संयुक्त राष्ट्र के पहले अश्वेत महासचिव कोफी अन्नान नहीं रहे, 80 साल की उम्र में निधन
संयुक्त राष्ट्र : अपने शांति प्रयासों को लेकर बेहद गंभीर संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव और नोबेल सम्मान से सम्मानित कोफी अन्नान का 80 साल की उम्र में निधन हो गया। मूल रूप से घाना के रहनेवाले कोफी अन्नान को वैश्विक स्तर पर शांति के लिए काम करने और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के लिए जाना जाता है।
अन्नान पहले अफ्रीकी मूल के अश्वेत संयुक्त राष्ट्र महासचिव थे। उन्होंने लगातार 2 कार्यकल 1997 से 2006 तक महासचिव का पदभार संभाला। महासचिव रहने के दौरान उन्होंने 2015 तक वैश्विक गरीबी को कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया था। कोफी अन्नान युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में शांति बहाल करने और प्रवासियों को फिर से बसाने के लिए वैश्विक स्तर पर होने वाले कई प्रयासों की अगुआई कर चुके थे। हाल के दिनों में वह रोहिंग्या और सीरिया के शरणार्थी संकट के समाधान के लिए काम कर रहे थे। सीरिया में संकट के समाधान के लिए उन्होंने सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद से भी मुलाकात की थी।
son of Ghana के तौर पर पहचाने जाने वाले अन्नान सेवानिवृत होने के बाद से ही स्विजरलैंड में रह रहे थे। यहीं के बर्न स्थित अस्पताल में उनका निधन हुआ। इसकी जानकारी उनके फाउंडेशन ने दी। उनकी मौत से दुनिया स्तब्ध है। माइक्रो ब्लॉगिंग साईट ट्विटर के जरिए दुनिया भर के नेता उनके निधन पर शोक जता रहें हैं। ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने उन्हें अपना दोस्त बताते हुए इसे किसी सदमे से कम नहीं माना है और शोक संतृप्त परिवार के प्रति गहरी संवेदना जताई है।
नरसंहार और मानवाधिकार उल्लंघन से हुई निंदा
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बनने से पहले अन्नान को मार्च 1993 में अवर महासचिव नियुक्त किया गया और वे दिसम्बर 1996 तक इस पद पर कार्यरत रहे। इसके साथ ही उन्हें शांति अभियानों के सहायक महासचिव पद पर भी नियुक्त किया गया। ये समयावधि ऐसी थी जिसमें रवांडा, बोस्निया जैसे इलाकों में नरसंहार के मामले सामने आए और इनकी आंच कोफी अन्नान पर भी पड़ी। 1995 में बोस्निया के जनसंहार में करीब 8,000 मुस्लमानों को मौत के घाट उतार गया। इसकी चौतरफा निंदा हुई। कहा गया कि अन्नान के विभाग ने उपलब्ध जानकारियों का उपयोग सही समय पर सही तरीके से सही नहीं किया, जिसका खामियाजा लोगों को चुकाना पड़ा।
इसके बाद बोस्निया नरसंहार की 10वीं बरसी पर खुद अन्नान ने माना कि उनसे गलती हुई। क्योंकि उनका मानना था कि शांति बलों की मौजूदगी मामले को बिगाड़ देगी उस समया मुझे लगा कि बतौर हेड में एकदम सही कर रहा हूं। लेकिन कत्लेआम के बाद मुझे अहसास हुआ कि उस दिशा में कुछ सही कदम उठाए जा सकते थे। बोस्निया हर्जेगोवेनिया के नरसंहार ने मेरी सोच बदल दी और महासचिव बनने के बाद मेरे फैसलों में उसकी छाप दिखी।
गौरतलब है कि उन नरसंहारों के बाद बुतर्स बुतर्स घाली के बाद अन्नान को संयुक्त राष्ट्र का महासचिव बनाया गया और बतौर महासचिव उनका कार्यकाल काफी उठापटक भरा रहा। उनके पदासीन होने से छह साल पहले सोवियत रूस टूट चुका था। उनके समय में ही 11 सितम्बर 2001 आतंकी घटना घटी और अमेरिका-इराक भी उसी दौरान हुई। यही वजह रही कि इस शांति दूत ने महासचिव पद से मुक्त होते समय जो भाषण दिया उसमें जॉर्ज बुश द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन का जिक्र भी किया।
उनके इस भाषण पर काफी तीखी प्रतिक्रिया भी हुई। जाहिर तौर पर उनका इशारा बुश प्रशासन द्वारा बिना संयुक्त राष्ट्र परिषद की अनुमति के 2003 में इराक पर हमला किए जाने की ओर था।
विवादित कार्यकाल
अन्नान को ऐसा संगठन मिला जिसका खजाना बिलकुल खाली था। वो लगभग कंगाल हो चुका था। इसी दौरान उन्होंने संस्थान को मजबूती देने की गर्ज से कुछ कठोर सुधारवादी कदम उठाए। न्यूयॉर्क स्थित मुख्यालय के 6,000 पदों में से सीधे 1,000 पदों की कटौती कर दी। इसके साथ ही नाराज देशों को दुनिया में हो रही विपदाओं और आपदाओं के बारे में बताते हुए सहानुभूति बटोरने की कोशिश की। यही वजह रही कि अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र संघ से लिया पुराना ऋण चुकता कर दिया।
इसके साथ ही उन्होंने 2015 तक का मिलेनियम गोल भी रखा। जिसके तहत गरीबी उन्मूलन और एचआईवी के फैलाव को रोकने की कोशिश शामिल था। उन्होंने बीबीसी को दिए साक्षात्कार में माना था कि मैं मानता हूं कि सेक्रेटरी जनरल का SG का मतलब दरअसल, स्केपगोट (बलि का बकरा) है। (विभिन्न समाचार माध्यमों से साभार)