24 साल पहले मुलायम ने रचा था इतिहास, अब अखिलेश की बारी
प्रवीण कुमार
नई दिल्ली : समाजवादी पार्टी की स्थापना के बाद तत्कालीन सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश की सत्ता में आने के लिए जो प्रयोग 1993 में किया था, अखिलेश यादव 24 साल बाद 2017 के चुनाव में वही प्रयोग दोहरा रहे हैं। फर्क बस इतना है कि उस समय नेताजी मुलायम सिंह यादव ने बसपा के साथ गठबंधन किया था और इस बार अखिलेश ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया है।
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पार्टी का गठबंधन इस चुनाव में क्या गुल खिलाता है, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन दोनों ही दलों की कमान इस समय युवा हाथों में है और दोनों नेताओं के रणनीतिकारों (प्रशांत किशोर और प्रो. स्टीव जार्डन) ने जिस तरह की चुनावी रणनीति को अंजाम दिया है उससे तो यही लगता है कि अखिलेश अपने पिता के लिखे इतिहास का न केवल दोहराएंगे बल्कि आगामी राजनीति की दिशा क्या होगी वह भी तय करेंगे।
मुलायम सिंह यादव ने 1993 में क्षेत्रीय पार्टियों के गठबंधन का नया प्रयोग किया था। उन्होंने बसपा के संस्थापक कांशीराम से हाथ मिलाते हुए गठबंधन की राजनीति शुरू की और इसका एलान लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में किया था। उत्तराखंड उस समय उत्तर प्रदेश का हिस्सा हुआ करता था और उत्तर प्रदेश में कुल 422 विधानसभा सीटें हुआ करती थीं। मुलायम ने गठबंधन के आधार पर सपा के 256 उम्मीदवार उतारे थे और बसपा को 164 सीटें दी थीं। मुलायम का यह प्रयोग रंग लाया और उत्तर प्रदेश में सपा ने 109 और बसपा ने 67 सीटों पर जीत दर्ज की थी। गठबंधन की शर्तों के आधार पर मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बने, लेकिन यह सरकार 18 माह ही चल सकी।
कांशीराम और मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक कैमिस्ट्री तब शानदार थी। तब कांशीराम ने अपने शर्तों के अनुरूप मुलायम सिंह यादव से खुद की पार्टी यानी समाजवादी पार्टी का गठन करवाया था और फिर बसपा से तालमेल भी कराया था। 1991 में कांशीराम की इटावा से जीत के दौरान मुलायम का कांशीराम के प्रति यह आदर अचानक उभर कर सामने आया था जिसमें मुलायम ने अपनी पार्टी के खास राम सिंह शाक्य की पराजय में कोई गुरेज नहीं किया था। इस हार के बाद राम सिंह शाक्य और मुलायम सिंह यादव के बीच मनुमुटाव भी हुआ, लेकिन मामला फायदे का होने के चलते शांत हो गया।
कांशीराम की इस जीत के बाद उत्तर प्रदेश में मुलायम और कांशीराम की जो जुगलबंदी शुरू हुई इसका लाभ उत्तर प्रदेश में 1993 में मुलायम सिंह यादव की सरकार के रूप में मिला, लेकिन 2 जून 1995 को हुए गेस्ट हाउस कांड के बाद सपा और बसपा के बीच बढ़ी तकरार इस कदर हावी हो गई कि दोनों दल एक दूसरे को खत्म करने पर अमादा हो गए। उसके बाद मुलायम की सपा का आज तक बसपा की मायावती से गठबंधन पर कोई बात नहीं हुई।
उत्तर प्रदेश के वर्ष 2012 के चुनाव में समाजवादी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिली। मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया। अखिलेश इस समय सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। कहें तो अखिलेश ने बतौर सपा मुखिया 24 साल पहले वाला मुलायम सिंह यादव का प्रयोग दोहराया है। मगर इस बार गठबंधन बसपा से न होकर कांग्रेस से है। अखिलेश ने राष्ट्रीय पार्टी होने के बाद भी कांग्रेस को 105 सीटें दी।
मुलायम-कांशीराम की तर्ज पर ही अखिलेश-राहुल ने कोई चुनावी रैली न करके रोड शो किया जिसके लिए लखनऊ को चुना गया। यह रोड शो जीपीओ स्थित गांधी प्रतिमा पर माल्यार्पण से शुरू होकर मेफेयर चौराहा हजरतगंज, नोवल्टी चौराहा, लालबाग से कैसरबाग, अमीनाबाद, नजीराबाद, नक्खास, चौक चौराहा होते हुए घंटाघर पर संपन्न हुई। रोड शो की खास बात यह रही कि जिस गांधी को मोदी सरकार और भाजपा मिटा देना चाहती है वहीं अखिलेश और राहुल ने गांधी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर पहले साझा रोड शो के माध्यम से चुनाव प्रचार अभियान को अंजाम दिया है।