मोदी सरकार के 4 साल : 15 राज्यों के उपचुनावों में एक भी नई लोकसभा सीट नहीं जीत पाया एनडीए
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : मोदी सरकार के चार साल के कार्यकाल में 15 राज्यों में लोकसभा की 27 सीटों पर उपचुनाव हुए हैं। इन 27 में से 16 सीटों पर राजग का कब्जा था लेकिन उपचुनावों के बाद इसमें से 9 सीटों पर भाजपा और उनके सहयोगी दलों को हार मिली है, जबकि सात सीट बचाए रखने में वो कामयाब रहे हैं।
हाल ही में चार लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे भाजपा के लिए सुखद नहीं रहे। भाजपा और उसके सहयोगी दल सिर्फ 2 सीटों पर जीत हासिल करने में सफल रहे, जबकि पहले इन चारों सीटों पर उनका कब्जा था। वैसे अगर हम 2014 से हुए लोकसभा उपचुनावों के नतीजों को देखें तो भाजपा की हालत बेहतर नजर नहीं आती है। 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से 15 राज्यों में लोकसभा की 27 सीटों पर उपचुनाव हुए हैं। इन 27 में से 16 सीटों पर राजग का कब्जा था। लेकिन उपचुनावों के बाद इसमें से 9 सीटों पर भाजपा और उनके सहयोगी दलों को हार मिली है, जबकि सात सीट बचाए रखने में वो कामयाब रहे हैं। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस दौरान एनडीए ने अपनी सांसद संख्या में एक का भी इजाफा नहीं किया है।
लोकसभा उपचुनाव 2014
साल 2014 में पांच सीटों पर उपचुनाव कराए गए। इन उपचुनावों के जारी नतीजों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में समाजवादी पार्टी, गुजरात के वडोडरा में भारतीय जनता पार्टी, महाराष्ट्र के बीड में भारतीय जनता पार्टी, ओडिशा के कंधमाल में बीजू जनता दल और तेलंगाना के मेडक में तेलंगाना राष्ट्र समिति ने अपनी-अपनी जीत को बरकरार रखा।लोकसभा उपचुनाव 2015
साल 2015 में सिर्फ तीन सीटों पर उपचुनाव कराए गए जिसमें तेलंगाना के वारंगल में तेलंगाना राष्ट्र समिति और पश्चिम बंगाल की बनगांव सीट पर तृणमूल कांग्रेस ने अपनी जीत को कायम रखा। लेकिन मध्यप्रदेश की रतलाम सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने भाजपा से यह सीट छीन ली।लोकसभा उपचुनाव 2016
साल 2016 में कुल चार लोकसभा सीटों पर उपचुनाव कराए गए थे। यह उपचुनाव नोटबंदी के ठीक बाद कराए गए उपचुनाव थे। इस उपचुनाव के नतीजों को देखें तो इसमें नोटबंदी का कोई असर नहीं देखा गया। तृणमूल कांग्रेस पार्टी ने पश्चिम बंगाल की तमलुक और कूचविहार लोकसभा सीट पर अपनी जीत को कायम रखने में सफल रहीं। मेघालय के तुरा में नगालैंड पीपुल्स पार्टी ने भी अपनी जीत को बरकरार रखा। भाजपा ने भी असम के लखीमपुर और मध्यप्रदेश के शहडोल लोकसभा सीट पर अपनी पहले की जीत को बचाने में कामयाब रही। माना जा रहा था कि भाजपा को नोटबंदी का खामियाजा भुगतना पड़ेगा लेकिन नतीजों में ऐसा कुछ भी नहीं दिखा।लोकसभा उपचुनाव 2017
साल 2017 में हुए 4 सीटों पर लोकसभा उपचुनाव कराए गए। नतीजों के मुताबिक, पंजाब के अमृतसर में कांग्रेस ने जीत दर्ज करी। पहले भी यह सीट कांग्रेस के ही खाते में थी। केरल के मलप्पुरम में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने अपनी सीट बरकरार रखी। पंजाब के गुरदासपुर सीट कांग्रेस ने भाजपा से छीन ली। वहीं जम्मू एंड कश्मीर के श्रीनगर की सीट नेशनल कांफ्रेस ने पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी से छीन ली।लोकसभा उपचुनाव 2018
साल 2018 में हुए 10 सीटों पर कराए गए लोकसभा उपचुनाव के नतीजों की बात करें तो उत्तर प्रदेश की तीन सीटों गोरखपुर, फूलपुर और कैराना तीनों ही पहले भाजपा के खाते में थी लेकिन जब उपचुनाव कराए गए तो तीनों ही सीटें क्रमश: समाजवादी पार्टी, समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के खाते में चली गई। इसी तरह से पश्चिम बंगाल के उलूबेरिया सीट पर तृणमूल कांग्रेस पार्टी ने अपनी जीत को बरकरार रखी। राजस्थान की अलवर और अजमेर सीट को कांग्रेस ने भाजपा से छीन ली। बिहार के अररिया सीट पर आरजेडी ने अपनी जीत का कायम रखा। नगालैंड सीट पर पहले नगालैंड पीपुल्स फ्रंट का कब्जा था लेकिन उपचुनाव में नगालैंड डेमोक्रेटिक पीपुल्स पार्टी जो एनडीए गठबंधन का घटक दल है ने जीत दर्ज की। महाराष्ट्र के पालघर और भंडारा-गोंदिया दोनों ही सीटें पहले भाजपा के पास थी। इनमें से पालघर पर भाजपा ने अपनी जीत बरकरार रखी लेकिन भंडारा-गोंदिया सीट एनसीपी ने भाजपा से छीन ली।
मई 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभाली थी तो उस समय एनडीए के कुल 336 सांसद थे। भाजपा ने अकेले 282 सीटों पर जीत हासिल की थी। आज यह संख्या 271 पर आ गई है और अगर दो नामित सांसदों को जोड़ ले तो यह संख्या 273 होती है। जबकि एनडीए के कुल 327 सांसद रह गए हैं। वहीं अगर हम विपक्ष की बात करें तो उसने उपचुनावों में अपनी सीटें बचाए रखने में तो सफलता हासिल की ही है, भाजपा और उसके सहयोगियों से इन चार सालों में हुए उपचुनाव के दौरान 9 सीटें जीत भी ली है। इनमें से आठ सीटें भाजपा की जबकि एक सीट उसके सहयोगी दल की घटी हैं। विपक्षी दलों में कांग्रेस ने अपनी सांसद संख्या में चार का इजाफा किया है। समाजवादी पार्टी ने 2 सीटें बढ़ाई हैं तो राकांपा, आरएलडी और नेशनल कांफ्रेंस ने एक-एक सीट राजग से छीन ली है। हालांकि बहुमत अब भी राजग सरकार के पक्ष में है, फिर भी कई कारणों से ये आंकड़े उनके लिए चिंताजनक हैं।
पहली बात, 2014 में चली मोदी लहर शायद नवंबर 2015 में ही थम गई थी जब भाजपा को मध्य प्रदेश के रतलाम लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस के हाथों शिकस्त मिली थी। आंकड़े एकदम साफ हैं, अब तक भाजपा और उसके सहयोगी अपनी नौ सीटें गंवा चुके हैं। दूसरी बात, जहां भाजपा और उसके सहयोगी दलों को इन चार सालों में हार का सामना करना पड़ा है तो वहीं कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को जीत मिलती रही है। 2014 में इन 27 सीटों में सिर्फ 4 उनके पास थी लेकिन अब यह संख्या 13 की है। तीसरी बात, गैर भाजपा और गैर कांग्रेसी खेमा इन उपचुनावों के दौरान अपनी सीटें बचाए रखने में कामयाब रहा है। तृणमूल कांग्रेस, तेलंगाना राष्ट्र समिति और बीजू जनता दल ने उपचुनावों में अपनी सीटें बरकरार रखी हैं। अभी जो राजनीतिक हालात बन रहे हैं उनके हिसाब से 2019 में ये दल भाजपा के बजाय कांग्रेस के साथ किसी तरह के गठजोड़ बनाते नजर आ सकते हैं।