विपक्ष की बात सुननी चाहिए। अन्नाद्रमुक के पी. वेणुगोपाल, राजद के जयप्रकाश नारायण यादव ने भी नोटबंदी के मुद्दे पर जनता को हो रही परेशानी पर अपनी बात रखी। माकपा के पी. करुणाकरण ने कहा कि इस मुद्दे पर राजग के कुछ सहयोगी दल और सांसद भी हमारे साथ हैं। इस पर सत्तापक्ष के सदस्यों ने विरोध जताया।
बीजद के भर्तृहरि महताब ने कहा कि उनकी पार्टी ने नियम 193 के तहत चर्चा का नोटिस दिया है जिसके लिए सरकार तैयार भी है। चर्चा शुरू नहीं हो पा रही है और दोनों पक्षों के बीच जल्द चर्चा शुरू कराने पर सहमति बननी चाहिए। अकाली दल के प्रेमसिंह चंदूमाजरा ने मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले की तारीफ करते हुए कहा कि यह अच्छा निर्णय है और कतारों में खड़े गरीब लोग भी मोदी की तारीफ कर रहे हैं।
शिवसेना के आनंदराव अडसुल ने कहा कि हमने नोटबंदी के फैसले का स्वागत किया है। यह जरूरी कदम था। कालेधन पर लगाम लगाने के लिए ढाई साल से चर्चा हो रही थी। इसे चलन से बाहर करना जरूरी था। उन्होंने कहा कि कल प्रधानमंत्री ने हमें आश्वासन दिया था कि जनता को राहत दी जाएगी और आज कुछ निर्णय लिये गये हैं जिससे आम जनता को राहत मिलेगी। अडसुल ने कहा कि सरकार नियम 193 के तहत चर्चा कराने के लिए तैयार है तो उसी के तहत चर्चा होनी चाहिए।
हालांकि जब भाजपा के सहयोगी दलों के कुछ नेता अपनी बात रख रहे थे तभी विपक्षी सदस्य फिर से आसन के समीप आकर नारेबाजी करने लगे। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और वामदलों के सदस्य आगे आकर शोरशराबा करते रहे। उधर अन्नाद्रमुक के सदस्य अपने स्थानों पर खड़े थे। भारी शोर शराबे के बीच ही शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू और संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार ने कहा कि देश की जनता मोदी सरकार के इस फैसले के साथ है।
सरकार हर पहलू पर चर्चा के लिए तैयार है और नियम 193 के तहत चर्चा शुरू होनी चाहिए। कुमार ने कहा कि यदि विपक्ष कोई सकारात्मक सुभाव देगा तो सरकार उस पर विचार करके उसे भी लागू कर सकती है। विपक्षी सदस्यों का शोर शराबा और नारेबाजी थमते ने देख अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने सदन की कार्यवाही दोपहर 12 बजकर 35 मिनट पर पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी।
उधर, राज्यसभा में विपक्ष प्रधानमंत्री की सदन में उपस्थिति में चर्चा कराये जाने की मांग पर अड़ा रहा। बसपा नेता मायावती ने कहा कि संसद का सत्र चल रहा है और प्रधानमंत्री सदन के बजाय बाहर अपनी बात कहते हैं। यह संसद का अपमान है और प्रधानमंत्री को इसके लिए माफी मांगनी चाहिए।
जदयू के शरद यादव ने कहा कि नोटबंदी के फैसले की वजह से देश भर में 75 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। इनकी मौत के लिए कौन जिम्मेदार है? इन लोगों के परिजन को 10-10 लाख रूपये का मुआवजा दिया जाना चाहिए। कांग्रेस सदस्यों ने बाजार में मौजूद 500 रूपये और 1000 रूपये के 86 फीसदी नोटों को अमान्य किए जाने की अचानक की गई घोषणा की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति के गठन की मांग भी की।
सत्ता पक्ष के सदस्यों ने 16 नवंबर को नोटबंदी के मुद्दे पर शुरू की गई चर्चा को आगे बढ़ाने की मांग की वहीं कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और बसपा सदस्यों ने आसन के समक्ष आ कर प्रधानमंत्री को सदन में बुलाने की मांग करते हुए नारेबाजी शुरू कर दी। सपा के नरेश अग्रवाल ने कहा कि अगर प्रधानमंत्री के पास सदन में आने के लिए समय नहीं है तो उन्हें ऑनलाइन हस्तक्षेप करने की व्यवस्था करनी चाहिए। अग्रवाल का इशारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कुछ आयोजनों को वीडियो कॉन्फ्रेन्सिंग के जरिये संबोधित किए जाने की ओर था।
माकपा के सीताराम येचुरी ने कहा कि मोदी उस संस्थान में सवालों के जवाब न दे कर संविधान का उल्लंघन कर रहे हैं जिसके लिए वह जवाबदेह हैं। शर्मा ने आरोप लगाया प्रधानमंत्री ने वित्तीय अराजकता उत्पन्न की है। उन्हें सदन में आना चाहिए और लोगों की परेशानियों के बारे में जवाब देना चाहिए। तृणमूल कांग्रेस के सुखेन्दु शेखर राय ने कहा कि जब संसद सत्र चल रहा है तब प्रधानमंत्री नीतिगत फैसलों पर सदन के बाहर बयान नहीं दे सकते। इसी बीच कांग्रेस सदस्य हाथों में तख्तियां लिए आसन के समक्ष आ गए जिनमें लिखा था कि वह नोटबंदी पर जेपीसी का गठन चाहते हैं।
सदन की कार्यवाही के दौरान सपा नेता नरेश अग्रवाल और संसदीय कार्य राज्य मंत्री ने कुछ टिप्पणियां की जिन्हें सदन की कार्यवाही से निकाल दिया गया। चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री की सदन में उपस्थिति की विपक्ष की मांग पर कुरियन ने कहा कि किसी भी खास विषय पर चर्चा होने पर संबंधित मंत्री सदन में होते हैं। लेकिन वह प्रधानमंत्री या मंत्री को सदन में नहीं बुला सकते।
बाद में सदन में व्यवस्था न बनते देख कुरियन ने दोपहर करीब ढाई बजे बैठक को पूरे दिन के लिए स्थगित कर दिया। उल्लेखनीय है कि शीतकालीन सत्र के पहले दिन नोटबंदी के मुद्दे पर राज्यसभा में चर्चा हुई किन्तु वह अधूरी रही और उसके बाद से उच्च सदन में गतिरोध कायम है। लोकसभा में सत्र के पहले दिन से ही विपक्ष के मतदान के नियम के तहत चर्चा कराये जाने पर अड़े रहने के कारण गतिरोध कायम है।