जस्टिस दीपक मिश्रा- एक प्रो सिटीजन जज
किरण राय
जस्टिस दीपक मिश्रा देश के नए मुख्य न्यायाधीश हैं। अपने फैसलों को लेकर काफी चर्चा में रहें हैं। 16 महीनों में 5000 मामले निपटाने का श्रेय भी इन्हें जाता है और देश के पहले जज हैं जिन्होंने 192 शब्दों का सबसे लंबा फैसला सुनाया। मामला 2015 का है। देश को अपने 45वें CJI से उम्मीदें भी हैं और भरोसा भी की फैसले की रफ्तार में भी तेजी आयेगी। त्वरित फैसले ना आना इस देश की सबसे पड़ी समस्या है। जिसे लेकर जस्टिस ठाकुर कई बार अपना दुख सार्वजनिक मंच से जाहिर कर चुके थे। इसके अलावा भी कई ऐसे मसले हैं जो इनकी तरफ टकटकी लगाए बैठे हैं। ऐसे समय में ये इस सर्वोच्च पद पर आए हैं जब इंडियन जुडिश्यरी अपने बेहतरीन फैसलों को लेकर चर्चा में है। नए सीजीआई को संकेत दिए जा चुके हैं जिन्हें पूरा करने का दारोमदार अब उन्हीं पर होगा, वैसे भी इन्हें pro-citizen जज के तौर पर ख्याति प्राप्त है। सबरीमाला में महिलाओं की एंट्री या फिर एफ़आईआर की कॉपी 24 घंटों में वेबसाइट पर डालने का आदेश- जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने वाला फैसला लिया।
ट्रिपल तलाक से लेकर निजता के अधिकार को लेकर जिस तरह बहुमत के आधार पर फैसला सुनाया गया वो भारतीय न्याय व्यवस्था को लेकर गढ़े गए पुराने तर्कों को धत्ता बताता है। कहा जाता था कि राजनीति का साया फैसलों को प्रभावित करता है या फिर पॉपुलर ओपिनियन को देखते हुए आखिरकार फैसला सुना दिया जाता है लेकिन हालिया आदेश जताते हैं कि न्यायालय अपना काम बगैर किसी दबाव और फिक्र के कर रहा है। गौहत्या, लव जिहाद जैसे मुद्दों को लेकर राजनीतिक अव्यवस्था ने अल्पसंख्यकों को काफी उद्वेलित किया। कई बड़ी शख्सियतों ने इसे गंभीर बताया यहां तक की पूर्व उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी भी अपनी चिंता से वाकिफ करा गए। कमजोर विपक्ष का साथ आम लोगों को नहीं मिला और उन्हें न्याय के मंदिर के दर पर जाना पड़ा। यहां हमारी न्याय व्यवस्था ने उन्हें दुखी नहीं किया। उन्हें यकीन दिलाया कि बतौर नागरिक उनके पास सारे हक हैं और कानून उन्हें ये हक देता है।
कुल मिलाकर राजनीति ने अगर लोगों को धमकाया तो हमारी न्याय व्यवस्था ने उन्हें हौसला दिया। अगर राजनीतिज्ञों ने जताया कि संख्या बल उन्हें कुछ भी करने की इजाजत देता है तो न्यायालय ने विश्वास दिलाया कि महज चुनाव जीतना या सत्ता पर काबिज होना सत्तासीनों को सारे हक नहीं देता। हर काम का लेखा जोखा लिया जाएगा। अगर जनता नहीं तो ज्यूडिशरी अपना काम बखूबी निभाएगी। बतौर सीजीआई जस्टिस दीपक मिश्रा की जिम्मेदारी यही होगी। उन्हें उन फैसलों को मूर्त रूप देने में अहम भूमिका निभानी है, जिन्हें सुनाया जा चुका है। निचले कोर्ट किस तरह सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय नीतियों पर काम करते हैं ये भी अहम होगा। हमारे नए सीजीआई को जजों की नियु्क्ति, फैसलों की अवधि और क्रियान्वयन को लेकर भी सजग रहना होगा। साथ ही उस महीन लकीर का महत्व भी बताना होगा जो कार्यकारी और न्याय व्यवस्था के बीच मौजूद है।