गरीब सवर्णों के लिए आरक्षण प्रस्ताव का विधेयक लोकसभा से पारित, विरोध में पड़े सिर्फ तीन वोट
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए 10 प्रतिशत आर्थिक आरक्षण के प्रस्ताव वाले बिल को लोकसभा से मंजूरी मिल गई है। इस आरक्षण के लिए लाए गए 124वें संविधान संशोधन विधेयक को लोकसभा ने बहुमत के साथ पारित किया। बिल में सभी संशोधनों को बहुमत से मंजूरी दी गई। इस विधेयक के समर्थन में 323 वोट पड़े, जबकि सिर्फ तीन सांसदों ने इसके खिलाफ मतदान किया। कुल 326 सांसदों ने इस विधेयक के लिए मतदान किया था।
इस विधेयक को लेकर मंगलवार को करीब पांच घंटे तक चली बहस में लगभग सभी दलों ने इसका पक्ष लिया। किसी भी दल ने इसका खुलकर विरोध नहीं किया। हालांकि कई सांसदों ने इस विधेयक को लेकर सरकार की नीयत पर सवाल जरूर खड़े किए और कानूनी एवं संवैधानिक तौर पर इसके टिकने को लेकर अपनी बात कही। राजद सांसद जयप्रकाश नारायण यादव और सपा के धर्मेंद्र यादव ने इस बिल को धोखा करार देते हुए आबादी के अनुपात में आरक्षण की बात की।
मोदी कैबिनेट ने आरक्षण प्रस्ताव को दी मंजूरी
इससे पहले केंद्र की मोदी सरकार ने सोमवार को आर्थिक रूप से पिछड़ी उच्च जातियों के लिए सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण को मंजूरी दी थी जिनकी प्रतिवर्ष 8 लाख रुपये से कम की कमाई है। इस फैसले को लागू करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन के लिए एक विधेयक संसद में मंगलवार को पेश किया गया जिसे लोकसभा में पांच घंटे की बहस के बाद बहुमत से पारित कर दिया गया। मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों में जाति आधारित आरक्षण के लिए 50 प्रतिशत की सीमा तय कर रखी है। विधेयक के मुताबिक सवर्णों को सरकारी नौकरी और उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए 10 फीसदी आरक्षण मिलेगा। यह आरक्षण 50 फीसदी की सीमा से अलग होगा। कांग्रेस नेता हरीश रावत ने सरकार के इस फैसले पर कहा कि बहुत देर कर दी मेहराबन आते आते। वो भी ऐसे समय पर जब चुनाव नजदीक हैं। वो चाहे जो भी करें, चाहे जो जुमला दें, इस सरकार को अब कोई भी नहीं बचा सकता।
इसके जवाब में अरुण जेटली ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जो कैप लगाई थी, वह जातिगत आरक्षण को लेकर ही थी। अरुण जेटली ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कई बार दोहराया था कि हम सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को मिलने वाले आरक्षण पर ही यह सीमा तय कर रहे हैं। इसके पीछे अदालत का तर्क यह था कि आप अन्य वर्ग यानी जो अनारक्षित वर्ग हैं, उनके लिए सीट नहीं छोड़ोगे तो फिर पुराने भेदभाव को तो समाप्त किया जा सकेगा, लेकिन नया भेदभाव शुरू हो जाएगा। इस संतुलन को बनाए रखने के लिए अदालत ने कैप लगाई थी।
केंद्र सरकार की ओर से प्रस्तावित सामान्य वर्ग के लिए 10 फीसदी आरक्षण के दायरे में देश के ईसाई और मुस्लिम गरीबों समेत सभी धर्मों के लोग आएंगे। यह जानकारी सामाजिक कल्याण मंत्री थावरचंद गहलोत ने लोकसभा में संविधान संशोधन विधेयक को पेश करते हुए दी। इस प्रस्ताव को मंजूरी देने वाले 124वें संविधान संशोधन विधेयक को पेश करते हुए गहलोत ने कहा कि इसके तहत सभी वर्ग के लोग आएंगे। उन्होंने कहा कि इस आरक्षण का आधार सामाजिक या शैक्षणिक नहीं है बल्कि आर्थिक है।
जानिए! इस विधेयक को लेकर बहस में किसने क्या कहा
सपा सांसद धर्मेंद यादव ने 100 पर्सेंट आरक्षण लाने की मांग की। उन्होंने कहा कि आबादी के अनुसार आरक्षण मिलना चाहिए। पिछड़ों को आबादी के मुताबिक आरक्षण दिया जाना चाहिए। केंद्र सरकार की कैबिनेट, राज्यपाल, वाइस चांसलर, न्यायपालिका और प्रोफेसर तक यह समानता आनी चाहिए और सभी को प्रतिनिधित्व देने के लिए आबादी के मुताबिक आरक्षण दिया जाना चाहिए। राजद के जयप्रकाश नारायण यादव ने भी आबादी के अनुपात में आरक्षण दिए जाने की वकालत की। उन्होंने कहा कि यह विधेयक धोखा है और चुनाव से पहले शिकारी की तरह जाल बिछाया गया है।
लोजपा के रामविलास पासवान ने कहा कि आरक्षण को संविधान को नौवीं सूची में डाला जाए, इससे कोर्ट की अड़चन बार-बार नहीं आएगी। हम शुरू से इसके पक्ष में थे और आज भी हैं। जबकि आम आदमी पार्टी के भगवंत मान ने संविधान संशोधन पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि ये एससी-एसटी ऐक्ट को धीरे-धीरे खत्म करने की सोच रहे हैं। भाजपा भारतीय जुमला पार्टी है। यदि सही मंशा होती तो यह विधेयक पहले सत्र के पहले दिन लाया जाता, लेकिन जुमला है इसलिए आखिरी सत्र के आखिरी दिन इसे पेश किया गया।
भाजपा के दिग्गज नेता हुकुम देव नारायण यादव ने कहा कि आज मेरी जिंदगी का सपना पूरा हुआ है। अभी धर्मेंद्र यादव बोल रहे थे। क्या वह भूल गए कि जनेश्वर मिश्र, ब्रजभूषण तिवारी और मोहन सिंह का पसीना भी मुलायम सिंह को बनाने में लगा। मुझे सभी लोगों ने कंधे पर बिठाकर नेता बनाने का काम किया। पिछड़ी जाति के पीएम ने ऊंची जाति के लिए सोचा यह बड़ी बात है। भाजपा सांसद महेंद्र नाथ पांडेय और निशिकांत दुबे ने कहा कि इससे समाज में समरसता का वातावरण होगा। अब तक ऐसे बहुत से लोग थे, जो गरीब होने के बाद भी लाभ से वंचित थे।
राष्ट्रीय लोक समाता पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि मैं अब तक जब अपने क्षेत्र में जाता था तो सवर्ण समाज के लोग कहते थे कि आप ही जिम्मेदार हैं, इसलिए नौकरी नहीं मिल रही है। अब मुझे खुशी है कि ऊंची जाति के बेरोजगार नौजवान मुझे ब्लेम नहीं करेंगे। लेकिन, यह कुछ दिनों की ही बात है और बाद में पता चलेगा कि आरक्षण से ही नौकरी नहीं मिलती। सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले लोगों को आरक्षण में प्राथमिकता दी जानी चाहिए। सरकारी क्षेत्रों में नौकरियां कम हो रही हैं इसलिए निजी सेक्टर में भी आरक्षण की व्यवस्था लागू होनी चाहिए।
टीआरएस सांसद एपी जीतेंद्र रेड्डी ने केंद्र सरकार के बिल का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि आरक्षण तय करने का अधिकार राज्य सरकारों को दे देना चाहिए। एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि यह बिल बाबा साहेब अंबेडकर जी का अपमान है क्योंकि इस बिल के जरिए सामाजिक न्याय नहीं हो रहा है जो कि आरक्षण का मूलभूत आधार था, क्या सवर्णों को कभी अछूत परंपरा का, पिछड़ेपन का सामना करना पड़ा क्या? इन परंपराओं का सामना केवल मुसलमानों, दलितों और पिछड़े लोगों को करना होगा, इस बिल को पारित करने के लिए इंपेरिकल ऐविडेंस नहीं है।
तृणमूल कांग्रेस के सांसद सुदीप बंदोपाध्याय ने गरीबों के आरक्षण पर चर्चा के दौरान उठाया महिला आरक्षण का मुद्दा। कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि सरकार की यह नीति ठीक है, लेकिन उसकी नीयत पर हमें विश्वास नहीं है। क्या कारण है कि यह सरकार इतने महत्वपूर्ण संशोधन विधेयक को आखिरी सेशन के आखिरी दिन और अंतिम घड़ी में लेकर आई है। यदि यह पारित हुआ भी तो एक भी व्यक्ति को इस सरकार के कार्यकाल में कोई लाभ नहीं मिलेगा।